संत योहन गाब्रिएल का जन्म फ्रांस के पुएक में 6 जनवरी, 1802 को आठ बच्चों के एक पवित्र परिवार में हुआ था। योहन गाब्रिएल सहित, पेरबॉयर के पांच बच्चे धर्मसंघी बन गए - तीन पुरोहित और दो मठवासी। अपने छोटे भाई लुइस के साथ, जब वे सेमिनरी में प्रवेश कर रहे थे, तब योहन-गाब्रिएल ने अपनी बुलाहट को पहचाना और 16 साल की उम्र में संत विंसेंट डी पॉल द्वारा स्थापित मिशन के धर्मसंघ में प्रवेश किया।
23 साल की उम्र में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ और सेमिनरी में रेक्टर नियुक्त होने से पहले उन्होंने धर्मशास्त्र पढ़ाया था। बाद में पेरिस में उनकी पवित्रता के कारण जिसे उनके वरिष्ठों ने उनमें देखा था उन्हें नव्य प्रशिक्षणार्थीयों का गुरू बनाया गया।
उनके छोटे भाई, लुइस, 24 साल की उम्र में चीन में प्रचार करने जाते हुए रास्ते में मर गए और योहन-गाब्रिएल को उस मिशन को पूरा करने के लिए कहा गया जिसे उनके भाई को सौंपा गया था। वे 29 अगस्त 1835 को मकाओ द्वीप पर पहुंचे और उस वर्ष के अंत में चीनी मुख्य भूमि के लिए निकल पड़े।
होउ-पे में स्थानांतरित होने से पहले उन्होंने तीन साल के लिए हो-नान में अपने प्रेरिताई के कार्यों को अंजाम दिया। उनके द्वारा वहां बिताए गए कम समय में भी उनके मिशनों ने बहुत फल उत्पन्न किए।
11 सितम्बर, 1839 को योहन-गाब्रिएल ख्रीस्तीयों के खिलाफ उत्पीड़न के पहले पीड़ितों में से एक बन गए। उन्हें हमारे प्रभु की प्राणपीडा के समान ही दुःख झेल कर मरना पडा। उन्हें चांदी की एक राशि के लिए धोखा दिया गया, उनके कपड़े उतार दिए गए और उन्हें एक कचहरी से दूसरे न्यायालय में घसीटा गया, तब तक पीटा गया और तब तक प्रताड़ित किया गया जब तक कि उन्हें सात अपराधियों के साथ मौत की सजा नहीं दी गई। उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और सूली पर चढ़ाकर उनकी मृत्यु हो गई।
संत पिता योहन पौलुस द्वितीय द्वारा 2 जून, 1996 को योहन-गाब्रिएल को संत घोषित किया गया। संत योहन गाब्रिएल पेरबॉयरे चीन के पहले संत हैं।