वर्ष -1, तीसरा सप्ताह, मंगलवार

पहला पाठ : इब्रानियो 9:2-3,11-14

2) एक तम्बू खड़ा कर दिया गया था। उसके अगले कक्ष में दीपाधार था, मेज़ थी और भेंट की रोटियाँ थीं। वह मन्दिर-गर्भ कहलाता था।

3) दूसरे परदे के पीछे का कक्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ कहलाता था।

11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।

12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।

13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,

14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?


सुसमाचार : मारकुस 3:22-30

22) येरूसालेम से आये हुए शास्त्री कहते थे, "उसे बेलजे़बुल सिद्ध है" और "वह नरकदूतों के नायक की सहायता से नरकदूतों को निकालता है"।

23) ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर यह दृष्टान्त सुनाया, "शैतान शैतान को कैसे निकाल सकता है?

24) यदि किसी राज्य में फूट पड़ गयी हो, तो वह राज्य टिक नहीं सकता।

25) यदि किसी घर में फूट पड़ गयी हो, तो वह घर टिक नहीं सकता।

26) और यदि शैतान अपने ही विरुद्ध विद्रोह करे और उसके यहाँ फूट पड़ गयी हो, तो वह टिक नहीं सकता, और उसका सर्वनाश हो गया है।

27) "कोई किसी बलवान् के घर में घुस कर उसका सामान तब तक नहीं लूट सकता, जब तक कि वह उस बलवान् को न बाँध ले। इसके बाद ही वह उसका घर लूट सकता है।

28) "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - मनुष्य चाहे जो भी पाप या ईश-निन्दा करें, उन्हें सब की क्षमा मिल जायेगी;

29) परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा करने वाले को कभी भी क्षमा नहीं मिलेगी। वह अनन्त पाप का भागी है।"

30) उन्होंने यह इसीलिए कहा कि कुछ लोग कहते थे, "उसे अपदूत सिद्ध है"।


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