संत मोनिका प्राचीन कलीसियाके उन पवित्र गृहिणीयों का एक उदाहरण है जो अपने शांतमय तरीके से बहुत प्रभावशाली साबित हुए। प्रार्थना और आँसुओं के माध्यम से उन्होंने ईश्वर की कलीसिया को महान संत अगस्तीन दिया, और इस तरह पृथ्वी पर ईश्वर के राज्य के इतिहास में अपने लिए सम्मान का स्थान अर्जित किया।
“संत अगस्तीन के पापस्वीकार” संत मोनिका के निश्चित जीवनी विवरण प्रदान करता है। अफ्रीका के थगस्ते में ख्रीस्तीय माता-पिता से वर्ष 331 में जन्मी, मोनिका का पालन-पोषण एक बुजुर्ग नर्स की सख्त देखरेख में हुआ, जिसने उसी तरह उनके पिता का पालन-पोषण किया था। कालान्तर में उनका विवाह पैट्रीसियस नामक एक गैर-ख्रीस्तीय से हो गया। अन्य दोषों के अलावा, वह बहुत चिड़चिड़े स्वभाव का था। दुख की इस पाठशाला में मोनिका ने धैर्य सीखा। उनका क्रोध ठंडा होने तक प्रतीक्षा करना उनका रिवाज था; उसके बाद ही वे उन्हें कोई अनुकूल प्रतिवाद देती। दुष्ट-दिमाग वाले नौकरों ने उनकी सास को उनके प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित कर दिया था, लेकिन मोनिका ने दया और सहानुभूति से स्थिति में महारत हासिल कर ली थी।
उनके विवाह को तीन बच्चों का आशीर्वाद मिलाः नविगियस, परपेतुआ, जो बाद में एक धर्मबहन बन गई, और अगस्तीन, उनकी समस्या वाली संतान। उस समय की प्रथा के अनुसार, जन्म के तुरंत बाद शिशुओं को बपतिस्मा नहीं दिया जाता था। वास्तव में एक किशोर के रूप में ही अगस्तीन एक धर्मप्रचारक बन गए थे, लेकिन संभवतः अपने भविष्य के पापी जीवन के एक पूर्वाभास के माध्यम से, फिर भी मोनिका ने उनका बपतिस्मा तब भी स्थगित कर दिया जब उनका बेटा एक गंभीर बीमारी के दौरान इसे चाहता था।
जब अगस्तीन उन्नीस वर्ष के थे, उनके पिता पेट्रीसियस की मृत्यु हो गई; धैर्य और प्रार्थना से मोनिका ने अपने पति का मन परिवर्तन करा लिया था। युवा अगस्तीन हर प्रकार के पाप और लंपटता में लिप्त होकर अपनी माँ के लिए अकथित चिंता का कारण बन गया। आखिरी उपाय के रूप में जब उनके सभी आँसू और मिन्नतें बेकार साबित हुईं, उन्होंने उसे अपने घर में प्रवेश करने से मना किया; लेकिन एक दर्शन के बाद उन्होंने उसे फिर से अनुमति दे दी। उनके दुःख में एक धर्माध्यक्ष ने उन्हें सांत्वना दीः ‘‘चिंता मत करो, यह असंभव है कि इतने आँसुओं का पुत्र खो जाए।‘‘
जब अगस्तीन रोम की यात्रा की योजना बना रहा था, मोनिका उनके साथ जाना चाहती थी। हालाँकि, अगस्तीन ने उन्हें चतुराई से मात दे दिया, और जब वे बंदरगाह पर पहुंची तो वे पहले ही यात्रा पर निकल चुके थे। बाद में वेउनके पीछे-पीछे मिलान चली गई, और ईश्वर के प्रति उनके लगाव में लगातार वृद्धि हुई। संत एम्ब्रोस ने उन्हें उच्च सम्मान में रखा, और ऐसी मां प्राप्त करने पर अगस्तीन को बधाई दी। मिलान में उन्होंने अपने बेटे के परिवर्तन के लिए रास्ता तैयार किया। अंत में वह क्षण आ ही गया जब उनके दुख के आंसू खुशी के आंसू में बदल गए। अगस्तीन ने बपतिस्मा लिया था और उनका जीवन-कार्य पूरा हो गया था। अपने छप्पनवें वर्ष में जब वे अफ्रीका से लौट रही थी, तब उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का वर्णन उनके बेटे के प्रसिद्ध “पापस्वीकार” में सबसे सुंदर अंशों में से एक है।