वर्ष -1, दूसरा सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : इब्रानियो 9:2-3, 11-14

2) एक तम्बू खड़ा कर दिया गया था। उसके अगले कक्ष में दीपाधार था, मेज़ थी और भेंट की रोटियाँ थीं। वह मन्दिर-गर्भ कहलाता था।

3) दूसरे परदे के पीछे का कक्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ कहलाता था।

11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।

12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।

13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,

14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?


सुसमाचार : मारकुस 3:20-21

20) वे घर लौटे और फिर इतनी भीड़ एकत्र हो गयी कि उन लोगों को भोजन करने की भी फुरसत नहीं रही।

21) जब ईसा के सम्बन्धियों ने यह सुना, तो वे उन को बलपूर्वक ले जाने निकले; क्योंकि कहा जाता था कि उन्हें अपनी सुध-बुध नहीं रह गयी है।

📚 मनन-चिंतन

बहुत सारे लोग प्रभु येसु के पास आते थे। वे जहाँ भी जाते थे, भीड़ की भीड़ उनके पीछे चली आती थी। उनके लिए भोजन करना भी मुश्किल हो गया था और इसलिए उनके घरवाले सोचते हैं कि वह पागल हो गए हैं। ऐसा क्या है जिसके लिए वो पागल जैसे हो गये हैं? क्या प्रभु येसु पागल हो गये हैं या लोग पागल हो गए हैं? प्रभु येसु नहीं शायद लोग ही पागल हो गए हैं, क्योंकि वे ही उनके पीछे-पीछे चले आते हैं। लोग भोजन की चिंता भी नहीं करते, अपने साथ भोजन भी नहीं ले जाते, प्रभु येसु को ही उनके लिए भोजन की व्यवस्था करनी पड़ी। वे अपना घर-बार छोड़कर, अपने खेत-खलिहान छोड़कर, अपना काम-धंधा छोड़कर प्रभु येसु के वचनों को सुनने के लिए चले आते हैं।

वे अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए आते हैं। दर असल लोग पागल हो गए हैं जो बिना सोचे समझे सब कुछ छोड़कर प्रभु येसु के पास चले आते हैं। जब लोग अपना सब कुछ छोड़कर प्रभु की बातें सुनने के लिए बेचैन थे, तो प्रभु को कैसे चैन आता? जब लोग भोजन करना भी भूल जाते हैं तो वह कैसे शान्ति से भोजन कर लेते? जीवन दायी वचन सुनने की लोगों की प्यास ही थी, प्रभु के दर्शन करने की उनकी बेचैनी ही थी जो प्रभु को भी पागल कर देती है। हमारा ईश्वर कितना महान है जो हमारे प्रेम के लिए पागल होने को तैयार है!

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


Jesus had many people coming after him. Wherever he went large crowds followed him. It became difficult for him, even to eat peacefully and his relatives thought he is out of his mind. What makes him like the one out of his mind? Is he out of his mind or the people are out of their mind? Sometimes people seem to be out of mind because they followed him wherever he went. They forgot even to eat, they did not carry any food with them, so he had to feed them. They left their houses, their fields, and their jobs just to meet and listen to Jesus.

They came to be healed of their sicknesses. In fact they become out of their mind, not thinking anything else then to come behind Jesus. If people are not worried about anything else then following Jesus, listening to him and being in his company, then how could he relax? When people had forgotten about food then how could he eat peacefully? It was people’s thirst for his words of life, it was people’s restlessness that made him out of his mind. What a great God we have who is ready to go out of his mind for the love of people!

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!