ख्रीस्त जयन्ती के अवसर पर हम ईश्वर के मनुष्य बनने के रहस्य पर ध्यान-मनन् करने के लिए बुलाये गये हैं। हम जानते हैं कि येसु ईश्वर हैं और उनका कोई आदि या अन्त नहीं है। वे अनश्वर, अविनाशी तथा अनन्त ईश्वर हैं। फिर हम उनके जन्म की बात कैसे कर सकते हैं? संत योहन कहते हैं, “आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था। वह आदि में ईश्वर के साथ था।” (योहन 1:1-2) इस के बाद वे आगे कहते हैं, “शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया” (योहन 1:14)। इस प्रकार वे समझते हैं कि जिसे संत लूकस और संत मत्ती येसु के जन्म के रूप में हमारे सामने रखते हैं, वह वास्तव में ईश्वर का “शरीर-धारण” या “देह-धारण” है। जिसे हम येसु का जन्म कहते हैं, वह वास्तव में ईश्वर के मनुष्य के रूप में स्वर्ग से उतरने की घटना है। वह ईश्वर का मानव-जन्म है। इसी कारण येसु अपने आप को स्वर्ग से ’उतरी हुयी’ रोटी (योहन 6:41) कहते हैं।
1 तिमथी 3:16 में संत पौलुस हमारे विश्वास का सारांश बताते हुए कहते हैं, “धर्म का यह रहस्य निस्सन्देह महान् है - मसीह मनुष्य के रूप में प्रकट हुए, आत्मा के द्वारा सत्य प्रमाणित हुए, स्वर्गदूतों को दिखाई पड़े, ग़ैर-यहूदियों में प्रचारित हुए, संसार भर में उन पर विश्वास किया गया और वह महिमा में आरोहित कर लिये गये।” क्रिसमस के रहस्य को वे “मसीह के मनुष्य के रूप में प्रकट होने” का रहस्य बताते हैं। इसी रहस्य को दूसरे रूप से प्रकट करते हुए पवित्र ग्रन्थ के लेखक इब्रानियों के पत्र 10:5 में कहते हैं, “मसीह ने संसार में आ कर यह कहा: तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढ़ावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है”।
सर्वशक्तिमान श्वाश्वत ईश्वर, सब वस्तुओं का सृष्टिकर्ता मनुष्य का रूप धारण करते हैं। असीम ईश्वर हमारे लिए सीमित बनते हैं। अनश्वर और अविनाशी प्रभु हमारे लिए नश्वर मनुष्य का रूप धारण कर लेते हैं।
संत पौलुस कहते हैं, “वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।“ फिलिप्पियों 2:6-8) यहाँ पर संत पौलुस दो प्रकार के वाक्यांशों का इस्तेमाल करते हैं – ’मनुष्य का रूप धारण करना’ और ’दास का रूप धारण करना’। क्रिसमस का रहस्य न केवल ईश्वर के मनुष्य बनने का रहस्य है, बल्कि ईश्वर के मनुष्यों के बीच दास बनने का भी। मत्ती 20:28 में प्रभु कहते हैं, “मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है”। जब प्रभु अपने शिष्यों के पैर धोते हैं, तब येसु में हम उसी सेवक को पहचानते हैं। प्रभु ने अपने शिष्यों के पैर धोने के बाद उनसे कहा, “यदि मैं- तुम्हारे प्रभु और गुरु- ने तुम्हारे पैर धोये है तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये। मैंने तुम्हें उदाहरण दिया है, जिससे जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया वैसा ही तुम भी किया करो।” (योहन 13:14-15) प्रभु येसु बतलेहेम की गोशाला में एक निर्धन सेवक के रूप में जन्म लेते हैं। वे अपना पूरा जीवन सेवा-कार्य करते हुए बिताते हैं। सेवक होने के कारण वे अपने पिता की आज्ञाओं का सतर्कता से पालन करते हैं।
