1. आगमन काल का उद्देश्य क्या है?
येसु मसीह के जन्म की तैयारी।
2. इस काल में बाईबल के किन महान व्यक्तियों के बारे में हम मनन चिंतन करते हैं?
इसायाह, एलियाह, योहन बपतिस्ता, ज़करियस, एलिज़ाबेथ, मरियम एवं युसूफ, तथा प्रभु येसु से संबंधित वे सभी लोग जो इस परिदृश्य में प्रकट होते हैं।
इन सभी व्यक्तियों में से मैं योहन बपतिस्ता के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ, क्योंकि वह एक खास व्यक्ति है। लेकिन उससे पहले मैं आप लोगों को एक छोटी सी पर बडी ही रोचक कहानी सुनाना चाहूँगा।
सूरज और गुफा की कहानी...
गुफा यह स्वीकार करती है कि वह गंदी है। यह एक बहुत ही ठंडी व नमी युक्त जगह है। गुफा के बारे में मुझे यह बात अच्छी लगती है कि वह अपनी अच्छाई व बुराई दोनों को जानती है। वह वास्तविकता को जैसी वह है, वैसे ही स्वीकार करने के लिए तैयार रहती है। अपनी सारी कमज़ोरियों के बावजू़द भी वह सूरज के बारे में जानने व उसका स्वागत करने के लिए तैयार रहती है। अपने आप को जैसे हम हैं वैसे स्वीकार करना इतना आसान नहीं है। हम में से अधिकतर लोग अपने स्वाभिमान को बहुत ही ऊँचा रखते हैं व दूसरों द्वारा दिये गये सुधारों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं रहते। हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ यहाँ तक कि माता-पिता भी अपने बच्चों का सुधार नहीं कर पाते; शिक्षक शिक्षकायें बच्चों को छू तक नहीं सकते। विद्यार्थिगण यह स्वीकार नहीं कर पाते कि वे भी कभी-कभी गलत हो सकते हैं, अथवा असफल हो सकते हैं। कोई ये भी सोचते हैं कि खेल के मैदान में वे कभी हार नहीं सकते। वे जब भी खेलते हैं तो उन्हें बस जीतना ही है।
योहन बपतिस्ता को देखिये। पीछले रविवार के सुसमाचार में हमने सुना (यो. 1:19-28) कि वह अपनी विनम्रता में कहता है कि वह मसीह नहीं है। वह एलियस नहीं है। वह मरूभूमि में पुकारने वाली एक आवाज़ मात्र है। अपनी विनम्रता में वह कहता है कि उन्हें प्रभु येसु से बपतिस्मा लेना चाहिए।
वह ये कहता है कि प्रभु येसु ख्रीस्त दुल्हा है और वह सिर्फ दुल्हे का साथी है। वह पानी से बपतिस्मा देता है लेकिन उनके बाद जो आने वाला है वह पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा। ऐसी है योहन बपतिस्ता की विनम्रता।
पवित्र बाईबल यह बताती है कि विनम्रता एक सदगुण है। स्तोत्र 19:4 कहता है ईश्वर ‘‘विनम्र व्यक्ति को विजय से अलंकृत करता है।’’ सुक्ति ग्रंथ 3:34 में हम पढते हैं - ‘‘ईश्वर विनम्र व्यक्ति का साथ देता है। ‘‘विनम्र लोग प्रज्ञावान होते हैं’’ (सुक्ति ग्रंथ 4:2)। संत याकूब बडे ही सुंदर ढंग से कहते हैं - ‘‘ईश्वर घमंडी का विरोध करता है परन्तु दीनहीन पर कृपादृष्टी करता है (याकूब 4:6) तथा इसलिए वह लागों से कहते हैं - ‘‘ईश्वर के सामने स्वयं को दीन हीन बना लो और वह तुम्हें ऊँचा उठाएगा (4:10)।
