अगुआ : हे ईश्वर, हमारी सहायता करने आ जा। समूह : हे प्रभु! हमारी सहायता करने शीघ्र ही आ जा। अगुआ : पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो। समूह : जैसे वह आदि में थी, अब है और अनन्त काल तक। आमेन। (अल्लेलूया)
(अंतकरण की जाँच)
मंगलगान
घिरती आती रात भयंकर, चली रही आ मृत्यु निकटतर।
शरण तुम्हारी प्रभु मैं आता, निज पापों पर मैं पछताता।
कुटिल, क्रूर, खल, कामी हूँ मैं, दुर्जन हूँ, बदनाम हूँ मैं।
दिन भर मैंने पाप किये हैं, निन्दायें कीं, शाप दिये हैं।
पड़ोसियों को बहुत सताया। वचन दिया पर नहीं निभाया।
क्षमाशील तुम करूणा-सागर, मुझे क्षमा दो, मेरे ईश्वर।
मैं निज पापों पर पछताता, शरण तुम्हारी हूँ प्रभु आता॥
मेरे निकट रहो हे प्रभुवर, सांध्य तिमिर बढ़ रहा निरंतर;
अंधकार हो रहा सघनतर, मेरे निकट रहो हे प्रभुवर,
कस ले साथी सभी किनारा, हो जब कोई नहीं सहारा,
असहायों के सदा सहायक, मेरे निकट रहो हे प्रभुवर॥
जीवन का दिन छोटा चंचल, बहुत शिघ्र जाता यह दिन ढ़ल,
जग से सुख पड़ जाते धूमिल, यश जाता है मिट्टी में मिल,
अपने चहुँदिशि होते दर्शन, मुझे विनाश और परिवर्तन,
तुम जो किंचित नहीं बदलते, मेरे साथ रहो हे प्रभुवर॥
प्रभुवर तव सामीप्य मनोहर, आवश्यक मुझको पल-पल पर,
प्रभु तव कृपा सिवाय कुछ भी, शत्रु शक्ति सकती न भंग कर,
प्रभु के सदृश न नेता कोई, प्रभु सा कोई सबल न लंगार,
धूप, छाँव, सुख, दुख में प्रतिपल, मेरे साथ रहो हे प्रभुवर॥
ज्योति-पुंज हे ज्योति मुझे दे मुक्ति दिलाई पाप-तिमिर से।
ज्योतिर्मय कर पाऊँ उनको भटक रहे जो भ्रम में पड़ के॥
सोच रहा था मैं हूँ पूरा मुझे नहीं थी चाह किसी की,
मनुष्य क्या, ईश्वर की भी थी तनिक नहीं परवाह कभी भी,
मन गया अब तू ही स्वामी द्वार गया आ दर-दर फिरके॥
काम-क्रोध, प्रभु! मान-प्रतिष्ठा सब में ढ़ूँढ़ा अपना ही हित,
ईर्ष्या, निंदा, लूट बहुत की नहीं किसी का जिससे हो हित,
स्वार्थ त्याग अब आया मैं प्रभु क्षमा माँगने चरण पकड़ के॥
मिला हमें है धन से सुख क्या? मान मिला तो शान्ति मिली क्या?
मिला हमें अब प्रभु का जीवन बढ़कर इससे मान कहीं क्या?
धन्यवाद, प्रभु! हमें उठाया नहीं सके उठ जब हम गिरके॥
प्रभुवर तुमने आज दिया है दिन यह कितना सुरम्य भावन,
रात हमारी उससे भी हो बढ़कर सुन्दर सुखद सुहावन।
सन्ध्या की इस बेला में हम हैं कर जोड़ निवेदन करते,
अंधकार अब घिर आया, प्रभु! रक्षा हमारी रहना करते।
दिन को हम सब रहे सुनाते प्रभुवर! गौरव-गान तुम्हारा,
अब जव नींद सताती हमको गाये ह क्षण हृदय हमारा।
रहते निकट हमारे प्रतिपल, अनुभव ऐसा रहे हमारा,
पौ फ़टते ही जागें जब हम मुख से निकले गान तुम्हारा॥
तन-मन से हम स्वस्थ रहें नित कि बुझ न सके, प्रभु! भक्ति हमारी,
युगानुयुग हम गाते जायें अविकल महिमा, त्रैक्य! तुम्हारी।
धन्यवाद हम देते तुझको, दिवस आज का था प्रभु सुखकर,
चिन्ता छोड़ प्रभु! सोयें अब रजनी भी हो वैसी रुचिकर।
संत जनों के मुझ मंडल पर जो था तेरा तेज चमकता,
तेज वही अब बरसे नभ से बल पाये यह मन जो डरता।
भक्तों के भक्त! ख्रीस्त! भक्ति-भाव रह हममें भरता,
तन हमारा जब तक सोये हृदय हमारा रहे जागता।
हेतु हमारे किये पिता को तूने अपने प्राण समर्पित,
निकट रहें अब तेरे प्रतिपल मार्ग न छोड़ें हम सब किंचित!
