32) आप लोग उन बीते दिनों की याद करें, जब आप ज्योति मिलने के तुरन्त बाद, दुःखों के घोर संघर्ष का सामना करते हुए दृढ़ बने रहे।
33) आप लोगों में कुछ को सब के सामने अपमान और अत्याचार सहना पड़ा और कुछ इनके साथ पूरी सहानुभूति दिखलाते रहे।
34) जो बन्दी बनाये गये, आप लोग उनके कष्टों के सहभागी बने और जब आप लोगों की धन-सम्पत्ति जब्त की गयी, तो आपने यह सहर्ष स्वीकार किया; क्योंकि आप जानते थे कि इस से कहीं अधिक उत्तम और चिरस्थायी सम्पत्ति आपके पास विद्यमान है।
35) इसलिए आप लोग अपना भरोसा नहीं छोड़ें-इसका पुरस्कार महान् है।
36) आप लोगों को धैर्य की आवश्यकता है, जिससे ईश्वर की इच्छा पूरी करने के बाद आप को वह मिल जाये, जिसकी प्रतिज्ञा ईश्वर कर चुका है;
37) क्योंकि धर्मग्रन्थ यह कहता है - जो आने वाला है, वह थोड़े ही समय बाद आयेगा। वह देर नहीं करेगा।
38) मेरा धार्मिक भक्त अपने विश्वास के कारण जीवन प्राप्त करेगा; किन्तु यदि कोई पीछे हटेगा, तो मैं उस पर प्रसन्न नहीं होऊँगा।
39) हम उन लोगों में नहीं, जो हटने के कारण नष्ट हो जाते हैं, बल्कि हम उन लोगों में हैं, जो अपने विश्वास द्वारा जीवन प्राप्त करते हैं।
26) ईसा ने उन से कहा, ’’ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है।
27) वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है।
28) भूमि अपने आप फसल पैदा करती है- पहले अंकुर, फिर बाल और बाद में पूरा दाना।
29 फ़सल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है, क्योंकि कटनी का समय आ गया है।’’
30) ईसा ने कहा, ’’हम ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करें? हम किस दृष्टान्त द्वारा उसका निरूपण करें?
31) वह राई के दाने के सदृश है। मिट्टी में बोये जाते समय वह दुनिया भर का सब से छोटा दाना है;
32) परन्तु बाद में बढ़ते-बढ़ते वह सब पौधों से बड़ा हो जाता है और उस में इतनी बड़ी-बड़ी डालियाँ निकल आती हैं कि आकाश के पंछी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।
33) वह इस प्रकार के बहुत-से दृष्टान्तों द्वारा लोगों को उनकी समझ के अनुसार सुसमाचार सुनाते थे।
34) वह बिना दृष्टान्त के लोगों से कुछ नहीं कहते थे, लेकिन एकान्त में अपने शिष्यों को सब बातें समझाते थे।
आज प्रभु येसु दो दृष्टांतों के द्वारा हमें स्वर्ग के बारे में समझाते हैं। एक दृष्टांत बीज के बारे में है, जिसे बोने वाला बोता है और वह नहीं जनता कि वह कैसे पौधा बनकर बढ़ता है और अनाज उत्पन्न करता है लेकिन वह उसकी फसल ले लेता है। दूसरा दृष्टांत राई के दाने के बारे में है जो बहुत छोटा सा दाना होता है लेकिन जब वह उगता है तो बढ़कर बहुत बड़ा पौधा बन जाता है। एक छोटा सा राई का दाना बढ़कर इतना बड़ा पौधा कैसे बन जाता है? ये दोनों दृष्टांत ईश्वरीय राज्य के रहस्य एवं विशेषता को समझाते हैं। ईश्वर का राज्य कैसे फलता-फूलता है हम नहीं जानते लेकिन उसके प्रभाव को महसूस कर सकते हैं।
इन दृष्टांतों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ईश्वर के राज्य की एक विशेषता यह है कि शुरू में वह बहुत मामूली सा प्रतीत होता है, लेकिन जब वह बढ़ना शुरू करता है तो फैल कर सब कुछ को अपने अन्दर समाहित कर लेता है। इसे हम अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में देख सकते हैं। उदाहरण के लिए सन्त मदर टेरेसा ने अपने सेवा-कार्य की छोटी सी शुरुआत एक छोटे से स्थान से की थी, और अब ग़रीबों, बीमारों एवं बेघरों की सेवा का वह मामूली सा कार्य इतना फैल गया है कि संसार के कई भागों में निरन्तर जारी है। ईश्वरीय राज्य के मूल्यों जैसे प्रेम, आनन्द, शान्ति, न्याय आदि की विशेषता भी ऐसी ही है। ये मामूली सी शुरुआत करते हैं और फैलकर सबको अपना बना लेते हैं। आइये हम ईश्वरीय राज्य एवं उसके मूल्यों को संसार के कोने-कोने में फैलाने के साधन बनें। आमेन।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today Jesus explains about the kingdom of God with the help of the two parables. One is about the seeds that are scattered and the sower does not know how it grows and bears fruit, but he reaps the harvest of it. Second is the mustard seed which is very tiny but it grows and becomes very big. How such a small tiny seed changes into a big plant? Both of the examples explain the mystical nature of God’s kingdom. How it grows, we do not know but we can see it’s effects and it’s fruits.
Based on these parables, we can say that one of the characteristics of God’s kingdom is that initially it seems very insignificant, but once it starts growing, it overtakes everything. We can see this happening in our daily life. For example Saint mother Theresa started her good work of serving the poor and the sick, in a very insignificant way in a small place. Her good work grew and spread over many parts of the world. Values of God’s kingdom like love, joy, peace, justice etc have the same nature. They begin in a very insignificant way and then overtake and spread very fast. Let us become the instruments to spread God’s Kingdom and its values to the ends of the world. Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)