एक बार फिर हम ख्रीस्त जयंती पर्व मना रहे हैं। इस त्योहार की सुखद बातों में लीन रहना, खुशियों व अन्य संतोषजनक बातों में रहकर इस साल भी ख्रीस्त जयंती बीत जायेगी और हमें अगले साल की ख्रीस्त जयंती का इंतजार करना पडेगा। 25 दिसंबर और उसके आगे पीछे के दिन ही इस त्योहार की आभा चमकती है। हर वर्ष इस समय पर सीमित समय में खुशियाँ पैदा करने के लिये निश्चित रूप से आने वाले मेहमान जैसा हो गया है। घरों और गिर्जाघरों की सजावट, जलते हुये नक्षत्र, क्रिसमस सांता, क्रिसमस ट्री, सुन्दरता तथा आकर्षण से भरा गौशाला, आतिशबाजी, क्रिसमस उपहार, स्वादिष्ट पकवान, मन पसंद खाना, केक आदि बातें इस त्योहार को मनमोहक बना देती है। लेकिन एक सवाल हमेशा पीछे छूट जाता है कि ये माहौल केवल चंद दिनों के लिये रहता है जो बाद में खेत की फूल की तरह मुरझा जाता है। और अगले साल का इंतजार करने के लिये हमें मजूबर रहना पड़ता है।
ख्रीस्त जंयती की चमक दमक जैसे खत्म हो जाती है। क्रिसमस ट्री में लगाये गये कुछ फुग्गे टूट जाते है, बाकियों की हवा निकल जाती है और वे ऐसे प्रतीत होते है मानो किसी के मरने का गम मना रहे हो। या फिर वे इस बात का आभास दिला रहें हो कि त्योहार निकल जाने से वे दुःख मना रहे हो। एक ऐसा त्योहार जो हमें खुशियों की चोटी तक ले गया और जल्द ही वहाँ से हमें गिरा दिया। बच्चों को अन्य सामान्य दिनों की तरह स्कूल जाना, काम करने वालों का काम पर लौटना आदि जीवन को आम दिनों की पटरी पर लौटा लाते हैं। जिन लोगों ने कर्जा लेकर ख्रीस्त जयंती मनायी थी उन पर कर्ज के बोझ जैसे पल आदि इस वर्ष के ख्रीस्त जयंती की निशान मात्र रह जाते हैं।
आईये हम प्रभु येसु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों के संदेश की ओर जरा दृष्टि डाले, ’’सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपा पात्रों को शांति मिले!’’ (लूकस 2:14)। मैं इस संदेश के आखिरी हिस्से पर जोर देना चाहूँगा जो मानव को मिलने वाला है -’’पृथ्वी पर ईश्वर के कृपा पात्रों को शांति मिले!’’ स्वर्गदूतों के अनुसार प्रभु येसु के जन्म के अवसर पर शांति केवल उन लोगों को है जो ईश्वर के कृपा पात्र हैं और यह ईश्वरीय शांति जिसको प्राप्त होती है वह लम्बे समय तक बनी रहती है या फिर यह अनश्वर भी हो सकती है क्योंकि यह ईश्वर की ओर से प्रदत्त है। अब सवाल उठता है कि कौन हैं वे ईश्वर के कृपा पात्र? कैसे हम ईश्वर की कृपा के पात्र बन सकते हैं? बाइबिल में इस अनुग्रह से पोषित कुछ इंसान है, हमें उनके जीवन से सीखना चाहिये कि कैसे वे ईश्वर के कृपापात्र बने और प्रभु येसु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों द्वारा गाये ’’शांति’’ के उद्घोषकों से लाभाविन्त हो जाए। माता मरियम (लूकस 1:10), जकरियस एवं एलिज़ाबेथ (लूकस 1:25,57,66-67), चरवाहे (लूकस 2:10-20), सिमयोन (लूकस 2:29-30), अन्ना (लूकस 2:36-38) आदि मनुष्य जीवित थे जिन्हें प्रभु येसु के जन्म पर वास्तविक शांति से अलंकृत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इन लोगों के जीवन के बारे में पवित्रग्रंथ बाइबिल में जो भी जानकारी दी गयी है उससे यह स्पष्ट है कि ये ईश्वर के कृपापात्र बनने के योग्य थे।
