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यह बालक कौन हैं?

Smiley faceक्रिसमस प्रभु येसु के जन्म का त्यौहार है। किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व उसके गर्भधारण से शुरू होता है। यह एक पुरुष और स्त्री के शारीरिक संबंध से संभव होता है। कुछ महीनों तक उसकी माता के गर्भ में रहने के बाद, उसका जन्म होता है। लेकिन बेथेलेहेम की गोशाले में येसु का जन्म एक महान रहस्य है। योहन 8:58 में प्रभु येसु कहते हैं, “इब्राहीम के जन्म लेने के पहले से ही मैं विद्यमान हूँ"। इससे हमें पता चलता है कि उनका अस्तित्व माता मरियम के कोख में आने पर शुरू नहीं होता है। योहन 6:38 में वे कहते हैं, “मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।” योहन 6:51 में वे कहते हैं, “स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ।” लूकस 19:10 में वे कहते हैं, “जो खो गया था, मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।” इन वाक्यों और पवित्र बाइबिल के अन्य अनेक वाक्यों से हमें पता चलता येसु मरियम के कोख में उत्पन्न नहीं होते बल्कि वे पहले से विद्यमान हैं। इसी कारण वे अपने ’जन्म’ बारे में नहीं, बल्कि अपने ’आने’ के बारे में हमें बताते हैं। इस रहस्य को हम “ईश्वर का शरीरधारण” कहते हैं।

xmasसंत योहन (1:1-18) इस रहस्य को प्रकट करते हुए कहते हैं कि ईश्वर का अनादि श्ब्द, जो ईश्वर के साथ था और ईश्वर था, समय की पूर्णता में मानव शरीर धारण करता है। क्रिसमस ईश्वर के इस रहस्यमय देहधारण का त्यौहार है। प्रभु येसु स्वयं ईश्वर हैं। इसलिए वे अपने शिष्य फिलिप से कहते हैं, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है” (योहन 14:9)। इस रहस्य को साफ-साफ प्रकट करते हुए वे कहते हैं, “मैं और पिता एक हैं” (योहन 10:30)। इस रहस्य के बारे में संत पौलुस कहते हैं, “वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।” (फिलिप्पियों 2:6-8) देहधारण के समय प्रभु ईश्वर न केवल हमारे समान मनुष्य बनते हैं, बल्कि अपने आप को दीन-हीन बनाते हैं। इसलिए उनका जन्म बेथेलेहेम की गोशाला में हुआ। इसलिए वे कहते हैं, “लोमडियों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोसलें, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है" (मत्ती 8:20)

प्रभु येसु अपने देहधारण से हमें उस महान सत्य का एहसास कराना चाहते है कि वे हम से दूर नहीं है, हमारे साथ हैं और हमारे अन्दरतम में हैं। जो उनके खोजते रहते हैं, वे उनका अधिक अनुभव करते हैं। करीब तीन दशकों के उनके मानव जीवन-काल में उन्होंने समाज के छोटे-से-छोटे व्यक्तियों, ज़रूरतमंदों, गरीबों तथा बीमारों के साथ रहने का एहसास कराया।

हमारी समान बन कर, हमारे साथ रह कर, हमारे जीवन के खट्टे-मीटे अनुभवों को अपना कर प्रभु ईश्वर अपना प्रेम, करुणा, दया तथा क्षमा प्रकट करते हैं। प्रभु के जन्म, जीवन, मृत्यु तथा सन्देश अनोखे हैं। वे एक अतुलनीय व्यक्तित्व हैं। वे अपने व्यक्तित्व की वास्तविकता को प्रकट करते हुए कहते हैं, “मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ” (योहन 14:6)। योहन 11:25 में वे कहते हैं, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ”। “वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं” (मारकुस 4:41)। “वे ... अधिकार के साथ शिक्षा देते थे (मत्ती 7:29)। मरने पर भी उनका अन्त नहीं होता, वे पुनर्जीवित होते हैं और स्वर्ग चले जाते हैं। स्वर्ग चले जाने पर भी वे कहते हैं, “मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ”(मत्ती 28:20) क्या मैं इनको नजर-अन्दाज कर सकता हूँ? नजर-अन्दाज करने पर भी सत्य तो सत्य ही रहेगा।

✍ - फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया