संत कथरीना का जन्म 287 में मिस्र के सिकंद्रिया में हुआ। उस समय सिकंद्रिया दुनिया के प्रसिद्ध शहरों में एक था। वह ज्ञान, संस्कृति तथा आस्था का केन्द्र था। पंरपरा के अनुसार कथरीना का जन्म एक संभ्रात परिवार में हुआ। वह सुशिक्षित एवं तीक्ष्ण बुद्धि की थी। चौहदह वर्ष की आयु में उन्हें माता मरियम जो बालक येसु को गोद में लिये खडी है के दर्शन हुये। इस दर्शन का उन पर गहरा प्रभाव पडा तथा उन्होंने ख्राीस्तीय बनने का निश्चिय किया।
जब सम्राट मैक्सनतियुस ने ख्राीस्तीयों पर अत्याचार शुरू किया तो कथरीना ने उनसे मिलकर ऐसा न करने का सलाह दी। सम्राट ने पचास उच्च श्रेणी के वक्ताओं और दार्शनिकों को बुलाकर कैथरीना के साथ तर्क-वितर्क करवाया। कथरीना कम उम्र की थी किन्तु वह अद्धितीय रूप से बुद्धिमती थी। पवित्रआत्मा की सहायता से उन्होंने ख्राीस्तीय विश्वास को प्रभावी ढंग से समझाया। कथरीना की वाणी इतनी प्रभावशाली थी कि उनमें से कई वक्ताओं ने ख्राीस्तीय विश्वास स्वीकार किया। सम्राट इस घटनाक्रम से अत्यंत क्रोधित हो गया तथा उसने उन वक्ताओं को जिन्होंने ख्रीस्तीय विश्वास स्वीकारा था को मृत्यु के घाट उतार दिया। उसने कथरीना को जेल में डालकर उसे घोर यातनायें दी। कथरीना की बात शहर में फैल गयी। करीब 200 लोग उससे भेंट करने आये। अंत में सम्राट ने कथरीना से ख्राीस्तीय विश्वास त्यागने के बदले विवाह का प्रस्ताव दिया। कथरीना ने इसे तुरंत अस्वीकार कर दिया। इससे वह आगबबूला हो उठा तथा उसने कथरीना को पहिये के चक्र में डाल कर मारने का आदेश दिया।
जब कथरीना को पहिये में डालने का समय आया तो कथरीना ने उसे छुआ इस पर आश्चर्यजनक रूप से पहिया टूट गया। तब सम्राट ने उसका सिर कटवा दिया। संत कथरीना की शहादत की घटना 305 में हुयी। वे विद्यार्थीयों और कुंवारियों की संरक्षिका है।
कथरीना का जीवन अदम्य साहस तथा विश्वास का जीवन था। उन्होंने अपने उज्जवल भविष्य की चिंता न करके येसु के नाम की गवाही देने के लिये अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। उन्होंने दुख सहा, यातनायें सही और अंत में मृत्यु प्राप्त की किन्तु येसु में उनका विश्वास अडिग बना रहा। ’’उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते।’’ (मत्ती 10:28) येसु की वाणी संत कथरीना के जीवन में वास्तविकता बन गयी।