सितंबर 03

संत ग्रेगोरी महान

संत ग्रेगोरी का जन्म 540 में रोम में हुआ था। वे 30 साल की उम्र से पहले रोम के क्रमिक सभासद और अनुशासक थे। पांच साल बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और एक मठवासी बन गए, अपने खुद के निवास स्थान को एक बेनिदिक्तिन मठ में बदला, और छह अन्य मठों की स्थापना की। 50 वर्ष की आयु में वे संत पिता चुने गए तथा वर्ष 590 से 604 तक उन्होंने इस पद पर कलीसिया की सेवा की। इन 14 वर्षों में उन्होंने ख्रीस्त के रहस्यमय शरीर के लिए बहुत कुछ किया।

रोम में अंग्रेजों के बच्चों को गुलामों के रूप में बेचे जाते देखकर, उन्होंने उनके देश का पता लगाकर वहां के लिए ‘‘द आन्गेल्स एन्जल्स‘‘ (the Angles angels) मिशन बनाने के लिए अपने ही मठ से कैंटरबरी के संत अगस्तीन सहित 40 मठवासीओं को भेजा। इंग्लैंड को उनके प्रयासों के कारण ख्रीस्तीय विश्वास मिला है। ऐसे समय में जब बर्बर लोम्बार्डों के आक्रमण ने यूरोप में एक नई परिस्थिति को जन्म दिया, उन्होंने उन्हें ख्रीस्त के लिए जीतने में एक बड़ी भूमिका निभाई। जब रोम पर ही हमला हो रहा था, तो वे व्यक्तिगत रूप से लोम्बार्ड के राजा से भेंटवार्ता के लिए गए थे।

साथ ही साथ उन्होंने याजक वर्ग की पवित्रता और कलीसिया के अनुशासन के रखरखाव, रोम के अपने लोगों के अस्थायी हितों और सभी ख्रीस्तीय जगत के आध्यात्मिक हितों पर समान रूप से ध्यान दिया। उन्होंने अयोग्य याजकों को पद से हटा दिया, कई सेवाओं के लिए पैसे लेने से मना किया, लोम्बार्ड्स के कैदियों को फिरौती देने के लिए संत पिता के खजाने को खाली कर दिया और सताए गए यहूदियों और प्लेग और अकाल के शिकार लोगों की देखभाल की। इन कार्यों और अन्य ने उन्हें अपने कार्यालय में एक प्रतिस्तव के शब्दों में, ‘‘शहर का पिता, संसार का आनंद‘‘ बनाया।

संत पिता ग्रेगोरी ने पूजनपध्दति में सुधार लाया, और इसमें अभी भी उनकी कई सबसे खूबसूरत प्रार्थनाएं शामिल हैं। ‘‘ग्रेगरी राग‘‘ (Gregorian Chant) का नाम सुनते ही हम कलीसिया के संगीत के विकास में इस महान संत पिता के काम को याद करते है। पवित्र शास्त्र पर उनकी टिप्पणियों ने मध्य युग में ख्रीस्तीय विचारों पर काफी प्रभाव डाला। 12 मार्च, 604 को संत ग्रेगोरी की मृत्यु हो गई। उनका शरीर रोम के संत पेत्रुस बेसेलिका दफनाया गया है।


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