1) ईश्वर के विश्रामस्थान में प्रवेश करने की वह प्रतिज्ञा अब तक कायम है, इसलिए हम सतर्क रहें कि आप लोगों में कोई उस में प्रवेश करने से न रह जाये।
2) हम को उन लोगों की तरह एक मंगलमय समाचार सुनाया गया है। उन लोगों ने जो सन्देश सुना, उन्हें उस से कोई लाभ नहीं हुआ; क्योंकि सुनने वालों में विश्वास का अभाव था।
3) हम विश्वासी बन गये हैं; इसलिए हम उस विश्रामस्थान में प्रवेश करते हैं, जिसके विषय में उसने कहा- मैंने क्रुद्ध होकर यह शपथ खायी: वे मेरे विश्रामस्थान में प्रवेश नहीं करेंगे। ईश्वर का कार्य तो संसार की सृष्टि के समय ही समाप्त हो गया है,
4) क्योंकि धर्मग्रन्थ सातवें दिन के विषय में यह कहता है - ईश्वर ने अपना समस्त कार्य समाप्त कर सातवें दिन विश्राम किया
5) और उपर्युक्त उद्धरण में हम यह पढ़ते हैं - वे मेरे विश्रामस्थान में प्रवेश नहीं करेंगे।
1) जब कुछ दिनों बाद ईसा कफ़रनाहूम लौटे, तो यह खबर फैल गयी कि वे घर पर हैं
2) और इतने लोग इकट्ठे हो गये कि द्वार के सामने जगह नहीं रही। ईसा उन्हें सुसमाचार सुना ही रहे थे कि
3) कुछ लोग एक अद्र्धांगरोगी को चार आदमियों से उठवा कर उनके पास ले आये।
4) भीड़ के कारण वे उसे ईसा के सामने नहीं ला सके; इसलिए जहाँ ईसा थे, उसके ऊपर की छत उन्होंने खोल दी और छेद से अद्र्धांगरोगी की चारपाई नीचे उतार दी।
5) ईसा ने उन लोगों का विश्वास देख कर अद्र्धांगरोगी से कहा, "बेटा! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"।
6) वहाँ कुछ शास्त्री बैठे हुए थे। वे सोचते थे- यह क्या कहता है?
7) यह ईश-निन्दा करता है। ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?
8) ईसा को मालूम था कि वे मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं। उन्होंने शास्त्रियों से कहा, "मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?
9) अधिक सहज क्या है- अद्र्धांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’?
10) परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है"- वे अद्र्धांगरोगी से बोले-
11) "मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ"।
12) वह उठ खड़ा हुआ और चारपाई उठा कर तुरन्त सब के देखते-देखते बाहर चला गया। सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की स्तुति की- हमने ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा।
आज हम एक अजीब सा दृश्य देखते हैं जिसमें कुछ लोग एक अर्धांगरोगी को प्रभु येसु के समक्ष लाने की कोशिश करते हैं और घर की छत निकालकर उसमें से उसे प्रभु येसु के सामने नीचे उतार देते हैं, क्योंकि प्रभु येसु के चारों ओर बहुत भीड़ थी। प्रभु येसु उसके पापों को क्षमा करते हैं और उसे चंगा करते हैं। यह एक अलग तरह का चमत्कार है जिसमें प्रभु येसु उस अर्धांगरोगी को दूसरों के विश्वास के कारण चंगा करते हैं। वे लोग उसे क्या सोचकर उसे प्रभु के समक्ष लाए? वे उसे प्रभु येसु के सामने पहुँचाने के लिए इतने उतावले क्यों थे? क्या उन्हें पता था कि वह व्यक्ति पापी था? प्रभु येसु उनके विश्वास की प्रशंसा करते हैं क्योंकि वे लोग जानते थे कि यह व्यक्ति कैसा भी हो लेकिन एक बार इसे अगर ईश्वर के समक्ष पहुँचा दिया जाए, तो प्रभु सब कुछ सम्भाल लेंगे। यह व्यक्ति स्वयं ईश्वर के समक्ष पहुँचने में असमर्थ था।
आज की दुनिया में हम अनेक ऐसे लोगों को देखते हैं जो पूर्ण स्वस्थ होते हुए भी उस अर्धांगरोगी की तरह बन जाते हैं और ईश्वर के सामने नहीं पहुँच पाते। वे अपने सारे काम करते हैं, जीवन में उनका कोई काम नहीं रुकता लेकिन चर्च जाने या प्रार्थना में भाग लेने के नाम पर उन्हें लकवा मार जाता है, वे ईश्वर की उपस्थिति में जाने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे लोगों को ईश्वर के समक्ष पहुँचाने के लिए दूसरे भले लोगों की ज़रूरत पड़ती है। कभी-कभी दूसरों के विश्वास के द्वारा भी किसी के जीवन में ईश्वर चमत्कार कर सकते हैं। हमें ऐसे लोगों के लिए प्रार्थना करने की ज़रूरत है जो ईश्वर से विमुख हो गए हैं। क्या मालूम हमारे विश्वास के कारण ही ईश्वर उनके पापों को क्षमा कर दे और उन्हें नया जीवन प्रदान कर दे? आमेन।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we see some people bringing a paralytic man before Jesus through the roof because there were so many people around him, Jesus forgives his sins and heals him. This is perhaps one of its own kind of miracle where this paralytic man is forgiven and healed because of the faith of the men who brought him. What were they thinking? Why did they want this paralytic man to reach Jesus? Did they know about this man being a sinful man? Jesus praises their faith because they knew, whatever maybe the situation of this man but once he reaches before God, then God will take care of everything. This man was unable to reach God by himself.
Today we see many active but paralytic people who are unable to reach before God. They do everything in their life, no work of theirs gets stopped but in the name of going to church or going for prayer, such people become like paralytic, as if unable to reach before God. We need other people to take them to God. Sometimes others faith can gain God’s favour and miracle in someone's life. We need to come forward to pray and intercede for people who have turned away from God. Who knows because of our faith God may forgive their sins and give them new life? Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)