अपनी विनम्रता के साथ ही गुफा सूरज के बारे में कुछ जानने के लिए उत्सुक थी। इन्सान होने के नाते व प्रभु येसु में विष्वास करने वाले होने के नाते हमें भी उनके बारे में जानने के लिए हमेषा उत्सुक रहना चाहिए।
ज्योतिशियों - गास्पर, मेलखियोर, व बाल्थासर - ने आसमान में तारे को देखा। उनमें जिज्ञासा उत्पन्न हुई और उन्होंने ये जाना कि कोई खास पैदा हुआ है। वे बालक को नमन करना चाहते थे। अंत में जब वे बालक के पास पहुँचे तो उन्हें ये आभास हुआ कि वह तो सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। यदि उन्होंने वो लम्बी व कठीन यात्रा न की होती तो वे प्रभु येसु से गौषाला में नहीं मिल सकते थे। ज्योतिशियों की जिज्ञासा उनके लिये आशिष बन गई।
मूसा उत्सुक था - यह जानने के लिए कि होरेब पर्वत पर क्या हो रहा था। उसने देखा कि एक झाडी जल रही है पर भस्म नहीं हो रही है। वह इसका कारण पता करना चाहता था और वह ईश्वर के दर्षन से नवाज़ा गया। ईश्वर जलती हुई झाडी के माध्यम से उससे मिलने आये।
योहन बपतिस्ता यह जानने के लिये उत्सुक था कि नाज़रेत के ईसा ही मसाीह हैं जो आने वाले थे। इसलिये वह अपने शिष्यों को इसका पता करने हेतु भेजता है।
योहन बपतिस्ता के प्रथम शिश्य ये जानना चाहते थे कि प्रभु येसु कहाँ रहते हैं। इसलिए उन्होंने उसका अनुसरण किया व उनसे पुछा कि वे कहाँ रहते हैं- अपनी इस जिज्ञासा के कारण उन्हें प्रभु के प्रथम शिश्य बनने का सौभाग्य मिला।
ज़केयुस, एक नाकेदार यह जानना चाहता था कि ईसा कौन है इसलिये वह दौडकर एक गूलर के पेड पर चढ गया। अपनी इस सु-ईच्छा के कारण ईश्वर उसके लिये रूक गये, उसे नीचे उतरने को कहा तथा उसके घर भोजन करने गये। ज़केयुस की जिज्ञासा ने उसे एक नया इंसान बना दिया।
जब पौलुस अपने घोडे पर से गिर गया, वह उस व्यक्ति को जानना चाहता था जिसे उसने देखा था। इसलिए उसने पुछा - ’’प्रभु आप कौन हैं?’’ ईश्वर ने जवाब में उसे अपने प्रेम में ऐसे बाँध लिया कि वह प्रभु येसु के लिए एक महान प्रेरित बन गया। ईश्वर के साथ एक साक्षात्कार/मुलाकात इंसान को बदल देती है। ज्योतिषी अपने-अपने देष खुशी-खुशी वापस गये। मूसा जो कि एक कायर व्यकित था, जो फिराऊन से डर कर भाग गया था, अब एक स्वतंत्र कराने वाला व नियम देने वाला बन गया। उसने अपने जिस कार्य के लिए वो आया था उसके लिये संतुष्टि प्राप्त की। योहन बपतिस्ता के प्रथम शिश्य प्रभु के प्रेरित बन गये। एक शहीद बना तो दूसरा एक महान सुसमाचारक। ज़केयुस के जीवन में एक महान परिवर्तन आया व साऊल पौलुस बन गया, गैरयहुदियों का प्रेरित तथा जिन्होंने कलीसिया के दरवाजे सब प्रकार के लागों के लिए खोले।
अब हम तीन प्रकार के प्रश्न करें
1. क्या में अपने वचनों व कर्मों में विनम्र हूँ।
2. क्या ईश्वर को जानने के लिए मैं जिज्ञासु हूँ
3. ईश्वर को जानने के लिये मैं क्या प्रयास करता हूँ?
