संत चावरा ने अपने मृत्युपत्र में आदर्श परिवार बनाने हेतु मार्गदर्शन के रूप में जो अनमोल निर्देश दिये थे उन से कुछ निम्न प्रकार हैं;
1. परिवार पृथ्वी का स्वर्ग: एक अच्छा मसीही परिवार पृथ्वी पर स्वर्ग है, वहाँ के सदस्य रक्त और प्रेम से बंधे हुए हैं, वे बड़े लोगों के और एक दूसरे के अधीन रहते हैं। वे आपसी सम्मान और एकता में बंधे हुए हैं। हर एक सदस्य के लिये अपना कर्तव्य ही जीवन लक्ष्य है।
2. परिवार के बच्चे ईश्वर की देन: आपके बच्चे ईश्वर द्वारा प्रदत्त निधि है। उनका अच्छा पालन पोषण एवं संरक्षण करना आपका कर्तव्य हैं। वे ऐसी आत्माएँ है जिन्हें ईश्वर ने आपको इसलिये सौंपा है कि आप मसीह के पवित्र रक्त द्वारा पवित्र करके उन्हें मसीह के सेवक बनायें और अंतिम न्याय विधि के दिन उन्हें ईश्वर को लौटा दें।
3. पारिवारिक प्रेम की आवश्यकता: परिवार के सदस्यों का आपसी प्रेम इतना दृढ़ एवं गहरा होना चाहिये कि वे प्रेम, शांति और भाईचारे के साथ जिंदगी के दुःख तकलीफों और समस्याओं का सामना कर सकें।
4. परिवार की दुर्बलता: परिवार के वातावरण में क्रमबद्धता, शांतिभाव और ईश्वरता आदि जीवन की दिलचस्पी बनी रहनी चाहिये। इन मनोभावों के अभाव में आर्थिक स्थिति अच्छी होने पर भी कई घराने बर्बाद हो गये हैं।
5. परिवार में क्षमा की आवश्यकता: हर एक परिवार के सदस्यों में आपसी संबंध का आधार ’प्रेम’ होना चाहिये। रक्त संबंधों से परिपुष्ट देव प्रेम एक दूसरे को स्वीकार करने और गलतियों को क्षमा करने को उत्प्रेरित करे। खानदानों के बीच मतभेद एवं झगड़ा कभी नहीं होना चाहिये।
6. परिवार में बच्चों के लिये प्रार्थना: बच्चों के अच्छे पालन पोषण में आप का ध्यान होना चाहिये, ईश्वर सान्निध्य में उन्हें याद करें और उनके लिये रोज प्रार्थना करें।
7. परिवार का सौन्दर्य: आप अपने बच्चों को विनम्रता एवं संयम में बढ़ने की शिक्षा दें। शारीरिक सौन्दर्य को अधिक महत्व देना एवं अश्लील वस्त्रधारण विपत्ति या विनाश की ओर ले जायेगा।
8. परिवार में सद्ग्रन्थ परायण: आप अपने बच्चों को नैतिक मूल्यों और सत् प्रेरणाओं से ओत-प्रोत पुस्तकों को पढ़ने दें। साथ ही साथ यह भी देखें कि वे गंदी किताबें तो नहीं पढ़ते क्योंकि ये किताबें सूखी घास में आग छुपाने के समान हैं।
9. परिवार में बच्चों की शिक्षा: बच्चों की शिक्षा में माता-पिता अधिक ध्यान दें। यह भी समय-समय पर देखें कि उनकी दोस्ती गलत मार्ग पर न जाये।
10. सजा में विवेक: बच्चों को डांटने और सजा देने में माता-पिता विवके एवं संयम रखें।
11. बचपन से ही प्रार्थना सिखाना: बचपन से ही बच्चों को प्रार्थना करना सिखलायें। वे ईश्वर के विश्वास में दृढ़ बने रहें।
12. दिनचर्या की आवश्यकता: आपकी दिनचर्या में अच्छी निष्ठा और क्रमबद्धता होनी चाहिये। वह बिना जिल्दबन्द किताब के समान न हो।
13. प्रभु का मार्ग दिखाना: जब बच्चे सयाने हो जाते हैं तब माता-पिता उन्हें इतनी आजादी दें कि वे अपनी बुलाहट या प्रभु का मार्ग स्वयं चुन सकें।
14. धन संपत्ति का बंटवारा समय पर करना: माता-पिता के बूढ़े होने से पहले ही अर्थात उनके बुद्धिबल कमजोर होने से पहले ही वसीयतनामा करके संपत्ति का सही बंटवारा करना चाहिये।
15. माता-पिता की सेवा करना: बच्चे हमेषा अपने माता-पिता का आदर करें, उनकी वृद्धावस्था और बीमारी में बहुत ध्यान से उनकी देख-रेख करें, इससे बच्चों को बहुत ईश्वरीय कृपा मिलेगी।
