एक अमरिकी इंजीनियर, हेलमुट इ.ष्रान्क ने प्रभु येसु के इस धरती पर जन्म लेने की घटना की मनुष्य के चन्द्रमा पर उतरने की घटना से तुलना की। 20 जुलाई 1969 को नैल आर्म्सस्ट्रोंग ने चन्द्रमा की जमीन पर कदम रखे। वह मानव इतिहास का एक अनोखा दिन था। उस उपलब्धि के पीछे एक दशक की योजना, तैयारी और परीक्षण थे। इसी प्रकार जब ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को इस दुनिया में भेजने की योजना बनायी, तो उन्होंने भी बड़ी तैयारियाँ की। उत्पत्ति ग्रन्थ 3:15 में हम इस योजना की पहली घोषणा पाते हैं। उस समय से लेकर इस महानतम घटना की तैयारी शुरू हुई। तत्पश्चात ईश्वर ने चाहा कि उनके चुने हुए लोग इस घटना की भविष्यवाणी करें। हम इब्राहिम, मूसा, दाऊद, इसायाह और अन्य लोगों के मुँह से इस प्रकार की भविष्य्वाणी सुनते हैं। समय आने पर पिता ईश्वर ने मसीह के अग्रदूत सन्त योहन बपतिस्ता को भेजकर उनके आगमन के लिए निकटतम तैयारियाँ की।
अप्पोल्लो मिशन के लिए हजारों वैज्ञानिकों ने अपनी बुद्धि से योगदान दिया। ढाई लाख मील दूरी पर स्थित चन्द्रमा पर मनुष्य को उतारना कोई आसान काम बिलकुल ही नहीं था। इस कार्य के लिए जिस आधुनिक रोकट को बनाया गया, उसके लिए बडे ज्ञान तथा ताकत की जरूरत थी। दुनिया के बडे से बडे वैज्ञानिकों ने मिलकर इस कार्य के लिए योजना बनायी। इसी प्रकार अपने पुत्र को इस दुनिया में भेजने के पहले सर्वज्ञानी ईश्वर ने पापी मानव के उद्धार के लिए एक योजना बनायी जिसमें बालक येसु के एक कुँवारी से जन्म लेना, उनके प्रवचन, प्रेरितों का चयन, चमत्कार, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण शामिल थे।
अप्पोल्लो मिशन के लिए एक हजार करोड अमरिकी डालर खर्च किये गये। ईश्वर के मानव-मुक्ति के मिशन का खर्च था ईश्वर के पुत्र के रक्त बहाकर क्रूस पर कुरबानी।
अप्पोल्लो मिशन के विभिन्न चरणों के लिए बारिकी से पूर्व-निर्धारित योजनाओं की समय सारणी बनायी गयी और उसका पालन किया गया। गलातियों के नाम सन्त पौलुस के पत्र 4:4 में हम पढ़ते हैं कि “समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए”। प्रभु येसु ने कहा, “‘‘पिता ने जो काल और मुहूर्त अपने निजी अधिकार से निश्चित किये हैं, तुम लोगों को उन्हें जानने का अधिकार नहीं है (प्रेरित-चरित 1:17)।
अप्पोल्लो मिशन में तीन वैज्ञानिक गये थे। इनमें से दो ही ने चन्द्रमा की जमीन पर अपने पैर रखे - नैल आर्म्सस्ट्रोंग और एडविन ऑलड्रिन। तीसरा वैज्ञानिक, श्री माईकल कोलिन्स चन्द्रमा के परिक्रमा-पथ पर रह कर दूसरे दोनों वैज्ञानिकों के द्वारा किये गये हरेक कार्य में शामिल था और अपना योगदान देता रहा। इसी प्रकार ईश्वर के मानव-मुक्ति की योजना में पुत्र और पवित्र आत्मा ही प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। फिर भी पिता ईश्वर इस मिशन में पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ सक्रिय रूप से शामिल थे।
वैज्ञानिकों को अपने मिशन के लिए अपने शरीर को तैयार करना पडा। इस के लिए उन्हें अंतरिक्ष-सूट पहनना पडा। इसी प्रकार इस दुनिया में आने के लिए ईश्वर ने भी एक मानव शरीर को अपनाया।
चन्द्रमा की जमीन पृथ्वी के समान नहीं थी। वैज्ञानिकों के अनुसार चन्द्रमा में कोई प्राकृतिक सुन्दरता नहीं है। वहाँ न कोई झरना है, न पहाड, न जंगल, न आकाश और न बादल। ऐसी जगह पर ही वैज्ञानिक उतरे थे। स्वर्ग के महिमामय वातावरण से पृथ्वी पर उतरने वाले ईश्वर का भी ऐसा ही अनुभव था।
चन्द्रमा में पहुँचने के बाद वैज्ञानिकों ने हमेशा रेडियो पर धरती के कन्ट्रोल रूम से अपना संबंध बनाये रखा। इसी प्रकार प्रभु ने भी इस धरती पर रहते समय हमेशा अपना संबंध अपने पिता के साथ प्रार्थना के द्वारा बनाये रखा। हालाँकि अप्पोल्लो मिशन के लिए एक दशक की तैयारियाँ की गयी थी, वैज्ञानिकों ने चन्द्रमा पर बहुत ही कम समय बिताया था। इसी प्रकार हजारों सालों की तैयारी के बाद भी येसु ने मिशन कार्य के लिए मात्र करीब 33 वर्ष इस धरती पर बिताये।
वैज्ञानिकों ने अपने पदचिह्नों के अलावा, अपने चन्द्रमा पहुँचने के सबूत और यादगार के रूप में एक पटिया छोडा जिस पर यह अंकित था, “जुलाई 1969 में यहाँ धरती के मनुष्य पहली बार चन्द्रमा पर उतरे। हम सारी मानवजाति की शांति के लिए आये।“ उस पटिये पर इस मिशन में शामिल चार लोगों के नाम और हस्ताक्षर भी अंकित हैं। यह हमेशा लोगों को मनुष्य के पहली बार चन्द्रमा पहुँचने की घटना की याद दिलाएगा। प्रभु येसु भी अपने पदचिन्हों के अलावा, अपने रक्त से अंकित क्रूस और खाली कब्र छोड गये। उन्होंने प्रेरितों को भी नियुक्त किया जिन्हें अपने मिशन को जारी रखने का कार्य दिया गया था।
अपने मिशन पूरा करके जिस प्रकार वैज्ञानिक धरती पर वापस आये, उसी प्रकार अपना मिशन पूरा करके प्रभु येसु वापस स्वर्ग गये।
इन समानताओं के अतिरिक्त कुछ महत्वपूर्ण असामानताएं हमें देखने को मिलती हैं। मनुष्य ने अपनी जिज्ञासा के कारण चन्द्रमा पर पहुँचना चाहा। सोवियत संघ को अंतरिक्षी तकनीकी में पीछे छोडने के लक्ष्य से ही अमरिका ने चन्द्रमा मिशन की योजना बनाई थी। लेकिन ईश्वर ने प्यार से प्रेरित होकर अपने मिशन की योजना बनायी थी। उनका सबको आगे बढाने का लक्ष्य था, न कि पीछे छोडने का। हालाँकि चन्द्रमा जाने का लक्ष्य शांति स्थापित करना बताया गया, वास्तव में शांति की स्थापना येसु ही करते हैं। आइए हम हमारे बीच आए मसीह का हार्दिक स्वागत करें। स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उनके कृपापात्रों को शांति! आप सभी को ख्रीस्त जयन्ती की शुभ कामनाएं।