वर्ष -1, छ्ठवाँ सप्ताह, शुक्रवार

पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 11:1-9

1) समस्त पृथ्वी पर एक ही भाषा और एक ही बोली थी।

2) पूर्व में यात्रा करते समय लोग शिनआर देश के एक मैदान में पहुँचे और वहाँ बस गये।

3) उन्होंने एक दूसरे से कहा, ''आओ! हम ईटें बना कर आग में पकायें''। - वे पत्थर के लिए ईट और गारे के लिए डामर काम में लाते थे। -

4) फिर वे बोले, ''आओ! हम अपने लिए एक शहर बना लें और एक ऐसी मीनार, जिसका शिखर स्वर्ग तक पहुँचे। हम अपने लिए नाम कमा लें, जिससे हम सारी पृथ्वी पर बिखर न जायें।''

5) तब ईश्वर उतर कर वह शहर और वह मीनार देखने आया, जिन्हें मनुष्य बना रहे थे,

6) और उसने कहा, ''वे सब एक ही राष्ट्र हैं और एक ही भाषा बोलते हैं। यह तो उनके कार्यों का आरम्भ-मात्र है। आगे चल कर वे जो कुछ भी करना चाहेंगे, वह उनके लिए असम्भव नहीं होगा।

7) इसलिए हम उतर कर उनकी भाषा में ऐसी उलझन पैदा करें कि वे एक दूसरे को न समझ पायें।''

8) इस प्रकार ईश्वर ने उन्हें वहाँ से सारी पृथ्वी पर बिखेरा और उन्होंने अपने शहर का निर्माण अधूरा छोड़ दिया।

9) उस शहर का नाम बाबेल रखा गया, क्योंकि ईश्वर ने वहाँ पृथ्वी भर की भाषा में उलझन पैदा की और वहाँ से मनुष्यों को सारी पृथ्वी पर बिखेर दिया।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 8:34-9:1

8:34) ईसा ने अपने शिष्यों के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी अपने पास बुला कर कहा, "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले।

35) क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे तथा सुसमाचार के कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।

36) मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन ही गँवा दे?

37) अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?

38) जो इस अधर्मी और पापी पीढ़ी के सामने मुझे तथा मेरी शिक्षा को स्वीकार करने में लज्जा अनुभव करेगा, मानव पुत्र भी उसे स्वीकार करने में लज्जा अनुभव करेगा, जब वह स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा-सहित आयेगा।"

9:1) ईसा ने यह भी कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ - यहाँ कुछ ऐसे लोग विद्यमान हैं, जो तब तक नहीं मरेंगे, जब तक वे ईश्वर का राज्य सामर्थ्य के साथ आया हुआ न देख लें"।


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