क्रिसमस और यूखारिस्त

Jubileeक्रिसमस का पर्व केवल एक ऐतिहासिक घटना का स्मरण नहीं है; यह उस रहस्य में हमारा प्रवेश है जिसमें ईश्वर स्वयं को इतना निकट, इतना कोमल और इतना विनीत बना देते हैं कि वे हमारी भूखी मानवता के लिए भोजन बन जाते हैं। चरनी में लेटा बालक कोई साधारण शिशु नहीं—वह जीवन की रोटी है (योहन 6:35)। इसलिए क्रिसमस और यूखारिस्त को अलग रखकर समझा ही नहीं जा सकता। जो बालक बेतलेहेम में जन्म लेता है, वही वेदी पर अपने को तोड़कर देता है।

पवित्र शास्त्र की शुरुआत बाग़-ए-अदन से होती है, जहाँ बाग़ के बीच में जीवन-वृक्ष था, जिसे खाने से जीवन मिलता है, यह मनुष्य और ईश्वर के बीच अलौकिक सहभागिता का प्रतीक था (उत्पत्ति 2–3)। साथ ही वहां भले तथा बुरे के ज्ञान का वृक्ष था, जिसे खाने से मौत मिलती है, जिसके विषय में ईश्वर ने कहा था - जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे'' (उत्पत्ति 2:1)। पर मनुष्य ने ईश्वर पर निर्भरता व उनके साथ अलौकिक सहभागिता के स्थान पर स्वायत्तता को चुना। उन्होंने ईश्वर की आज्ञा का उलंघन किया और इस अवज्ञा के कारण जीवन-वृक्ष का मार्ग बंद हो गया (उत्पत्ति 3:24), और मानव-इतिहास भूख से चिह्नित हो गया— अर्थ की भूख, क्षमा की भूख, प्रेम और निकटता की भूख, और अंततः ईश्वर की भूख। संत ऑगस्टीन इस सार्वभौमिक बेचैनी को शब्द देते हैं:“हे प्रभु, जब तक हम आपमें विश्राम नहीं पाते, हमारा हृदय बेचैन रहता है।” फिर भी ईश्वर ने मनुष्य को अकेला नहीं छोड़ा। बाग़-ए-अदन में ही प्रतिज्ञा दी गई—एक स्त्री...एक संतान...एक मुक्तिदाता (उत्पत्ति 3:15)। क्रिसमस उसी प्रतिज्ञा की पूर्ति है।

मरुभूमि में इस्राएल का प्रश्न—“हमें कौन खिलाएगा?” (गणना 11:4–6), हर युग का प्रश्न है। ईश्वर उन्हें मन्ना देते हैं, “स्वर्गदूतों की रोटी” (स्तोत्र 78:25)। यह प्रतिदिन दिया जाता था, संग्रह नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह विश्वास और ईश्वर पर भरोसे का चिन्ह था। यह ईश्वर के अनुग्रह का फल था याने किसी योग्यता की उपलब्धि नहीं था। फिर भी यह अपूर्ण है। स्वयं येसु कहते हैं:“तुम्हारे पूर्वजों ने मन्ना खाया, फिर भी वे मर गए” (योहन 6:58)। मन्ना सच्ची रोटी की ओर संकेत मात्र था, उस रोटी की ओर जो अनन्त जीवन देती है।

समय की परिपूर्णता में जीवन की रोटी बेथलहम में जन्म लेती है, जिसका इब्रानी भाषा में अर्थ है “रोटी का घर” – (• בֵּית (Beit) = घर לֶחֶם (Leḥem) = रोटी / भोजन)। उसे चरनी में रखा जाता है, जो कि मवेषियों के लिए भोजन का पात्र है। यह संयोग नहीं, बल्कि ईश्वरीय योजना है। यहाँ माता मरियम प्रथम संदूक (Tabernacle) हैं, जिसके विषय में एलिज़ाबेथ कहती है - “आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!” (लूकस 1:42); और चरनी प्रथम वेदी। लकड़ी की चरनी उस क्रूस की लकड़ी की ओर संकेत करती है, जो जीवन देने वाले फल का वृक्ष बनेगा, जहाँ मरियम के गर्भ का फल सबों के उद्धार हेतु खुद को दे देगा। जो बालक आज मौन है, वही कल कहेगा:“ले लो और खाओ, यह मेरा शरीर है… यह मेरा रक्त है” (मत्ती 26:26–28)।