हम भी ईश्वर के कृपापात्र बन सकते हैं ताकि मुक्तिदाता येसु मनुष्य बनकर स्वर्ग से लाये जो शांति लेकर आये उसके लायक हम बने रहें। मरियम में हम प्रार्थनामय जीवन, ईशवचन का ज्ञान, विनम्रता, सेवाभाव, बुलाहट में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, प्रेमभाव, सहनशक्ति, त्याग आदि गुण हम देख सकते हैं। संत यूसुफ में धार्मिकता, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग भाव आदि गुणों को प्रकट किया गया है। जकरियस व एलिज़ाबेथ ईश्वर की दृष्टि में धार्मिक थे, आज्ञा तथा नियमों का निर्दोषता पूर्वक अनुसरण करना (लूकस 1:6), धार्मिक सेवा निष्ठा से करना आदि गुण ओतप्रोत है। (लूकस 1:11)। गरीब चरवाहों में ईश्वचन पर विश्वास, धार्मिक संदेश को निभाने में शीघ्रता, हृदय की नम्रता आदि गुण देखने को मिलते हैं। सिमयोन धर्मी व भक्त पुरूष थे, इस्राएल की सांत्वना की प्रतीक्षा में थे और पवित्र आत्मा उन पर छाया रहता था (लूकस 2:25)। नबिया अन्ना विधवा थी, 84 साल की उम्र में भी मंदिर से बाहर नहीं जाती थी, प्रार्थना, उपवास, ईश्वर की उपासना आदि में लीन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी (लूकस 2:36-38)।
उपरोक्त लोगों के जीवन से हमें यह सीखना होगा कि धार्मिकता व आंतरिक निर्मलता से ईश्वर हम ईश्वर के कृपापात्र बन सकते हैं। बाहरी दिखावे से बढ़कर मनुष्य के हृदय की स्वच्छता, त्यागपूर्ण जीवन, सेवा आदि गुण हमें ईश्वर के कृपापात्र बनने तथा ईश्वरीय शांति प्राप्त करने में सक्षम बना देते हैं। ईश्वरीय शांति चिरस्थायी और अंनत आनन्द दायक है। सांसारिक शांति व सांसारिक खुशियाँ अल्पकालीन है तथा दैनिक जीवन की समस्याओं में हमें हताश कर देते हैं। ईश्वरीय या आध्यात्मिक शांति दैनिक जीवन की समस्याओं में हमें साहस के साथ, बिना लडखडायें आगे बढ़ने में मदद करती है।
ख्रीस्त जयंती त्योहार की शांति व खुशियाँ यदि हमें जीवन भर प्राप्त होना चाहिये तो हमें ईश्वचनों के अनुसार जीवन बिताना चाहिये। जैसे कि प्रभु येसु ने कहा है कि ईशवचन के अनुसार जीवन बिताता है तो वे है उनकी माँ (मत्ती 12:50)। याने ईश्वर वचन को ग्रहण कर उसका पालन सामनेवालों को भी प्रभावित करता तथा उन में भी ईश्वचन को जन्म लेने का अवसर प्रदान करता है तथा इस तरह -ईश वचन ने शरीर धारण किया- (योहन 1:14) का कार्य सम्पन्न करता है। ईश्वर की आज्ञाओं का निचोड है ईश्वर को पूर्ण रूप से प्यार करना और अपने पडौसी को अपने समान प्यार करना। ’’जब प्यार करता इंसान, इंसान को ईश्वर दिल में जनमता है, जब बैर करता इंसान इंसान को ईश्वर दिल में मारता है’’। यह गीत यहाँ साबित होता है। इन तथ्यों के अनुसार ख्रीस्त जयंती 25 दिसंबर को ही नहीं बल्कि हर दिन हो सकती है। जब कभी भी एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से प्रेमभाव से व्यवहार करता है तब प्रभु येसु का जन्म होता है।
ख्रीस्त जयंती के समय मात्र पुण्य काम करके स्वयं को सही साबित करने वालों को भी सोचना चाहिये कि यह अच्छा कार्य 25 दिसंबर को ही नहीं बल्कि जीवन भर होना चाहिये। एक बार एक भिखारी को क्रिसमस के दिन अच्छा भोजन मिला। उसके बाद उसने कहा मेरा पेट केवल आज ही नहीं बल्कि आने वाले दिनों में भी मेरे साथ रहेगा। स्वयं को बड़ा धार्मिक दिखाने के लिये केवल ख्रीस्त जयंती के दिन गरीबों को भोजन देकर स्वयं को पूर्ण समझने वालों को समझना चाहिये कि प्रभु के पृथ्वी पर आने की खुशी व पुण्य काम साल में एक ही दिन नहीं बल्कि शेष दिनों में भी होना चाहिये। तभी प्रभु येसु के जन्म के अवसर पर मिलने वाली शांति चिर स्थायी शांति में बदल जायेगी।
अतः हमें मुक्तिदाता प्रभु येसु का जन्म तथा उससे मिलने वाली शांति एवं आनन्द को समय सीमा में न बांधकर जिन्दगी भर का अनुभव बनाना चाहिये। सांसारिक शांति व आनन्द केवल सीमित समय के लिये है लेकिन आध्यात्मिक शांति व आनन्द असीमित तथा बेहत्तर है जो अनन्त जीवन की ओर अग्रसर करते हैं।
ख्रीस्त जयंती के दिन हम सबों को इस अलौकिक एवं आध्यात्मिक शांति प्राप्त होने की कामना करता हूँ।