16. दूसरों के साथ संबंध: आपका प्रेम और संबंध विवेकपूर्ण हो, आपका संपर्क और दोस्ती केवल धार्मिक लोगों के साथ हो।
17. क्षमाशील व्यवहार: बदले की भावना से दूसरों के साथ व्यवहार करना जानवर का स्वभाव है। लेकिन मानवीय मन की शक्ति एवं विषेषता इसी में निहित है कि वह विवेक और क्षमा के साथ व्यवहार करे।
18. न्यायालय ना जाना: अपने भाई या परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ अगर मुकदमा हो तो उन्हें न्यायालयों तक न ले जायें। यह हृदयों के परस्पर संबंधों की दूरी का कारण बन जायेगा।
19. उधार न लेना: दूसरे से उधार लेकर खर्च न करें। आपकी ऋणबाध्यता आने वाली पीढ़ियों के लिये बोझ बन जायेगी।
20. दिखावा न करना: यदि आप धनी हैं तो उसका दिखावा न करें। विनम्रता से जीवन बिताने का प्रयत्न करें। विवाहोत्सव जैसे अवसर पर अनावश्यक आडम्बर अथवा धूम्रपान के दिखावे से दूर रहें, वह उस आग के समान क्षण भर ही टिकता है जो सूखी घास के ढेर को क्षण भर में भस्म कर देती है। वह छोटा सा दीपक जो सदैव जलता रहता है उस आग से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
21. कंजूस न होना: अनावश्यक आडम्बर के समान कंजूसी भी एक बुराई है आपका धन मानवों की भलाई के लिये खर्च करें, अन्यथा वह धार्मिकता नहीं।
22. संबंध किन लोगों से रखना: आप ऐसे परिवारों से रिष्तों बनायें जो ईश्वर में विष्वास और निष्ठा रखते हैं। संबंधों का मुख्य मापदण्ड संपत्ति नहीं होनी चाहिये।
23. कठिन मेहनत: आपने परिवार में परिश्रमशीलता बनाये रखें। आलस पारिवारिक रिष्तों में शिथिलता लाती है।
24. शराब: शराब पीने की बुरी आदत आपके घर में प्रवेष न कर पाये वह पारिवारिक रिष्तों में शिथिलता लाती है।
25. व्यापार में बेईमान न होना: अपने व्यापारिक कार्यों में धार्मिकता न छोड़े। बेईमानी और चालाकी से जो धन अर्जित है वह बर्फ के समान जल्दी ही पिघल जायेगा।
26. दूसरों की सेवा: आपकी जिंदगी में ऐसा एक भी दिन न गुजरे जिसमें आपने दूसरों की सेवा या मदद न की हो । जब ईश्वर आपकी जिंदगी का लेखा देखेगा तो उन सेवारहित दिनों की गिनती नहीं होगी। भिखारियों को अपने द्वार से खाली हाथ न लौटायें।
27. उचित वेतन देना: आप अपने नौकरों को न्यायोचित वेतन दें, गरीबों और दुर्बलों की कभी निन्दा नहीं करें। उनके आँसुओं की बूँदे आपके विरूद्ध ईश्वर के सामने गवाही देंगी।
28. पूजा कार्य में भाग लेना: पूजा-पाठ इतनी सक्षम औषधी है जो परिवार को ज्योर्तिमय बनाये रखती है। इसलिये अगर हो सके तो रोज पूजा-पाठ करके ही सायें।
29. रविवार को कैसे मनायें: रविवार के दिन अथवा अन्य हुक्म पर्व के दिनों में सिर्फ पूजा-पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है। इन दिनों का अधिक समय अच्छे काम करने, अच्छी किताब पढ़ने, और ईशवचन सुनने में व्यतीत करें। गरीबों के घर जाकर उनकी सहायता करें, बीमारों से मिलकर उनको सांत्वना दें और अपने आत्मिक जीवन के लिए योग्य कार्य करके ही ऐसे दिन को पवित्र मनायें।
30. साक्षी बनना: परिवार में कितने भी बड़े मेहमान आये हों फिर भी पारिवारिक प्रार्थनाएं कभी नहीं छोड़नी चाहिये, उसे निष्चित समय पर ही करना चाहिए, आपका काम दूसरों के सामने साक्ष्य होगा।