परंपरा के अनुसार, संत गाईल्स का जन्म एथेंस, ग्रीस में वर्ष 650 में हुआ था, और वे कुलीन वंश के थे। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, वे अनुयायियों और प्रसिद्धि से बचने के लिए अपनी जन्मभूमि से भाग गए। वे फ्रांस गए, और रोन के मुहाने के पास एक जंगल में, एक गुफा में वे एक निर्जनवासी का जीवन जीने में सफल रहे। पौराणिक कथा बताती है कि एक हिरणी हर रोज उनकी कोठरी में आती थी और उन्हें दूध पिलाती थी। एक दिन राजा के शिकारियों ने हिरणी का पीछा किया और संत गाईल्स और उनके गुप्त आश्रम की खोज की। शिकारियों ने हिरणी पर तीर चलाया, लेकिन चूक गए और एक तीर ने गाईल्स के पैर पर प्रहार किया, जिस कारण वे जीवन भर अपंग रहे। फिर उन्होंने राजा थियोडोरिक के के अनुरोध पर एक मठ के निर्माण के लिए अपनी सहमति व्यक्त की (जिन्हें बाद में ‘‘संत गाइल्स डू गार्ड‘‘ के रूप में जाना गया) और वे इसके पहले मठाधीश बने। लगभग आठ साल बाद 710 के आस-पास उनकी मृत्यु हो गई। फ्रांस के नॉरमैंडी में, गर्भवती होने में कठिनाई महसुस करने वाली महिलाएं संत की तस्वीर या मूर्ति को साथ लेकर सोती थीं।
इंग्लैंड में, संत गाईल्स के नाम पर गिरजाघर बनाए गए ताकि अपंग व्यक्ति आसानी से उन तक पहुंच सकें। संत गाईल्स को गरीबों का मुख्य संरक्षक भी माना जाता था। उनके नाम पर दान सबसे दयनीय व्यक्तियों को दिया जाता था। इसका प्रमाण इस प्रथा से मिलता है कि फांसी के लिए टायबर्न ले जाने के दौरान, दोषियों को संत गाईल्स अस्पताल में रुकने की अनुमति दी गई थी, जहां उन्हें संत गाईल्स बाउल नामक एक कटोरा दिया जाता था, ‘‘उनके आनंद तक पीने के लिए, इस जीवन में उनके अंतिम जलपान के रूप में।‘‘
संत गाईल्स को उन चैदह ‘‘सहायक संतों‘‘ या ‘‘पवित्र सहायकों‘‘ की सूची में शामिल किया गया है जिनके समूह का आह्वान इसलिए किया जाता है कि वे परीक्षणों और कष्टों में सहायता करने में प्रभावशाली रहे हैं। प्रत्येक संत का एक अलग पर्व या स्मारक दिवस होता है। समूह के संतों को 8 अगस्त को सामूहिक रूप से सम्मानित किया जाता था। फिर रोमन कैलेंडर के 1969 के सुधार के बाद इस पर्व को हटा दिया गया। संत गाईल्स भिखारीयों, शारीरिक रूप से विकलांग तथा बाँझपन से छुटकारा आदि के संरक्षक संत है।