अगस्त 1

संत अलफोंसस लिगोरी(1696 – 1787)

पर्व दिन: 1 अगस्त

Alphonsus संत अलफोंसस लिगोरी का जन्म,27 सितम्बर 1696 को नेपल्स के निकट मरियानेला नामक जगह में हुआ था। वे नेपल्स के एक बड़े जाने माने सभ्य परिवार के पहलौठे बेटे थे। उन्होंने साहित्य, दर्शन शास्त्र, क्लासिकल (प्राचीन) एवं आधुनिक भाषाओं, पेंटिंग और संगीत में व्यापक शिक्षा प्राप्त की।उन्होंने येसु ख्रीस्त के दुःखभोग पर गाना (राग/डुएट) संकलित किया, साथ ही इटली में सर्वाधिक लोकप्रिय क्रिसमस कैरल, "तू शेंदीदाल्ले स्तेले" और कई अन्य गीतों की रचना की।16 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए सामाजिक और कलीसियाई कानून दोनों में डाक्टरेट (Doctorate)की उपाधि हासिल की और क़ानूनी पेशे में अपनी सेवाआरम्भ की।

सन् 1723 ई. में, लंबे मनन चिंतन एवं आत्मजाँच की प्रक्रिया के बाद, उन्होंने अपनी क़ानूनी पेशा (Carrier) को छोड़कर, अपने पिता के कड़े विरोध के बावजूद, सेमिनरी की पढ़ाई शुरू की। 21 दिसम्बर 1726 को, 30 साल की उम्र में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने एक पुरोहित के रूप में नेपल्स के बेघर, गरीब और असहाय युवाओं के साथ अपना पहला वर्ष बिताया। उन्होंने “संध्या प्रार्थनालय” (Evening Chapel) की स्थापना की, जो युवाओं के द्वारा ही संचालित किया जाता था। ये प्रार्थनालय विशेष करके प्रार्थना, समुदाय, ईश्वर का वचन, सामाजिक गतिविधियों और शिक्षा के केंद्र थे। उनकी मृत्यु के समय, इस तरह के 72 प्रार्थनालय थे और उन्मे करीब 10,000 लोग सक्रिय भाग लेते थे।

सन्1729ई.में,संत अलफोंसस अपने घर छोड़कर, नेपल्स के चीनी कॉलेज में रहना शुरू किये। यहाँ, नेपल्स के शहरी क्षेत्र से दूर, उन्होंने नेपल्स के गलियों में रहने वाले गरीबों से ज्यादे गरीब, निस्सहाय एवं तिरस्कृत लोगों को पाया, और इसी जगह उन्हें अपने मिशनरी बुलाहट का एहसास हुआ।

9 नवम्बर 1732 को, संत अलफोंसस ने मुक्तिदाता धर्मसमाज (Congregation of the Most Holy Redeemer) की स्थापना की। इस समाज को समान्यत: रेडेम्प्टोरिस्ट या मुक्तिदाता धर्मसमाज के नाम से जाना जाता है, ताकि वे येसु ख्रीस्तके उदाहरण का अनुसरण करते हुए, गरीब और निस्सहाय लोगों को सुसमाचार सुना सकें। उस समय से, उन्होंने खुद को पूरी तरह इस नए मिशन (कार्य) के लिए समर्पित कर दिया।

अलफोंसस सुंदरता के प्रेमी थे, साथ ही, संगीतकार, चित्रकार, कवि और लेखक भी थे। उन्होंने अपनी कलात्मक एवं साहित्यिक प्रतिभाओं का प्रयोग अपने मिशन कार्य में किया,और उन लोगों को भी ऐसा ही करने को कहा जिन्होंने उनके धर्मसमाज में प्रवेश किया। उन्होंने आध्यात्मिकता और धर्मशास्त्र पर कुल 111 पुस्तकें लिखी। उनकी लिखी पुस्तकें 21,500 संस्करणों और 72 भाषाओं में अनुवाद की गई।इस तथ्य से यह प्रमाणित होता है कि वे व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले लेखकों में से एक हैं। उनकी लिखी अच्छी पुस्तकों में –“The Practice of the Love of Jesus Christ”,“The Glories of Mary” and “The Visits to the Most Blessed Sacrament” शामिल हैं। प्रार्थना, प्यार, मसीह के साथ उनका सम्बंध और अपने विश्वासियों की आध्यात्मिक जरूरतों का पहला अनुभव, अल्फोंसस को अपने आध्यात्मिक या आंतरिक जीवन में महान, परिपक्व बना दिया।

अल्फोंसस का कलीसिया में सबसे बड़ा योगदान नैतिक धर्मशास्त्र के क्षेत्र में था। यह काम अल्फोंसस के समाजिक एवं आध्यात्मिक अनुभव, तथा लोंगों के दिन प्रतिदिन के व्यवहारिक समस्याओं, एवं सवालों के जवाब देने की उनकी क्षमता से शुरू हुआ था। उन्होंने बाध्यकारी विधिवादिता (मुक्ति के लिए नियमों के पालन को सुसमाचार के पालन से अधिक महत्व देना) (sterile legalism) का विरोध किया जो धर्मशास्त्र का गला घोट रहा था।उन्होंने उस समय के सख्ती से नियम के पालन की कठोरता (strict rigorism) को खारिज कर दिया, जो उस समय के शक्तिशाली वर्ग के लोगों के द्वारा शुरू की गई थी।अल्फोंसस के अनुसार, वे ऐसेपथ थे जो सुसमाचार के लिए बंद थे, क्योंकि “इस तरह की कठोरता न कभी कलीसिया सिखाती है और न ही अभ्यास करती है”।वह जानता था, किस तरह धार्मिक विचारया सोच (theological reflection) को व्यक्ति की महानता और गरिमा, नैतिक विवेक, और सुसमाचारवादी दया (evangelical mercy) की सेवा में लगाया जाए।

1762 में अल्फोंसस गॉथ्स के संत अगाथा के धर्माध्यक्ष अभिषिक्त हुए। वे 66 वर्ष के थे।उन्होंने नियुक्ति को अस्वीकार करने की कोशिश की, क्योंकि उन्होंने महसूस किया की वे धर्मप्रांत की देखभाल करने के लिए बहुत बुजुर्ग और बीमार हैं। इसलिए 1775 में, उन्हें अपने कार्यालय से सेवानिवृत होने की इजाजत दी गई और वे पगानी (Pagani),रेडेम्प्टोरिस्ट समुदाय में रहने के लिए चले गए, जहां 1 अगस्त 1787 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें 1839 में संत घोषित किया गया, 1871 में कलीसिया के डॉक्टर (the Doctor of the Church) और 1950 में कोंफेस्सर और नीतिज्ञों (Patron of Confessors and Moralists) (नैतिक जीवन जीने एवं नैतिकता के बारे बतलाने वालों) के संरक्षक घोषित किया गया।

Submitted by Fr. Sanjay Tirkey, CSsR (The Redemptorist)


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