संत एलीजबेथ का जीवन तुलनात्मक दृष्टि से छोटा किन्तु त्रासदियों से भरा जीवन था। उनका जन्म 1207 में हंगरी में हुआ। उनके पिता राजा एंड्रयू द्वितीय तथा माता गर्ट्रूड थी। जब वे छः वर्ष की थी तो उनकी माता की हत्या हो गयी। इस घटना से बालिका एलीजबेथ को गहरा सदमा लगा। पंद्रह वर्ष की आयु में उनका विवाह लुडविग से हुआ। विवाह ने उनके जीवन को खुशीयों से भर दिया। उनको तीन संतान प्राप्त हुयी।
एलीजबेथ का नैसर्गिक स्वाभाव धार्मिक था। वे हमेशा प्रार्थना किया करती थी। जीवन में हुयी सारी घटनाओं में उन्होंने ईश्वर पर भरोसा किया तथा प्रार्थना में शांति पायी। वे बेहद दयालु स्वाभाव की थी। उन्होंने गरीबों, अनाथों तथा बीमारों की मदद के लिये सतत् प्रयत्न किये। चूंकि वे धनी परिवार से थी इस कारण संसाधन उनके लिये कभी भी समस्या नहीं थे। वे अपनी सम्पति में से रोजाना हजारों गरीबों को रोटियॉ देती थी। सन 1226 में जब वहॉ बीमारी तथा बाढ आयी तो उन्होंने अपनी सम्पत्ति का बढा हिस्सा लोगों की सेवा तथा राहत में लगा दिया।
त्रासदी ने उनके जीवन में फिर दस्खत दी जब 1227 में उनके पति की एक बीमारी के बाद मृत्यु हो गयी। इस दुखद घटना ने उनके जीवन को पूर्ण रूप से ईश्वर की ओर मोड दिया। इस समय उनकी उम्र 20 वर्ष थी।
उन्होंने दोबारा विवाह करने से इंकार कर दिया। 1228 में उन्होंने फ्रांसिसकन धर्मसमाज में प्रवेश दिया। उन्होंने घोर तपस्या तथा सादगी का जीवन बिताया। वे अंतिम दिन तक परोपकार के कार्यों में लगी रही। 17 नवंबर 1231 में 24 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
संत एलीजबेथ आध्यात्मिक साहस की धनी थी। जीवन के सभी उतार-चढाव में उन्होंने ईश्वर की ओर देखा तथा पीडामय जीवन को फलदायी बनाया।
वे रोटियॉ बनाने वालों, भिखारियों, दुल्हनों, परोपकार के कार्यों, मृतक बच्चों, बेघर लोगों, विधवाओं, अस्पतालों की संरक्षिका संत हैं।