अगस्त 14

संत माक्सिमिलियन कोल्बे -शहीद

रायमण्ड कोल्बे (संत माक्सिमिलियन कोल्बे) का जन्म 8 जनवरी 1894 को पोलैन्ड में हुआ था। 12 साल की आयु में उन्हें माता मरियम का दर्शन मिला और उस दर्शन का उनके ऊपर इतना प्रभाव पडा कि वे आगे चल कर “माता मरियम को समर्पण का प्रेरित” (Apostle of Consecration to Our Lady) माने गये। उन्होंने लिखा, “उस रात को मैं ने ईशमाता से पूछा कि मेरा क्या होगा। तब वे मेरे पास दो मुकुट लेकर आयी – एक सफेद और एक लाल। उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या तुम इन में से एक मुकुट को ग्रहण करोगे। सफेद मुकुट से तात्पर्य था कि मैं अपनी निष्कलंकता को बनाये रखूँ। लाल मुकुट से तात्पर्य था कि मैं एक शहीद बन जाऊँ। मैंने कहा, “मैं दोनों को स्वीकार करता हूँ”।

उस दर्शन के एक साल बाद कोल्बे और उनके बडे भाई ने फ्रांसिस्कन धर्मसमाज में प्रवेश किया। सन 1910 में रायमण्ड को नवदीक्षित बनाया गया तब उन्हें मक्सिमिलियन नाम दिया गया । सन 1911 में उन्होंने फ्रांसिस्कन धर्मसमाज में प्रथम वृतधारण किया। 21 साल की उम्र में उन्होंने रोम के ग्रिगोरियन विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टर की उपाधि हासिल की। 28 साल की आयु में उन्होंने ईशशास्त्र में डॉक्टर की उपाधि भी हासिल की।

जब माक्सिमिलियन कोल्बे ने देखा कि संत पिता पीयुस दसवें तथा संत पिता बेनेडिक्ट पन्द्रहवें के विरुध्द प्रदर्शन किये जा रहे हैं, तब उन्होंने निष्कलंका की सेना (Army of the Immaculate) की स्थापना की जिसके द्वारा उन्होंने माता मरियम की मध्यस्थता से पापियों तथा कलीसिया के शत्रुओं विशेषकर शैतानसेवकों के मन परिवर्तन के लिए कार्य किये।

सन 1918 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने माता मरियम की भक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए अपने प्रयत्नों को जारी रखा। कुछ ही साल बाद उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की और प्रकाशन के कार्य में कई कदम उठाये। उन्होंने जापान और भारत में फ्रांसिस्कन मठों की स्थापना की। शारीरिक रीति से अस्वस्थ रहने के कारण वे पोलैन्ड वापस आये। उस समय नाज़ीवाद यूरोप में फैल रहा था। उन्होंने अपने प्रकाशन के द्वारा नाज़ीवाद के खिलाफ आवाज उठायी तथा कई यहूदियों को अपने यहाँ आश्रय दिया।

17 फरवरी 1941 को मठ को बन्द किया गया तथा माक्सिमिलियन कोल्बे कैदी बनाये गये। वे पाविआक (Pawiak) के जेल में डाले गये। तीन महीने बाद वे औषविट्स (Auschwitz) के जेल में स्थानान्तरित किये गये। वहाँ दूसरे महीने के अन्त में भागने के खिलाफ चेतावनी देने हेतु कुछ कैदियों को चुन कर भुखमरी से मौत का सामना करने के लिए चुना गया। माक्सिमिलियन उस सूची में नहीं थे। लेकिन उन में से एक व्यक्ति के परिवार के प्रति दया से द्रवित हो कर माक्सिमिलियन कोल्बे ने उस कैदी की जगह लेने का निर्णय लिया। निर्जलीकरण और भुखमरी के दूसरे हफ़्ते में उनके सभी साथियों की मृत्यु हुयी। उन्होंने उन सब की मृत्यु पर प्रभु ईश्वर में आस्था रख कर अपने जीवन को समर्पित करने के लिए मदद की। गार्ड ने उसे कार्बोलिक एसिड का घातक इंजेक्शन दिया। 14 अगस्त 1941 को माक्सिमिलियन कोल्बे का निधन हुआ और उनके अवशेषों का अंतिम संस्कार 15 अगस्त को किया गया। 17 अक्टूबर 1971 को संत पिता पौलुस छ्ठवें ने उन्हें ’विश्वास के उद्घोषक’ (Confessor of the Faith) के रूप में धन्य घोषित किया। संत पापा योहन पौलुस द्वितीय ने 10 अक्टूबर 1982 को उन्हें ’विश्वास के उदघोषक’ के रूप में नहीं बल्कि शहीद के रूप में संत घोषित किया। वे नशा-मुक्ति, कैदियों, परिवारों तथा जीवन समर्थक आंदोलन के संरक्षक संत हैं, और उनका पर्व 14 अगस्त को मनाया जाता है।


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