शब्द ने शरीर धारण किया और कुंवारी मरियम से जन्मा। वह एम्मानुएल हैं, ईश्वर हमारे साथ हैं (इसायस 7׃14)। वह न केवल हमारे बीच में हैं बल्कि वह हम में से एक हैं। वे चाहते तो दुनिया के सबसे धनवान राजा के महल में जन्म ले सकते थे। हम इब्रानियों के पत्र में पढ़ते हैं, ‘‘हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हमसे सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में वे हमारे समान थे और हमारे समान उनकी भी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है” (इब्रा. 2:17; 4׃15)। वे न केवल हमारी ही तरह मनुष्य हैं बल्कि वे ‘‘पूर्ण” मनुष्य हैं जैसे ईश्वर हमें देखना चाहता है। वह मरियम से उसी तरह जन्मे जैसे अन्य बच्चे अपनी माताओं से प्रसवपीड़ा के साथ जन्म लेते हैं और वे हमारी तरह ही बड़े हुए (लुकस 2׃51-52)। उनकी परीक्षा ली गई (मार.1׃12-13; मती 4׃1-11; लुकस 4׃1-13), कई बार और कई जगह ली गई यहाँ तक कि क्रूस पर मरण तक उनकी परीक्षा ली गई। उन्हें भूख लगी (मार.1׃12) और उन्हें प्यास भी लगी (योहन 4׃7)। वह हर तरह से ‘हम में से एक’ हैं।
उन्होंने न केवल हमारे स्वभाव को अपनाया बल्कि हमारे शरीर और लहू को भी (इब्रा.2:14)। हमारे स्वभाव, शरीर और लहू में उनका भागीदार बनना कोई ‘बीती घटना नहीं है, भले ही इसका हममें कोई प्रभाव न हो, बल्कि उनका जन्म और जीवन तथा पास्का रहस्य ‘हमारे साथ है उनकी कृपाओं के द्वारा, विशेषकर धर्मविधी (पूजनविधि) समारोहों के द्वारा जैसे ईश्वर चाहते थे कि ‘‘ईश्वर मनुष्य बने ताकि मनुष्य ईश्वर की संतान बनें” जैसे कलीसिया के धर्माचार्य मुक्ति की व्याख्या के समय कहा करते थे।
हमारे विश्वास को मज़बूत करने के कुछ बिन्दुः- क्रिसमस हमें याद दिलाता है कि: 1. पिता ईश्वर हमें इतना प्यार करते हैं कि अपने पुत्र को भी हमें देने के लिए तैयार होते हैं। (रोमि.8׃31-32; योहन 3׃16)। 2. ईश्वर हम में से एक बने कि हम अनंत काल तक उनके बने रहें, उनके परिवार के सदस्य (रोमि. 8׃29-30; इब्रा. 2׃110-18)। 3. हमारे सुख-दुख को बांटने के लिए ईश्वर हमारे साथ हैं। इस बात का अहसास करने के लिए कि हमें मरियम, यूसुफ, तीन ज्ञानियों, चरवाहों आदि की तरह बनना है जिन्होंने अपने को बालक येसु पर केन्द्रित रखा। 4. ईश्वर का मानवीय स्वभाव ग्रहण करने के रहस्य द्वारा मानवीय स्वभाव शुद्ध किया गया, पवित्र किया गया और फिर से नया बनाया गया, ठीक उसी तरह बल्कि उस से भी अधिक जब प्रारंभ में ईश्वर ने मनुष्य को बनाया था।
चुनौती के कुछ बिन्दु 1. क्रिसमस येसु का जन्म दिन है। हम याद रखें कि जिसका जन्मदिन मनाया जाता है, वही आकर्षण का केन्द्र होता है और उस दिन उसके लिए सब कुछ किया जाता है। हमारे क्रिसमस् उत्सव का केन्द्र कौन है? हम उनके जन्मदिन पर उनके क्या कर रहें हैं? 2. जन्मदिवस मनाने वाले शिशु के लिए सबसे अच्छा उपहार है उसके अपनों की मौजूदगी है। हम कितना समय चरनी में लेटे बालक येसु के साथ बिताते हैं? 3. क्या वास्तव में एम्मानुएल, ‘‘प्रभु हमारे साथ है” हमारे लिए कोई मायने रखते हैं? 4. पिता येसु को हमें मरियम के द्वारा देकर हम से चाहते हैं कि अब हम मरियम की तरह येसु को दूसरों के लिए अपने जीवन और उपस्थिति के द्वारा प्रदान करें। 5. क्या येसु हमारे क्रिसमस् में उपस्थित रहते हैं? क्या हम अपने जीवन में उन्हें थोड़ी सी भी जगह देते हैं? 6. ईश्वर की यह हार्दिक इच्छा है कि वे हमारे परिवार का हिस्सा या सदस्य बनें। क्या हम उनका अपने परिवार में स्वागत करगें विशेषकर जब कलीसिया हमें परिवार का वर्ष मनाने के लिए आमंत्रित करती है? 7. क्या ख्रीस्तीय माता-पिता अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को किनारे रखते हुए एक-दुसरे को उनके बुलाहट को जीने में मदद करेंगें जैसे मरियम और यूसुफ ने किया? क्या वे अपने बच्चों को उनकी जीवन की बुलाहट को पहचानने में मदद करेंगें ताकि ईश्वर की इच्छा उनमें पूरी हो या फिर उन पर अपनी इच्छाओं को लादेंगे? 8. क्या हमारे बच्चे अपने माता-पिता को माता-पिता होने की खुशी देगें जैसे येसु ने अपने माता-पिता को दिया? (इब्रा. 2׃10-18; रोमि. 8׃29-30)? चरनी में लेटा बालक हमसे कहता है׃ “क्या तुम मेरे रहने के लिए घर दोगे? देखो, मैंने तुम्हारे साथ रहने के लिए अपने पिता का घर छोड़ दिया। क्या एक परिवार दोगे जिसका मैं हिस्सा बनूँ? देखो, मैंने तुम्हारे लिए अपना घर त्याग दिया। क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे? देखो, मुझे अपना कहने वाला काई नहीं। क्या तुम मेरे साथ रहोगे? देखो, मैं कितना अकेला हूँ।“
-फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट, रायपुर धर्मप्रांत