26 अगस्त को काथलिक कलीसिया क्रूसित येसु की संत मरियम का पर्व मनाती है, जिनका जन्म 5 जनवरी 1846 को गलीलिया, फ़िलिस्तीन, में मरियम बाउर्डी के रूप में हुआ था। वे गिरिएस बाउर्डी और मरियम शाहीन के, एक गरीब ग्रीक मेल्काइट, काथलिक परिवार में जन्मी थी। उनके तेरह भाइयों में से बारह की शैशवावस्था में मृत्यु हो गई, और मरियम का जन्म माता मरियम से की गई प्रार्थना के उत्तर के रूप में हुआ था। जब मरियम केवल दो वर्ष की थी तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई और उन्हें उनके चाचा ने पाला था। आठ साल की उम्र में वे सिकंदरिया, मिस्र चले गए। 13 साल की उम्र में एक रिश्ता देखकर उनकी सगाई कर दी गयी परंतु उन्होंने उस रिश्ते में विवाह करने से मना किया और धार्मिक जीवन जीने पर जोर दिया। इस अवज्ञा के लिए सजा के रूप में, उनके चाचा ने उन्हें एक घरेलू नौकर के रूप में काम पर रखा, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनके पास सबसे निचले तपके का काम और सबसे अधिक काम रहें। एक मुस्लिम नौकर ने जिसके साथ वे काम करती थी, उनको ख्रीस्तीय धर्म से धर्मान्तरित कराने के उद्देश्य से उनसे मित्रता रखने की कोशिश करने लगा। 8 सितंबर 1858 को, मरियम ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह अपना विश्वास कभी नहीं छोड़ेगी; जवाब में उन्होंने उनका गला काट दिया और उन्हें एक गली में फेंक दिया। मरियम जीवित रही, कुँवारी मरियम ने प्रकट होकर उनके घाव का इलाज किया, और इसके बाद उन्होंने अपने चाचा के घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया।
उन्होंने एक ख्रीस्तीय परिवार में घरेलू नौकर के रूप काम और प्रार्थना करते हुए खुद का गुज़ारा किया। 1860 में वे संत जोसेफ की बहनों के साथ शामिल हो गई। उनके आसपास अलौकिक घटनाएं होने लगीं, और घर्मबहनों ने उन्हें अपने मठ में शामिल नहीं होने दिया। उन्हें 1897 में एक धर्मबहन द्वारा पाऊ के कार्मेल ले जाया गया, और वे एक लोकधर्मी बहन बन गई। बाद में उस वर्ष उन्होंने एकान्तवासी मठ में प्रवेश किया, “क्रूसित येसु की मरियम” नाम ग्रहण करते हुए, और 21 नवंबर 1871 को अपना अंतिम धर्मसंघीय व्रत लिया। वे अलौकिक घटनाओं को अनुभव करती रही। उन्होंने 40 दिनों तक एक उपदूत के कब्जे से लड़ाई लड़ी, दैवी घाव प्राप्त किया, उत्तोलन करते देखी गई, उनको भविष्यवाणी और अंतरात्मा के ज्ञान का वरदान प्राप्त था, और वे अपने संरक्षक दूत को अपने माध्यम से बोलने की अनुमति देती थी। उन्होंने मैंगलोर, भारत के मिशनरी कार्मेल की स्थापना करने में मदद की। 1872 में फ्रांस लौट आयी तथा 1875 में बेथलेहेम में एक कार्मेलाइट मठ का निर्माण किया। अलौकिक वरदानों के अलावा, वे पवित्र आत्मा के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती थी, यहां तक कि संत पिता पीयुस नौवें को यह संदेश भी भेजा गया था कि सेमिनरीयों में आत्मा पर पर्याप्त जोर नहीं दिया गया था। क्रूसित येसु की संत मरियम का देहांत 26 अगस्त 1878 को बेथलहम मठ में उसके निर्माण स्थल पर लगी चोट के बाद गैंग्रीन होने से हुआ तथा वे संत पिता फ्रांसिस द्वारा 17 मई 2015 को संत घोषित किए गए।