इतिहासकार यूसेबियुस के अनुसार कोस्टान्टाईन सन 306 में पवित्र रोमी राम्राज्य का सम्राट बने। वे ख्रीस्तीय विश्वासियों का विरोध करते तथा उनको सताते थे। परन्तु सन 312 में मिल्वियन पुल के युध्द के लिए जाने से पहले उन्होंने आकाश में एक क्रूस का चिह्न देखा जिसके नीचे लिखा हुआ था “इस चिह्न में आप विजय प्राप्त करेंगे”। इस पर सम्राट ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे अपने कवचों को क्रूस के चिह्न से सजायें। उस युध्द में उन्हें सफलता मिली। युध्द से वापस आ कर उन्होंने अपने देवी-देवताओं को छोड़ कर ख्रीस्तीय धर्म को अपनाया। सन 313 में मिलान का संपादन के द्वारा उन्होंने सभी धर्मों को स्वतंत्रता प्रदान की।
परम्परा के अनुसार सन 326 में सम्राट कोन्स्टान्टाईन की माता संत हेलेना पवित्र जगहों की खोज में येरूसालेम गयीं। वहाँ जिस जगह पर येसु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, उस जगह पर खुदाई के समय तीन क्रूस पाये गये। उनमें से एक पर अंकित था, “ईसा नाज़री यहूदियों का राजा।" इससे यह मालूम पडा कि यह प्रभु येसु का क्रूस है। उस पर स्पर्श करने पर एक बीमार महिला को चंगाई मिली। इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि यह प्रभु येसु का ही क्रूस है। सम्राट कोन्स्टान्टाईन ने 335 में वहाँ पर एक महा गिरजाघर बनावाया। 14 सितंबर 335 को उस गिरजाघर का प्रतिष्ठान हुआ। उस समय से येरूसालेम तथा आसपास की जगहों में पवित्र क्रूस के आदर में 14 सितंबर को त्योहार मनाया जाता था। सातवीं सदी से यह त्योहार लगभग सारी कलीसिया में मनाये जाने लगा।
प्रभु येसु का जन्म सुसमाचार था। उनका जीवन भी सुसमाचार था। उनकी मृत्यु भी सुसमाचार थी। क्योंकि उन्होंने अपनी मृत्यु से हमें विजय दिलाया।
1 कुरिन्थियों 1:22-24 में संत पौलुस कहते हैं, “यहूदी चमत्कार माँगते और यूनानी ज्ञान चाहते हैं, किन्तु हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गै़र-यहूदियों के लिए ’मूर्खता’। किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है”।
ख्रीस्तीय विश्वासी हर क्रूस को पवित्र नहीं मानते हैं, बल्कि उस क्रूस को ही पवित्र मानते हैं जिसे प्रभु येसु ने अपनी मृत्यु के द्वारा पवित्र किया है। क्रूस दुख-तकलीफ़ों का प्रतीक है।
पवित्र क्रूस हमारी पहचान है। जब हम कहीं भी क्रूस का चिह्न देखते हैं तब हमें मालुम होता है उसका ख्रीस्तीय धर्म से कुछ संबंध है। ख्रीस्तीय विश्वासी क्रूस को एक चिह्न के रूप में गले में पहनते हैं। क्रूस मात्र एक चिह्न नहीं है। वह ख्रीस्तीयों के जीवन की वास्तविकता है। मत्ती 16:24 में प्रभु येसु कहते हैं, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले”। लेकिन लूकस 9:23 में प्रभु कहते हैं, "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले”। क्रूस हमारे दैनिक जीवन की वास्तविकता है। क्रूस एक बोझ है। वह हमारे दृढ़संकल्प का वोझ है, वह हमारी विनम्रता का बोझ है, वह हमारी ईमानदारी का बोझ है, वह हमारे विश्वास का बोझ है, वह कर्तव्यनिष्ठा की बोझ है, वह विश्वसनीयता का बोझ है, वह बफ़ादारी का बोझ है, वह हमारी जिम्मेदारियों का बोझ है, वह हमारी बीमारी का बोझ है, वह हमारी बुलाहट का बोझ है। क्या मैं इस बोझ को, इस क्रूस को उठा कर येसु के पीछे चलने के लिए तैयार है?