4. क्या मैं बदला हुआ इंसान हूँ? यदि हाँ तो मैं शायद कह सकता हूँ कि मैं ईश्वर को जानता हूँ। यदि मैं, मुझमें कोई बदलाव नहीं पाता तो इसका मतलब है कि मैं ईश्वर केा नहीं जानता।
गुफा यह स्वीकार करती है कि वह सूरज की उपस्थिति से एक सूखी, सुन्दर जगह बन गयी, जहाँ लोग आ जा सकें व आराम कर सकें। जो लोग ईश्वर का अनुभव करते हैं वे निष्चय ही उसे स्वीकार करेंगे। वे इसे छीपा नहीं सकते।
जब वृद्ध सिमियोन ने बालक येसु को अपनी बाहों में लिया तब उसने ऊँचे स्वर से ईश्वर की प्रंषसा की व यह घोशित किया कि उसने, उसकी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है। उसने कहा कि वह अब मरने के लिए तैयार है।
नबिया अन्ना ने जब बालक येसु को अपनी गोद में लिया तो उसने भी ईश्वर की महिमा की। संत लूकस कहते हैं कि उसने बालक के विषय में उन सब को बताया जो येरूसलेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे(2:48)।
जब ज़केयुस का ईसा से मिलन होता है तो उसने कहा कि वो अपनी संपंत्ति का आधा हिस्सा गरीबों को दे देगा व जिससे भी उसने लूटा है उन्हें उनका चैगुना लौटा देगा। जब मरियम मग्दलेन का पुनरूत्थित येसु से साक्षात्कार हुआ तो वह प्रेरितों के पास दौडती हुई गयी और उन्हें बताया कि प्रभु ईसा जी उठे हैं। संत योहन अपने सुसमाचार में कहते हैं कि वह ‘‘गयी और शिष्यों को यह घोशित किया’’ कि उसने ‘‘जीवित प्रभु को देखा है’’ (20:18)।
कहा जाता है कि पवित्रता प्रभु की ईच्छानुसार जीने में नीहित है। जब संत डोन बोस्को ने अपने होस्टल के छात्र डोमिनिक सावियो के बिस्तर पर कंकड व काँटे बिछे पाये तो उसने उससे उस व्यवस्था का राज़ पूछा। सावियो ने कहा कि इस प्रकार की तपस्या करके वह एक संत बनना चाहते हैं। डोन बोस्को ने उससे कहा- तुम एक विद्यार्थि हो। एक अच्छे विद्यार्थि बनो। अपना गृह कार्य (होम वर्क) ईमानदारी से कारो। एक अच्छा ईसाई बनो, एक संत बनने के लिए यह काफी है।
जब संत पौलुस एफेसियों को पत्र लिखते हैं तो वे उन्हें समझाते हैं कि वे अपनी बुलाहट के अनुसार आचरण करें (4:1।)। तथा जिस पहले गुण पर वह प्रकाष डालते हैं वह है विनम्रता। वे कहते हैं कि ‘‘आप लोग विनम्र व सौम्य तथा सहनषील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें’’ (एफे. 4:2)। यदि हम वैवाहिक जीवन के लिए बुलाये गये हैं तो हमें उसके अनुसार अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहिए। आपसी प्रेम व वफादारी बहुत ही महत्वपूर्ण गुण हैं। जब आपसी विष्वास खो जाता है तो सारा वैवाहिक जीवन तबाह हो जाता है। यदि हम पुरोहित या धर्म भाई अथवा बहन बनने के लिए बुलाये गयें हैं तो हमें जो व्रत हम लेते हैं उनके प्रति वफादार रहना चाहिए, प्रार्थना में समय बिताना चाहिए, तथा अपने समुदाय मंे एक दूसरों का आदर करना चाहिए। यदि हम विद्यार्थि हैं तो हमें अपने माता पिता का आदर करना चाहिए, अच्छे से पढाई करना चाहिए, ईमानदारी से हमारा होम वर्क करना चाहिए। यदि हम होस्टल में हों तो नियम व कायदों का पालन करना हमारा फर्ज़ बनता है।
