चावरा कुरियाकोस एलियस का जन्म फरवरी 10, 1805 को केरल के आलप्पुषा जिला के कैनकरी नामक गाँव में हुआ। ईको चावरा और मरियम तोप्पिल उनके माता-पिता थे। स्थानीय प्रथा के अनुसार बच्चे को आठवें दिन चेन्नंकरी पेरिश में बपतिस्मा संस्कार दिया गया। 5 साल से 10 साल तक के अयु में उन्होंने गाँव के एक शिक्षक से भाषा ज्ञान और प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। बचपन से ही उनके हृदय में एक पुरोहित बनने की तीव्र इच्छा थी। इसलिए वे संत यूसफ गिर्जाघर के पल्लि-पुरोहित से इस के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे। सन 1818 में 13 साल की आयु में पल्लिप्पुरम में स्थित सेमिनरी में प्रवेश किया जहाँ मल्पान थॉमस पालक्कल अधिष्ठाता थे। 29 नवंबर 1829 को अर्तुंकल के गर्जाघर में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ और अपने पेरिश चेन्नंकरी में उन्होंने प्रथम यूखारिस्तीय बलिदान चढ़ाया। पुरोहिताभिषेक के बाद कुछ समय के लिए उन्होंने मेषपालीय कार्य किया। तत्पश्चात वे सेमिनरी में मल्पान थॉमस पालक्कल की अनुपस्थिति में अधिष्ठाता का कार्यभार संभालने लगे। फादर कुरियाकोस मल्पान थॉमस पालक्कल तथा मल्पान थॉमस पोरूकरा के साथ मिलकर एक धर्मसमाज की स्थापना करने की योजना बनायी।
सन 1830 में इस धर्मसमाज का प्रथम मठ बनाने हेतु वे मान्नानम गये और वहाँ पर 11 मई 1831 को उस घर की नींव डाली गयी और ’निष्कलंक मरिया के कार्मलीती’ (Carmelites of Mary Immaculate - CMI) नामक धर्म्समाज की स्थापना हुई।। दोनों मल्पानों के स्वर्गवास के बाद फादर कुरियाकोस नेतृत्व का कार्य अपने ऊपर ले लिया। 10 दिसंबर 1855 को उन्होंने अपने 10 साथियों के साथ नये धर्मसमाज में व्रत ग्रहण कर लिया और उस समय उन्होंने अपने लिए ’पवित्र परिवार का कुरियाकोस एलियस’ नाम चुना। सन 1856 से मृत्यु (सन 1871) तक फ़ादर कुरियाकोस धर्मसमाज के परमाधिकारी बने रहे।
फ़ादर कुरियाकोस की अगुवाई में मान्नानम के बाद 6 और मठों की स्थापना हुई। केरल की सीरो मलबार कलीसिया के नवीनीकरण में सी.एम.आई. धर्मसमाज का बहुत बडा योगदान रहा। उन्होंनें पुरोहितों के प्रशिक्षण तथा पुरोहितों, धर्मसंघियों तथा साधारण विश्वासियों की वार्षिक आध्यात्मिक साधना को बहुत महत्व दिया। स्थानीय भाषा में काथलिक विश्वास की प्रामाणिक शिक्षा प्रदान करने हेतु एक प्रकाशना केन्द्र की स्थापना की गयी। अनाथों के लिए एक सेवाकेन्द्र को भी शुरू किया गया। सी.एम.आई. धर्मसमाज ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बडे योगदान देते हुए विभिन्न पाठशालाओं की भी स्थापना की। फादर लियोपोल्ड बोकारो के साथ मिल कर फादर कुरियाकोस ने महिलाओं के लिए कार्मल माता के धर्म समाज की भी स्थापना की। फादर चावरा ने ख्रीस्तीय जीवन को आगे बढाने हेतु कई किताबों की रचना की। वे विश्वास में सुदृढ तथा पड़ोसी प्रेम में तत्पर थे।
सन 1861 में जब मार थॉमस रोकोस संत पापा के मान्यता के बिना केरल आये और तत्पश्चात जो विच्छिन्न सम्प्रदाय की शुरुआत हुई, तब वरापोली के महाधर्माध्यक्ष ने फादर कुरियाकोस को उपधर्मपाल नियुक्त किया। उस विच्छिन्न सम्प्रदाय से केरल की कलीसिया को बचाने में फादर कुरियाकोस का सराहनीय योगदान हुआ।
3 जनवरी सन 1871 को फादर कुरियाकोस कोच्ची के कूनम्माव मठ में बीमारी के कारण उनका निधन हुआ। उनके पार्थिव शरीर को 1889 में मान्नानम ले जाया गया और वहाँ मठ के संत यूसुफ़ गिर्जाघर में रखा गया।
चावरा कुरियाकोस एलियस की मध्यस्थता से कई लोगों को चमत्कारिक चंगाई का अनुभव हुआ है। इस के अतिरिक्त सन्त अल्फोन्सा ने सन 1936 में बीमारी के दौरान दो बार कुरियाकोस एलियस के दर्शन पाने तथा उसके फलस्वरूप चंगाई प्राप्त होने का साक्य्स दिया है।
8 फरवरी 1986 को संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने कोट्टयम में चावरा कुरियाकोस एलियस को धन्य घोषित किया। 23 नवंबर 2014 को संत पिता फ्रांसिस ने रोम में उनको संत घोषित किया।