वर्ष -1, दूसरा सप्ताह, गुरुवार

पहला पाठ : इब्रानियो 7:25-8:‍6

25) यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा ईश्वर की शरण लेते हैं, वह उन्हें परिपूर्ण मुक्ति दिलाने में समर्थ हैं; क्योंकि वे उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित रहते हैं।

26) यह उचित ही था कि हमें इस प्रकार का प्रधानयाजक मिले- पवित्र, निर्दोष, निष्कलंक, पापियों से सर्वथा भिन्न और स्वर्ग से भी ऊँचा।

27) अन्य प्रधानयाजक पहले अपने पापों और बाद में प्रजा के पापों के लिए प्रतिदिन बलिदान चढ़ाया करते हैं। ईसा को इसकी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उन्होंने यह कार्य एक ही बार में उस समय पूरा कर लिया, जब उन्होंने अपने को बलि चढ़ाया।

28) संहिता जो दुर्बल मनुष्यों को प्रधानयाजक नियुक्त करती है, किन्तु संहिता के समाप्त हो जाने के बाद ईश्वर की शपथ के अनुसार वह पुत्र पुरोहित नियुक्त किया जाता है, जिसे सदा के लिए परिपूर्ण बना दिया है।

8:1) इन बातों का सारांश यह है- हमारा एक ऐसा, प्रधानयाजक है, जो स्वर्ग में महामहिम के सिंहासन की दाहिनी ओर विराजमान हो कर

2) उस वास्तविक मन्दिर तथा तम्बू का सेवक है, जो मनुष्य द्वारा नहीं, बल्कि प्रभु द्वारा संस्थापित है।

3) प्रत्येक प्रधानयाजक भेंट और बलि चढ़ाने के लिए नियुक्त है, इसलिए यह आवश्यक है कि उसके पास चढ़ावे के लिए कुछ हो।

4) यदि ईसा अब तक पृथ्वी पर रहते, तो वे याजक भी नहीं होते; क्योंकि संहिता के अनुसार भेंट चढ़ाने के लिए याजक विद्यमान है,

5) यद्यपि वे एक ऐसे मन्दिर में सेवा करते हैं, जो स्वर्ग की वास्तविकता की प्रतिकृति और छाया मात्र है। यही कारण है कि जब मूसा तम्बू का निर्माण करने वाले थे, तो उन्हें ईश्वर की ओर से यह आदेश मिला-सावधान रहो; जो नमूना तुम्हें पर्वत पर दिखाया गया, उसी के अनुसार तुम सब कुछ बनाओ।

6) अब, जो धर्मसेवा मसीह को मिली है, वह कहीं अधिक ऊँची है; क्योंकि वे एक ऐसे विधान के मध्यस्थ हैं; जो श्रेष्ठतर है और श्रेष्ठतर प्रतिज्ञाओं पर आधारित हैं।


सुसमाचार : मारकुस 3:7-12

7) ईसा अपने शिष्यों के साथ समुद्र के तट गये। गलीलिया का एक विशाल जनसमूह उनके पीछे-पीछे हो लिया। यहूदिया,

8) येरुसालेम, इदूमैया, यर्दन के उस पार, और तीरूस तथा सीदोन के आस-पास से भी बहुत-से लोग उनके पास इकट्ठे हो गये; क्योंकि उन्होंने उनके कार्यों की चर्चा सुनी थी।

9) भीड़ के दबाव से बचने के लिए ईसा ने अपने शिष्यों से कहा कि वे एक नाव तैयार रखें;

10) क्योंकि उन्होंने बहुत-से लोगों को चंगा किया था और रोगी उनका स्पर्श करने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे।

11) अशुद्ध आत्मा ईसा को देखते ही दण्डवत् करते और चिल्लाते थे-"आप ईश्वर के पुत्र हैं";

12) किन्तु वह उन्हें यह चेतावनी देते थे कि तुम मुझे व्यक्त मत करो।

📚 मनन-चिंतन

आज हम एक ऐसे दृश्य को देखते हैं जहाँ जगह-जगह से हर तरह के लोग प्रभु येसु के पास आते हैं। जिसने भी प्रभु येसु की शिक्षाओं के बारे या उनके चमत्कारों के बारे में, विशेष रूप से चंगाई प्रदान करने के बारे में सुना, वे सब के सब अपनी बीमारियों से चंगाई पाने के लिए प्रभु येसु की ओर खिंचे चले आते हैं। इतने सारे लोग उन्हें छूना चाहते थे, की वे अपने शिष्यों से नाव तैयार रखने के लिए कहते हैं ताकि वे नाव पर चढ़कर लोगों को शिक्षा दे सकें और कहीं भीड़ उन्हें कुचल ना दे। ज़िंदगी के हर क्षेत्र से लोग उनके पास आते थे, धनवान, दरिद्र, खुश दिखाई देने वाले लोग, दुखी लोग, आस-पास के लोग और दूर-दूर के सब तरह के लोग उनके पास आते थे। उनके पास इतने सारे लोग क्यों खिंचे चले आते थे?

कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो पूर्णतः खुश एवं संतुष्ट है, सभी में कुछ ना कुछ कमी, दुखी होने का कुछ न कुछ कारण ज़रूर होता है। हो सकता है हमारे जीवन में ऐसा दुःख, कष्ट हो जो हमें व्यथित कर देता है, ऐसी चिन्ताएँ जो हमें हाल ढूँढने पर मजबूर कर देती हैं। ईश्वर के पास आ जाना ही एकमात्र हल है, जब हमारी परेशानियाँ और समस्याएँ हमें बेचैन कर देती हैं तो हमें ईश्वर की ओर मुड़ना है, और वह हमें हमारे दुःख-संकटों से निजात और हमारी आत्मा और हृदय को शान्ति प्रदान करेगा। आमेन।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


Today we see a picture where all sorts of people are coming to Jesus, from all over the places. Whoever heard about Jesus, and his teachings and miracles, especially about healing miracles, they all came to him to get healed of their sicknesses. So many people came to him and wanted to touch him that he told his disciples to keep a boat ready for him so that he could teach them from boat safely, or else crowds may crush him. There were people from all the walks of life, rich people, poor people, seemingly happy people, sad people, people from nearby places and people from far and wide places. Why so large number of people came to him?

Nobody is hundred percent happy and satisfied, no one is complete, there is always something lacking, there is always some cause of not being happy. And there may be a loss, suffering in life that makes us restless, there may be sickness, worries that force us to seek a solution. Coming to God is the only solution, when we become restless with our day to day life problems we need to come back to God, and he will give us healing and rest to our heart and souls. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!