उत्तरी फ्रांस के एक कृषिक्षेत्र में 14 नवम्बर 1601 को जन्मे, संत योहन यूदस एक धर्मसंघीय, एक पल्ली मिशनरी, दो धार्मिक समुदायों के संस्थापक और येसु के पवित्रतम हृदय तथा धन्य कुँवारी मरियम के निष्कलंक हृदय के एक महान प्रवर्तक थे।
वे ओराटोरियन्स के धार्मिक समुदाय में शामिल हो गए और चौबीस साल की उम्र में पुरोहित बने। 1627 और 1631 में गंभीर महामारी के दौरान, उन्होंने अपने स्वयं के धर्मप्रांत में पीड़ितों की देखभाल करने के लिए स्वेच्छा से काम किया। कहीं ऐसा न हो कि वह अपने धार्मिक साथीयों को संक्रमित कर दे, इस कारण वे प्लेग के दौरान एक खेत के बीच में एक विशाल पीपे में रहते थे।
बत्तीस साल की उम्र में, योहन एक पल्ली मिशनरी बन गए। उपदेशक और पाप स्वीकारण अनुष्टाता के रूप में उनके वरदानों ने उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने एक सौ से अधिक पल्ली मिशनों का प्रचार किया, जिनमें से कुछ कई हफ्तों से लेकर कई महीनों तक चले।
याजक वर्ग के आध्यात्मिक सुधार के बारे में उनकी चिंता में, उन्होंने महसूस किया कि सबसे बड़ी आवश्यकता सेमिनरीयों की थी। उन्हें इस काम को शुरू करने के लिए अपने जनरल सुपिरियर, धर्माध्यक्ष और यहां तक कि कार्डिनल रिशेल्यू से भी अनुमति प्राप्त की थी, लेकिन अगले जनरल सुपिरियर ने इसे अस्वीकार कर दिया। प्रार्थना और आत्मपरामर्श के बाद, योहन ने फैसला किया कि धार्मिक समुदाय को छोड़ना सबसे अच्छा है। उसी वर्ष उन्होंने एक नए धार्मिक समुदाय की स्थापना की, जिन्हें अंततः यूडिस्ट्स (येसु और मरियम की मण्डली) कहा जाता है, जो धर्मप्रांतीय सेमिनरीयों का आयोजन कर याजक वर्ग के गठन के लिए समर्पित है। इस नए उद्यम, जिसे व्यक्तिगत धर्माध्यक्षों द्वारा अनुमोदन तो मिला परंतु तत्काल विरोध का सामना भी करना पडा, विशेष रूप से जेनसेनिस्ट और उनके कुछ पूर्व सहयोगियों से। योहन ने नॉरमैंडी में कई सेमिनरीयों की स्थापना की, लेकिन रोम से अनुमोदन प्राप्त करने में असमर्थ थे (आंशिक रूप से, ऐसा कहा गया था, क्योंकि उन्होंने सबसे चतुर दृष्टिकोण का उपयोग नहीं किया था)।
अपने पल्ली मिशन के काम में, योहन उन वेश्याओं की दुखद स्थिति से परेशान थे जो अपने दयनीय जीवन से बचने की कोशिश में थी। अस्थायी आश्रय मिले लेकिन व्यवस्था संतोषजनक नहीं थी। किसी एक मेडेलीन लैमी ने, जिन्होंने कई महिलाओं की देखभाल की थी, एक दिन उससे कहा, ‘‘अब आप कहाँ जा रहें हैं? मुझे लगता है, किसी गिरजाघर के लिए, जहाँ आप प्रतिमाओं को देखेंगे और अपने आप को पवित्र समझेंगे। सदा आप से यह आशा की जाती है कि इन गरीब प्राणियों के लिए एक अच्छा घर बनायें।‘‘ इन शब्दों, और उपस्थित लोगों की हँसी ने उनके भीतर गहराई से प्रहार किया। परिणाम एक और नया धार्मिक समुदाय था, जिन्हें सिस्टर्स ऑफ चैरिटी ऑफ द रिफ्यूजी कहा जाता था।
वे शायद अपने लेखन के केंद्रीय विषय के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं: येसु पवित्रता के स्रोत के रूप में, मरियम ख्रीस्तीय जीवन के आदर्श के रूप में। येसु के पवित्रतम हृदय तथा धन्य कुँवारी मरियम के निष्कलंक हृदय के प्रति उनकी भक्ति ने संत पिता पियुस ग्यारहवें को उन्हें फादर ऑफ लिटर्जिकल कल्ट ऑफ द हार्ट्स ऑफ जीसस एंड मैरी घोषित करने हेतु प्रेरित किया।
वे कई पुस्तकों के लेखक भी थे, जिन्होंने उनके काम की सेवा की, उदाहरण के लिए, “द आइडियल कन्फेसर” एण्ड द एपोस्टोलिक प्रीचर। उनकी उनहत्तर वर्ष की आयु 19 अगस्त 1680 को सीएन, फ्रांस में निधन हो गया तथा 1925 में संत पिता पियुस ग्याहरवें द्वारा संत घोषित किए गए।