1) समस्त प्रज्ञा प्रभु से उत्पन्न होती है, वह सदा उसके पास विद्यमान है।
2) समुद्रतट के बालू-कण, वर्षा की बूॅदें और अनन्त काल के दिन कौन गिन सकता है ? आकाश की ऊॅचाई, पृथ्वी का विस्तार और महागत्र्त की गहराई कौन नाप सकता है ?
3) किसने ईश्वर की प्रज्ञा का अनुसन्धान किया, जो सब से पहले विद्यमान थी?
4) सबसे पहले प्रज्ञा की सृष्टि हुई थी। विवेकपूर्ण बुद्धि अनादिकाल से बनी हुई है।
5) प्रज्ञा का स्त्रोत है- स्वर्ग में ईश्वर का शब्द। प्रज्ञा के मार्ग हैं- शाश्वत आदेश।
6) प्रज्ञा की जड़ तक कौन पहुँचा है? उसकी बारीकियाँ कौन समझता है?
7) प्रज्ञा की शिक्षा किस को मिली है? उसके विविध मार्ग कौन जानता है?
8) परमश्रद्धेय प्रभु ही प्रज्ञासम्पन्न है, वह अपने सिंहासन पर विराजमान है।
9) प्रभु ने ही प्रज्ञा की सृष्टि की है। उसने उसका अवलोकन एवं मूल्यांकन किया
10) और उसे अपने सभी कार्यों में सन्निविष्ट किया है। उसने उसे अपनी उदारता के अनुरूप सब प्राणियों और अपने भक्तों को प्रचुर मात्रा में प्रदान किया है।
14) जब वे शिष्यों के पास लौटे, तो उन्होंने देखा कि बहुत-से लोग उनके चारों और इकट्ठे हो गये हैं और कुछ शास्त्री उन स विवाद कर रहे हैं।
15) ईसा को देखते ही लोग अचम्भे में पड़ गये और दौड़ते हुए उन्हें प्रणाम करने आये।
16) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम लोग इनके साथ क्या विवाद कर रहे हो?’’
17) भीड़ में से एक ने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! मैं अपने बेटे को, जो एक गूँगे अपदूत के वश में है, आपके पास ले आया हूँ।
18) वह जहाँ कहीं उसे लगता है, उसे वहीं पटक देता है और लड़का फेन उगलता है, दाँत पीसता है और उसके अंग अकड़ जाते हैं। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।’’
19) ईसा ने उत्तर दिया, ’’अविश्वासी पीढ़ी! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को मेरे पास ले आओ।’’
20) वे उसे ईसा के पास ले आये। ईसा को देखते ही अपदूत ने लड़के को मरोड़ दिया। लड़का गिर गया और फेन उगलता हुआ भूमि पर लोटता रहा।
21) ईसा ने उसके पिता से पूछा, ’’इसे कब से ऐसा हो जाया करता है?’’ उसने उत्तर दिया, ’’बचपन से ही।
22) अपदूत ने इसका विनाश करने के लिए इसे बार-बार आग अथवा पानी में डाल दिया है। यदि आप कुछ कर सकें, तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए।’’
23) ईसा ने उस से कहा, ’’यदि आप कुछ कर सकें! विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ सम्भव है।’’
24) इस पर लड़के के पिता ने पुकार कर कहा, ’’मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्प विश्वास की कमी पूरी कीजिए’’।
25) ईसा ने देखा कि भीड़ बढ़ती जा रही है, इसलिए उन्होंने अशुद्ध आत्मा को यह कहते हुए डाँटा, ’’बहरे-गूँगे आत्मा! मैं तुझे आदेश देता हूँ- इस से निकल जा और इस में फिर कभी नहीं घुसना’’।
26) अपदूत चिल्ला कर और लड़के को मरोड़ कर उस से निकल गया। लड़का मुरदा-सा पड़ा रहा, इसलिए बहुत-से लोग कहते थे, ’’यह मर गया है’’।
27) परन्तु ईसा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया।
28) जब ईसा घर पहुँचे, तो उनके शिष्यों ने एकान्त में उन से पूछा, ’’हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?’’
29) उन्होंने उत्तर दिया, ’’प्रार्थना और उपवास के सिवा और किसी उपाय से यह जाति नहीं निकाली जा सकती।’’