संत लॉरेंस का जन्म सन् 1125 में लैन्सटर में हुआ। जब उनकी आयु मात्र दस वर्ष की थी तब उनके पिता ने उन्हें लैंसटर के राजा डरमोट मैक मुरेहाड के यहॉ बंधक के तौर पर रख दिया। राजा ने बालक लॉरेंस के साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार किया। बाद में राजा ने बंधक लॉरेंस को गैंडडाव के धर्माध्यक्ष को सौंप दिया। लॉरेंस ने पवित्रता तथा अनुग्रह से पूर्ण जीवन बिताया तथा युवास्था तक पहुंचते-पहुंचते वे पवित्रता के जीवन में परिपक्व हो गये थे। सभी मठवासियों के लिये वे सम्मान के पात्र थे।
जब मठ के एबट की मृत्यु हो गयी तो 1150 में उन्होंने युवा लॉरेंस को मठाध्यक्ष या एबट चुना। इस समय उनकी आयु 25 वर्ष थी। उन्होंने सभी मठों का संचालन अद्धितीय कुशलता तथा बुद्धिमता के साथ किया। 1161 में सर्वसम्मति के साथ उन्हें डबलिन का महाधर्माध्यक्ष चुना गया। 1171 में वे इग्लैंड के राजा हेनरी द्वितीय से मिलने गये जहॉ उनका भव्य स्वागत हुआ। राजा सहित सभी लोग उनकी धार्मिकता तथा पुण्य जीवन से बेहद प्रभावित हुये। इस दौरान जब संत लॉरेंस मिस्सा बलिदान चढाने वेदी की ओर बढ रहे थे तो एक दिमागी तौर पर असंतुलित व्यक्ति ने उनके सिर पर आघात किया। सभी ने सोचा की लॉरेंस शायद नहीं बचेंगे। किन्तु आश्चर्यजनक रूप लॉरेंस उठे तथा पानी मांगा। उन्होंने पानी को आशीष देकर उससे चोट की जगह को धोया। ऐसा करने के तुरंत बाद उनका खून सूख गया तथा लॉरेंस ने मिस्सा बलिदान चढाया।
1175 में इंग्लैड के राजा हेनरी द्वितीय आयलैंड के राजा रोडेरिक से किसी मुददे को लेकर नाराज हो उठे। लॉरेंस ने आयलैंड के राजा के साथ इंग्लैंड जाकर राजा हेनरी की नाराजगी दूर कर मैल-मिलाप स्थापित करने का प्रयास किया। राजा हेनरी लॉरेंस की सादगी तथा पुण्यता देखकर इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने झगडे के हल के लिये लॉरेंस द्रारा दिये गये सभी सुझावों को मान लिया। 1180 को संत लॉरेंस का निधन हो गया।