योहन बपतिस्ता ने यही किया। वह जानता था कि वह मार्ग तैयार करने के लिए बुलाया गया है। वह निर्जन प्रदेष में एक आवज़ थी। उसका काम अपने आप को मसीहा के रूप में प्रदर्षित करना नहीं, परन्तु मसीह के लिए मार्ग तैयार करना था। यूनानी दार्शनिक सुक्रात ने एक बार कहा था - ‘‘अपने आपको जानो’’। इसलिए खुद को जानना/पहचानना हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक बार जब हम यह जानते हैं: हम कौन है? हमारी कमज़ोरी और ताकत क्या है? हमसे क्या-क्या उम्मिदें की जाती हैं? आदि तो हम चाहे अमीर हो या गरीब, दक्षिण के हो चाहे उत्तर के, चाहे आदिवासी हो या निम्न वर्ग के अथवा उच्च वर्ग के हम खुष रहेंगे। ये सारी चीजे़ अर्थहीन हो जायेंगी।
इस आगमन काल में जो अधिकतर, आषा के काल से जाना जाता है हम हमेषा सुनते हैं कि पुराने व्यस्थान का ईश्वर अपने लोगों के येरूसलेम में पुनर्वास की योजना बनाता है। वह वादा करता है कि वह उनकी गरीमा वापस लौटाएगा। इस पृथ्वी पर प्रभु येसु का मिषन पिता का अपने बच्चों से मेल-मिलाप कराना तथा इस्राएल की एक राष्ट्र के रूप में स्थापना करना जिसका ईश्वर याहवे है। ईश्वर का यह वादा एक तरह से पूरा हो चुका है तथा साथ ही युगायुग के लिए जारी रहता है। जैसा कि कहा जाता है प्रेममय सेवा कार्य की शुरूआत घर से होती है।
इसलिए, जो शादी-शुदा हैं तथा जिनके बच्चे हैं वे अपने जीवन का विश्लेषण निम्न तीन पहलुओं से करें।
पहला पहलु है पूरे परिवार का ईश्वर से संबंध। हमें देखना है हमने ईश्वर को हमारे जीवन में एक उचित स्थान दिया है या नहीं ? हम हमारी प्रार्थनाओं, पवित्र मिस्सा बलिदान व मेलमिलाप संस्कार के लिए नियमित हैं या नहीं? दूसरा पहलू है पुरुष का स्त्री से संबंधः याने पति-पत्नि के बीच का संबध। यहाँ ये सवाल किये जा सकते हैं- मैं अपने पति अथवा अपनी पत्नि के प्रति वफादार हूँ या नहीं, तथा क्या मैं अपने पति या पत्नि से प्रेम करता/करती हूँ या उसकी ख्याल रखता/रखती हूँ आदि। तीसरा पहलू है माता-पिता व बच्चों के बीच का संबंध। माता-पिता अपने आप से पूछ सकते हैं - क्या हम अपने बच्चों को उचित रीति से प्यार करते हैं? क्या हम प्रसंन्नतापुर्वक अपने बच्चों के लिए त्याग करते हैं? क्या हम जवाबदार माता-पिता हैं? क्या हम हमारे वचनों व कर्मों से अपने बच्चों को ख्रीस्तीय विष्वास देते हैं? आदि। बच्चों को अपने आप से पूछना चाहिए- क्या हम अपने माता-पिता द्वारा हमारे जीवन को आरामदाय बनाने के लिए किये गये त्याग को पहचानते हैं? क्या हम हमारे माता-पिता का आदर करते व उनसे प्रेम करते हैं? क्या हम हमारे माता-पिता के साथ खडे रहते हैं जब वे बीमार, लाचार, बूढे व अकेले हों?
