संत योसाफात कुंसेविच का जन्म संभवत 1580 या 1584 को हुआ। 1604 में इन्होंने होली त्रिनिटी मठ में प्रवेश लिया। दो येसु समाजी पुरोहितों के प्रोत्साहन से पुरोहित बनने की प्रेरणा पायी। योसाफात एक तपस्वी तथा घोर त्याग का जीवन बिताते थे। उनके जीवनचर्या से बहुत लोग ईर्ष्या करते थे क्योंकि वे स्वयं अच्छा जीवन नहीं बिता रहे थे। इस कारण योसाफात का विरोध किया जाता था।
जब वे 1617 में वेतेबस्क तथा बाद में पोलोस्तक के धर्माध्यक्ष बने तो उनका विरूद्ध और भी अधिक लोग हो गये। उनके धर्मप्रांत में गिरजाघरों की स्थिति बहुत दयनीय थी। अनेक गिरजाघर गिरने की कगार पर थे। पुरोहित वर्ग अपना कार्यभार ठीक ढंग से नहीं पूरा कर रहे थे। उनके जीवन में आध्यात्मिकता तथा नैतिकता की कमी स्पष्ट रूप से दिखती थी। अपने समर्पित तथा परिश्रम के जीवन के द्वारा उन्हांेने तीन वर्षों के अंदर ही धर्मप्रांत की चरमराती व्यवस्था को दुरूस्त कर दिया।
योसाफात की मुख्य चुनौती औरथोडोक्स पृथकवादी समूह था। पृथकतावादियों ने एक नये और अलग महाधर्माध्यक्ष मिलितुस स्मोत्रितस्की की नियुक्ति की। इस बात को लेकर गहरा विवाद हो गया। यहॉ तक योसाफात के स्वयं के लोगों ने योसाफात का समर्थन नहीं किया। वे पूजन विधि के प्रकारों को लेकर उनसे रूष्ठ थे।
1623 में योसाफात वेतेबस्क इस उम्मीद के साथ लौटे कि वे लोगों को शांत कर सकेंगे। किन्तु इसका कोई प्रभाव नहीं पडा। योसाफात रोम की कलीसिया के साथ पुन एकीकरण के पक्ष में थे किन्तु लोगों में इस पर परस्पर विरोधाभासी मत थे। मतभेद उग्र तथा हिंसक हो गया। इसी योसाफात के विराधी पक्ष ने उनकी एकीकरण के प्रस्ताव के कारण उन घर पर हमला किया तथा उनकी हत्या कर दी। उनके शव को नदी में बहा दिया।
योसाफात का जीवन एक कठिन जीवन था। उन्होंने सच्चाई के लिये हमेशा विरोध सहा तथा लोगों की भलाई के लिये अनेक दूरदर्शी कार्य किये तथा करने चाहे। इतने विरोध के बावजूद भी वे निडर होकर कार्य करते रहे तथा अंत में शहीद हो गये।