एक अद्भुत सादगी और करुणा की भावना इस पवित्र छठी शताब्दी के मठाधीश के विशिष्ट गुण थे। उन्हंस स्पोलेटो के पास संत माकुस के मठ की अध्यक्षता करने के लिए चुना गया था, और वे ईश्वर द्वारा चमत्कारों के वरदानों से अनुगृहीत थे।
एक छोटे बालक को उस मठ में प्रवेश दिया गया था जब मठाधीश ने उन्हें एक शैतानी कब्जे से छुड़ाया था। अतः उन्हें शिक्षित होने के लिए वहां रखा गया और सभी को ऐसा प्रतित हुआ मानों अब उस बालक को भावी जीवन में उत्पीड़न से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई थी। और संत ऐल्युथेरियुस ने एक दिन कह डालाः ‘‘चूंकि बालक ईश्वर के सेवकों में है, इसलिए शैतान उनके पास जाने की हिम्मत नहीं करता।‘‘ इन शब्दो में घमंड और गुरूर की बू लग रही थी, और इसके बाद शैतान ने फिर से उस बच्चे में प्रवेश किया और उसे परेशान किया। मठाध्यक्ष ने विनम्रतापूर्वक अपनी गलती स्वीकार की और उपवास किया, जिसमें पूरा समुदाय शामिल हो गया, जब तक कि बच्चा फिर से शैतान के अत्याचार से मुक्त नहीं हो गया।
संत ग्रेगोरी महान, अत्यधिक कमजोरी के कारण पवित्र शनिवार को उपवास करने में खुद को असमर्थ पाते हुए, इस संत को, जो उस समय रोम में थे, उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करने के लिए बुलाया ताकि वे विश्वासीयों के साथ मिलकर उस दिन के महत्वपूर्ण अभ्यास में शामिल हो सकें। उस दिन की तपस्या में संत एलुथेरियस ने कई आँसुओं के साथ प्रार्थना की, और संत पिता, जब वे गिरजाघर से बाहर आए, तो उन्होंने महसूस किया कि वे अचानक ताकतवर और मजबूत हो गये हैं और अपनी इच्छानुसार उपवास पूरा करने में सक्षम थे। उसी संत पिता ने, यह टिप्पणी करते हुए कि मठाध्यक्ष ने एक मृत व्यक्ति को जीवित किया था, कहाः ‘‘वह इतने सरल व्यक्ति थे, इतनी महान तपस्या करने वालों में से एक, हमें इस में संदेह नहीं करना चाहिए कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उनके आँसुओं और उनकी विनम्रता को बहुत कुछ दिया है।‘‘ अपने मठ से इस्तीफा देने के बाद, संत ऐल्युथेरियुस की मृत्यु रोम में संत एंड्रयू के मठ में लगभग 585 वर्ष में हुई।