योहन 6 में प्रभु येसु अपने आगमन का उद्देश्य प्रकट करते हैं:“जो मुझे खाता है, उसको मुझ से जीवन मिलेगा।” मूल अनुवाद में - जो मुझे खाता है, वह मेरे कारण जीवित रहेगा” (योहन 6:57)। यहाँ प्रयुक्त यूनानी शब्द dia - कारण, उद्देश्य और दिशा—तीनों को एक साथ प्रकट करता है। जैसे पुत्र पिता के कारण जीवित है, वैसे ही हम पुत्र के कारण जीवित होते हैं। यही क्रिसमस का यूखारिस्तिक केन्द्रीय भाव है। जो कोई पवित्र युखारिस्त में प्रभु येसु को ग्रहण करता है वह उनमे एक शरीर हो जाता है। इसीलिए संत पौलुस का कठोर प्रश्न हमारे सामने खड़ा होता है:“तो क्या मैं मसीह के अंग ले कर उन्हें वेश्या (पाप) के अंग बना दूँ?” (1 कुरिन्थियों 6:15) यूखारिस्त केवल एक सांत्वना नहीं, रूपांतरण है। यह एक अद्भुत अदला-बदली है, जिसमें हम अपनी दरिद्रता और अपवित्रता उनको देते हैं और अपनी पवित्रता के वस्त्र से हमें ढ़ांकते हैं- “प्रभु ने मुझे मुक्ति के वस्त्र पहनाये और मुझे धार्मिकता की चादर ओढ़ा दी है” (इसायाह 61:10)।

“क्योंकि रोटी एक है, हम अनेक होकर भी एक शरीर हैं” (1 कुरिन्थियों 10:17)। इसलिए यूखारिस्त बिना मेल-मिलाप के ग्रहण करना मसीह को गले लगाना और साथ ही उनके शरीर को चोट पहुँचाना है। क्रिसमस का आदेश नीरसता नहीं, मेल-मिलाप है; दूरी नहीं, करीबिपन व एकता है। मसीह जब कहते हैं: “यह मेरा शरीर है”, तो वे केवल वेदी से दी जाने वाली रोटी की नहीं बल्कि भूखों, प्यासों, नग्नों, कैदियों, अनाथों और बेसहारों की भी बात कर रहे होते हैं। इसी कारण वे कहते हैं -“तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’।” (मत्ती 25:40)। गरीब, पीड़ित और परित्यक्त—ये संसार में विस्तारित यूखारिस्त हैं। कूड़े में भोजन ढूँढता हर बच्चा कहता है: ‘यह मेरा शरीर है,’ टूटा हुआ, जर्जर, भूखा, और त्यागा हुआ; यौन शोषण की शिकार हर बच्ची, हर नारी ये कहती है – ‘ये मेरा शरीर है’; अत्याचार झेल रहा हर शख्स कहता है ‘यह मेरा शरीर है’; रोग, और पीड़ा में कराहता हर जिस्म ये कहता है ‘ये मेरा शरीर है।‘ और प्रभु येसु कहते हैं वो उनके भीतर हैं। संत मदर तेरेसा व कई संतों ने प्रभु को सिर्फ वेदी के संस्कार में ही नहीं बल्कि उनके विस्तृत स्वरुप में देखा और पहचाना और उन्हें उन लोगों में प्यार किया। क्रिसमस को सिर्फ अपनी चारदीवारी के भीतर मनाना अर्थहीन और फलहीन होगा।

अंततः क्रिसमस हमें वेदी तक ले जाता है, और वेदी हमें संसार की ओर भेजती है। प्रभु हमसे कहते हैं: “मुझे अपनी मानवता दे दो; मैं तुम्हें अपना दिव्य जीवन दे दूँगा।” चरनी और वेदी एक ही रहस्य हैं। और वही प्रभु आज भी फुसफुसाते हैं: मैं इसलिए जन्मा कि तुम मुझे ग्रहण करो और मेरे कारण जीवित रहो।

✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)