स्कॉटलैंड की संत मारग्रेट ब्रितानी राजकुमारी थी जिनका जन्म 1046 में हंगरी में हुआ। उनका विवाह स्कॉटलैंड के राजा मेलकम केनमोर तृतीय के साथ हुआ। मारग्रेट और मेलकम को आठ बच्चे हुये। वे एक पवित्र परिवार बन कर घरेरू कलीसिया का नमूना बन गये। मारग्रेट धार्मिक और दयालु स्वाभाव की थी। इससे उनके पति राजा मेलकम के राजकीय कामकाज पर बहुत प्रभाव पडा। राजा का उग्र स्वाभाव शांत हो गया तथा वह एक भला राजा बन गया। वे एक साथ प्रार्थना करते, भूखों को खिलाते तथा कलीसिया के विस्तार के लिये कार्य करते थे। राजा हर मुददे पर मारग्रेट से सलाह लिया करता था तथा राज्य के घरेरू मसलों पर निर्णय मारग्रेट ही लिया करती थी। उनका ख्राीस्तीय विश्वास उनके कार्यों में प्रदर्शित होता था।
मारग्रेट ने शिक्षा तथा कला को बढावा देने के लिये कार्य किये। उन्होंने गिर्जाघरों के निमार्ण में योगदान दिया, कलीसियों को धर्मसभा बुलाने के लिये प्रोत्साहित किया तथा कलीसिया में फैली बुराईयों को दूर करने हेतु प्रयास किये। गरीबों की मदद के लिये उन्होंने सतत प्रयत्न किये। उन्होंने लोगों को भक्ति, प्रार्थना तथा पवित्रता का जीवन जीने के लिये प्रेरणा दी। वे प्रार्थना तथा भक्ति में इतना जीवन बिताती थी कि उन्हें आराम करने का भी समय नहीं मिलता था। उन्होंने पत्नी, मॉ तथा ख्राीस्तीय विश्वासी के रूप में एक पवित्रता का जीवन बिताया।
1093 में एल्नविक की लडाई में उनके पति और सबसे बडे पुत्र की मृत्यु हो गयी। इस घटना के ठीक चार दिन बाद 16 नवंबर 1093 में मारग्रेट भी स्वर्ग सिधार गयी।
1250 में संत पापा इन्नोसेंट चौथे ने उन्हें संत घोषित किया। वे स्कॉटलैंड की संरक्षिका संत भी है। उनके जीवन से शिक्षा मिलती है कि एक सच्चा ख्राीस्तीय विश्वास का जीवन न सिर्फ स्वयं को बल्कि परिवार तथा पूरे राज्य को ख्राीस्तमय बना सकता है। मत्ती के सुसमाचार 5:16 में येसु के वचन, "तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करे।’’ संत मारग्रेट के जीवन पर खरी उतरती है।