दिसंबर 27 - संत योहन प्रेरित

जेबेदी के पुत्र और संत याकूब महान के भाई संत योहन को हमारे प्रभु ने अपने सार्वजनिक प्रेरिताई के पहले वर्ष में एक प्रेरित के रूप में बुलाया था। वह ‘‘प्रिय शिष्य‘‘ बन गया और बारह में से एकमात्र जिन्होंने उनकी प्राणपिड़ा के घंटे में उद्धारकर्ता को नहीं छोड़ा। जब खीस्त ने उन्हें अपनी माता का संरक्षक बनाया तो वह निष्ठापूर्वक क्रूस के सामने खड़ा रहा।

येसु के स्वर्गारोहण के बाद योहन ने अपना जीवन मुख्य रूप से येरूसालेम और एफेसुस में गुजरा। उन्होंने एशिया माइनर में कई गिरजाघरों की स्थापना की, और उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्यों को लिखा, जिसमें चौथा सुसमाचार, तीन पत्रियाँ, और प्रकाशनाग्रंथ की पुस्तक भी शामिल है। उन्हें रोम में लाया गया, और परंपरा बतलाती है कि उन्हें सम्राट डोमेतियन के आदेश पर उबलते तेल की कड़ाही में डाल दिया गया था, लेकिन वह स्वस्थ बाहर निकल आए, और उन्हें एक वर्ष के लिए पाथमोस द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया। वह अपने सभी साथी प्रेरितों के बाद तक सलामत रहकर एक अत्यधिक वृद्धावस्था तक जीवित रहें, और एफेसुस में लगभग 100 वर्ष में उनकी मृत्यु हो गई।

संत योहन को प्रेम का प्रेेरित कहा जाता है, एक ऐसा गुण जो उन्होंने अपने दिव्य गुरु से सीखा था, और जिसे उन्होंने लगातार वचन और उदाहरण के द्वारा विकसित किया था। एफेसुस में ‘‘प्रिय शिष्य‘‘ की मृत्यु हो गई, जहां उनकी कब्र के ऊपर एक आलीशान कलीसिया बनाया गया था। बाद में इसे मुस्लिम मस्जिद में तब्दील कर दिया गया।

योहन को तीन पत्रों और एक सुसमाचार के लेखक होने का श्रेय दिया जाता है, हालांकि कई विद्वानों का मानना है कि उनकी मृत्यु के तुरंत बाद अन्य लोगों द्वारा सुसमाचार का अंतिम संपादन किया गया था। कई लोगों द्वारा उन्हें प्रकाशनाग्रंथ की पुस्तक का लेखक भी माना जाता है, जिसे रहस्योदघाटन कहा जाता है, हालांकि यह कम निश्चित है।


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