आदिम कलीसिया येसु को पिता ईश्वर के परमपावन सेवक मानते थे (देखिए प्रेरित-चरित 4:27, 30)। पवित्र बाइबिल में ’सेवक’ शब्द का उपयोग मूसा (गणना 12:7), योब (योब 2:3), दाऊद (स्तोत्र 78:70; एज़ेकिएल 34:23), याकूब (इसायाह 41:8) और दानिएल (दानिएल 6:20) जैसे महान लोगों के लिए भी किया गया है। नबी इसायाह ने अपनी भविष्यवाणियों में आने वाले मसीह को सेवक के रूप में प्रस्तुत किया था। “यह मेरा सेवक है। मैं इसे सँभालता हूँ। मैंने इसे चुना है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मैंने इसे अपना आत्मा प्रदान किया है, जिससे यह राष्ट्रों में धार्मिकता का प्रचार करे। यह न तो चिल्लायेगा और न शोर मचायेगा, बाजारों में कोई भी इसकी आवाज नहीं सुनेगा। यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुआँती हुई बत्ती ही बुझायेगा। यह ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करेगा। यह न तो थकेगा और न हिम्मत हारेगा, जब तक यह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना न करे; क्योंकि समस्त द्वीप इसी शिक्षा की प्रतीक्षा करेंगे।” (इसायाह 42:1-4) इसायाह 52:13-15 में वे कहते हैं, “देखो! मेरा सेवक फलेगा-फूलेगा। वह महिमान्वित किया जायेगा और अत्यन्त महान् होगा। उसकी आकृति इतनी विरूपित की गयी थी कि वह मनुष्य नही जान पड़ता था; लोग देख कर दंग रह गये थे। उसकी ओर बहुत-से राष्ट्र आश्चर्यचकित हो कर देखेंगे और उसके सामने राजा मौन रहेंगे; क्योंकि उनके सामने एक अपूर्व दृश्य प्रकट होगा और जो बात कभी सुनने में नहीं आयी, वे उसे अपनी आँखों से देखेंगे।”
यह जान कर कि हमारे सृष्टिकर्ता और मुक्तिदाता प्रभु ईश्वर अपने आप को एक सेवक के रूप में प्रस्तुत करते हैं हमारी प्रतिक्रिया किस प्रकार की है? हम जो उन्हें सारी आत्मा, सारे हृदय, सारे मन और सारी शक्ति से प्यार करने के लिए बुलाये गये हैं, उन्हीं के आदर्शों पर चल कर सेवक बनने के लिए बुलाये गये हैं। यही है आशीर्वचनों (मत्ती 5:1-8) का सारांश भी।
प्रवक्ता 3:20 में पवित्र वचन कहता है, “तुम जितने अधिक बड़े हो, उतने ही अधिक नम्र बनों इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे”। ईश्वर सब से बडे हैं और वे सब से अधिक नम्र बनते हैं। एक सेवक का सब से अच्छा गुण विनम्रता है। येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ” (मत्ती 11:29)। मैं समझता हूँ कि चरनी में लेटे हुए बालक येसु का यही संदेश है कि हम उन से विनम्रता की शिक्षा ग्रहण करें। संत योहन ईश्वर के आत्मा को पहचानने का तरीका बताते हुए कहते हैं, “ईश्वर के आत्मा की पहचान इस में हैः प्रत्येक आत्मा जो यह स्वीकार करता है कि ईसा मसीह सचमुच मनुष्य बन गये हैं, ईश्वर का है”। पवित्र आत्मा हमें मानव बनने वाले ईश्वर को पहचानने में सहायता प्रदान करते हैं। इस क्रिसमस के अवसर पर ईश्वर हमें पवित्र आत्मा प्रदान करें कि हम बालक येसु को पहचान पायें और अपने हृदय रूपी चरनी में उनकी आराधना कर सकें।
-फादर फ़्रांसिस स्करिया