18 दिसम्बर को संत पिता फ्राँसिस ने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पाँच टिप्स दियेः
1. कभी हार न मानें, निरन्तर प्रयास करते रहें, कभी हताष न हों
2. गरीब से गरीब तथा दुःखित लोगों में रूची रखें
3. कलीसिया, पुरोहितों व धर्मसंघीयों से प्रेम रखें
4. शाँति व अमन के पे्ररित बनें
5. येसु से बातें करें, याने प्रार्थना करें। येसु सबसे महान दोस्त है।
प्रिय बच्चों यदि हम संत पापा के निर्देषों के अनुसार चलेंगे तो हम अच्छे बच्चों के रूप में बढेंगे जो कि पे्रमी, स्नेही, कठोर परीश्रमी, आध्यात्मिक जीवन में व अध्ययन दोनों में अच्छा करने वाले हों। हम गरीबों व बीमारों की सेवा कर पायेंगे तथा दुनिया में शाँति को बढावा देंगे। इस सप्ताह पाकिस्तान के पेषावर में आतंकवादियों द्वारा 130 से भी ज्यादा मासूम बच्चों की गोलियों से भूनकर निर्मम हत्या कर दी गयी। वे आप लोगों के समान ही नन्हें फूल थे। उन्होंने जीवन नहीं देखा। बडों की गलती के लिए उन्हें मरना पडा। हम ईश्वर को धन्यवाद दें कि हम हमारे देष व नगर में जीवन का आनंद ले पा रहे हैं।
पुरोहित व धर्मसंघी होने के नाते हमें यह पूछना चाहिए- क्या हम ईश्वर व उसके लोगों के प्रति अपने समर्पण को योग्यरीति से जीते हैं? हमारा अभिषेक करने वाले धर्माध्यक्ष से किये गये वायदे को हम निभाते हैं या नहीं? क्या हम हमारे प्रोविंश्यल, अन्य धर्म बहनों, माता-पिता तथा रिष्तेदारों के सम्मुख लिये गये हमारे व्रतों के प्रति वफादार हैं या नहीं?
अब मैं मात्र एक वचन लेता हूँ जो प्रभु येसु के जन्म का वर्णन करता है जो संत लूकस के सुसमाचार से है। वचन कहता है- और उसने अपने पहलौटे को जन्म दिया, उसे कपडे में लपेटकर चरनी में लेटा दिया, क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी।’’ 2:7
मरियम को अपने पहलौटे को एक चरनी में जन्म देना पडा क्योंकि सराय में उनके लिए जगह नहीं थी। हम जानते हैं कि बेतलेहेम में कई सराय उपलब्ध रही होंगी। लेकिन लोगांे ने मरियम और युसूफ की और देखा होगा, वे उन्हें बहुत गरीब लगे और उन्होंने सोचा होगा ये लोग सारा किराया चुकाने की स्थिति में नहीं होंगे। इसलिए वे कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते थे अतः उन्होंने मरियम और युसूफ को सराय में जगह नहीं दी। हम भी हमारे जीवन में लोगों के साथ उनके अमीर होने अथवा गरीब होने व उच्च जाती का होने अथवा निम्न वर्ग का होने के आधार पर अलग-अलग तरह से पेष आते हैं। कभी-कभी हमें हमारे जीवन में जोखिम उठानी चाहिए। हम तभी जीवन में ऊपर उठ सकते हैं। यदि हम जोखिम नहीं उठाते, हम वहीं रह जायेंगे जहाँ हम हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि लोग अपने धंँधे में बहुत ही व्यस्त थे और उन्होंने मरिमय व युसूफ की तरफ ध्यान नहीं दिया। हम पुरोहितों व धर्मबहनों के साथ ऐसा हो सकता है। जब हम व्यस्त रहते हैं हम, हमसे मिलने आने वाले लोगों की ओर तथा हमारे आस-पास के लोगों की ओर ध्यान नहीं देते। लोगों की और ध्यान नहीं देना उन्हें दरकिनार करना उन्हें ठेस पहुँचा सकता है। हम गुस्सा हो जाते हैं या फिर छिड जाते हैं। यदि एक बार लोग ये जान लें कि हम बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं तो वे हमारे पास आना बंद कर देंगे। वे हमसे किनारा करने लगेंगे। यह पति-पत्नि व माता-पिता व बच्चों के बीच भी हो सकता है। इस प्रकार की परिस्थितियों के प्रति हमें जागरूक रहना चाहिए।