धरती अंबर गायें मिलकर महिमा तेरी हे ख्रीस्तेश्वर,
पिता और शुचि आत्मा की भी महिमा होवे नित्य निरंतर।
अग्र. 1 : वह अपने पंख फैलाकर तुम को ढ़क लेता है। तुम्हें रात्रि के आतंक से भय होगा। पास्काकाल : अल्लेलूया, अल्लेलूया, अल्लेलूया।
स्तोत्र 90 सर्वोच्च प्रभु की रक्षा में।
तुम, जो सर्वोच्च के आश्रय में रहते
और सर्वशक्तिमान् की छत्रछाया में सुरक्षित हो,
तुम प्रभु से यह कहो: "तू ही मेरी शरण है, मेरा गढ़,
मेरा ईश्वर; तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ"।
वह तुम्हें बहेलिये के फन्दे से छुड़ाता है।
वह अपने पंख फैला कर तुम को ढँक लेता है,
तुम्हें उसके पैरों के नीचे शरणस्थान मिलता है।
तुम्हें न तो रात्रि के आतंक से भय होगा
और न दिन में चलने वाले बाण से;
न अन्धकार में फैलने वाली महामारी से
और न दोपहर को चलने वाले घातक लू से।
तुम्हारी बगल में भले ही हजारों
और तुम्हारी दाहिनी ओर लाखों ढेर हो जायें,
किन्तु तुम को कुछ नहीं होगा।
उसकी सत्यप्रतिज्ञता तुम्हारी ढाल है और तुम्हारा कवच।
तुम अपनी आँखों से देखोगे
कि किस प्रकार विधर्मियों को दण्ड दिया जाता है;
क्योंकि प्रभु तुम्हारा आश्रय है,
तुमने सर्वोच्च ईश्वर को अपना शरण-स्थान बनाया है।
तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा,
महामारी तुम्हारे घर के निकट नहीं आयेगी;
क्योंकि वह अपने दूतों को आदेश देगा
कि तुम जहाँ कहीं भी जाओगे, वे तुम्हारी रक्षा करें।
वे तुम्हें अपने हाथों पर उठा लेंगे
कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे।
तुम सिंह और साँप को कुचलोगे,
तुम बाघ और अजगर को पैरों तले रौंदोगे।
वह मेरा भक्त है, इसलिए मैं उसका उद्धार करूँगा;
वह मेरा नाम जानता है, इसलिए मैं उसकी रक्षा करूँगा।
यदि वह मेरी दुहाई देगा, तो मैं उसकी सुनूँगा,
मैं संकट में उसका साथ दूँगा;
मैं उसका उद्धार कर उसे महिमान्वित करूँगा।
मैं उसे दीर्घ आयु प्रदान करूँगा
और उसे अपने मुक्ति-विधान के दर्शन कराऊँगा।
अग्र. : वह अपने पंख फैलाकर तुम को ढ़क लेता है। तुम्हें रात्रि के आतंक से भय होगा।
पास्काकाल : अल्लेलूया, अल्लेलूया, अल्लेलूया।
धर्मग्रन्थ-पाठ : प्रकाशना 22:4-5
वे प्रभु को आमने-सामने देखेंगे और उसका नाम उनके माथे पर अंकित होगा। वहाँ फिर कभी रात नहीं होगी। उन्हें दीपक या सूर्य के प्रकाश की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि प्रभु-ईश्वर उन्हें आलोकित करेगा और वे युग-युगों तक राज्य करेंगे।
लघु अनुवाक्य अगुआ : प्रभु! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंप देता हूँ। समूह : प्रभु! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंप देता हूँ।
• सत्य के प्रभु ईश्वर! टुने हमारा उध्दार किया है।
• पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो।
अग्र. : प्रभु! जागते समय हमारी रक्षा कर, सोते समय हमें सुरक्षित रख, जिससे हम मसीह के साथ जागते रहें और शान्तिपूर्ण विश्राम करें। (अल्लेलूया)
सिमेयोनी गान
प्रभु! अब तू अपने वचन के अनुसार
अपने दास को शान्तिपूर्वक विदा कर;
क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,
जिसे टुने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है,
यह गैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है
और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।
अग्र. : प्रभु! जागते समय हमारी रक्षा कर, सोते समय हमें सुरक्षित रख, जिससे हम मसीह के साथ जागते रहें और शान्तिपूर्ण विश्राम करें। (अल्लेलूया)
समापन प्रार्थना
अगुआ :ईश्वर! हमारे पिता! हमने आज प्रभु का पुनरुत्थान मनाया है। हम तुझसे दीनतापूर्वक प्रार्थना करते हैं – हर प्रकार की हानि से हमारी रक्षा कर, जिससे हम शान्ति में विश्राम करें और आनन्द के साथ उठ कर तेरी स्तुति करें। हमारे प्रभु ख्रिस्त के द्वारा। समूह : आमेन।
अगुआ: सर्वशक्तिमान प्रभु हमें शान्तिपूर्ण रात्रि और सुखद अन्तगति प्रदान करे। समूह : आमेन।
मरिया कीर्तन
ओ ... प्यारी माँ मरिया हमारी माँ
ओ ... न्यारी माँ मेरे प्रभु की माँ
तू है माता हमारी तू है कल्याणी नारी
ईश पिता की दुलारी
जैसे नीले गगन में, पक्षी कतारों उड़ते
ढ़ूँढ़ते नीड़ वो अपनी, मंजिल को पाने तरसते
हम भी हे माता, तेरी शरण में, खोजते मंजिल हमारी।
जैसे पुष्पों का राजा, दूषित जल में खिलता
कीचड़ में जन्मे कमल को, कुछ भी कलंक न लगता
वैसे तू माता, इस पापी जग में निर्मल सुकोमल, अमल।