रोम के ये ‘‘पहले-शहीद‘‘ संत पेत्रुस और पौलुस की शहादत से पहले, वर्ष 64 में सम्राट नीरो द्वारा सामूहिक रूप से सताए गए पहले ईसाई थे। व्यापक रूप से माना जाता था कि नीरो ही उस आग का कारण बना था जिसने उसी वर्ष रोम को जला दिया था। उन्होंने ईसाइयों पर आग लगाने का आरोप लगाया और उन्हें सूली पर चढ़ाकर, अपने सर्कस में जंगली जानवरों को भोजन बनाकर, या खंभे से बांधकर मानव मशालों के रूप में जलाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इस उत्पीड़न का एक सुस्पष्ट वर्णन टैसिटस नामक एक रोमी इतिहासकार से मिलता है, जो बताते हैं कि कुछ ईसाइयों को जानवरों की खाल में सिल दिया गया था ताकि जंगली पशुओं द्वारा उन पर हमला कर उन्हें खाया जाए। अन्य ईसाइयों को मोम से लथपथ, खंबों से बांध दिया गया, और फिर जिंदा जला दिया गया, वे मानव मशालें जिनकी चमक ने नीरो की उद्यान की पार्टियों को रोशन किया। बाद में अन्य लोगों को सूली पर चढ़ाया गया। यह बाद में उत्तरी यूरोप के जंगलों में बर्बर तरीके से मिशनरियों के अंगों को काटना और खोपड़ियों को तोड़ना जैसे नहीं था। नीरो का पागलपन एक प्रकार की अत्यधिक परिष्कृत बुराई थी। आज, नीरो के सर्कस का स्थल, संत पेत्रुस की शहादत का स्थान भी है। यह वतिकान में पियाज़्ज़ा देई प्रोटोमार्टर्स रोमानी (रोमी प्रोटोमार्टर्स का चौक) द्वारा चिह्नित है जो संत पेत्रुस की बेसिलिका के बगल में हैं। इन शहीदों को ‘‘प्रेरितों के चेले‘‘ कहा जाता था और उनकी भीषण मौतों का सामना करने के लिए उनकी दृढ़ता एक शक्तिशाली गवाही थी जिसके कारण प्रारंभिक रोमी कलीसिया में कई विशवासीगण जुड़ते गए। आज, हम इन ईसाइयों को उसी तरीके से याद करते हैं जिस तरह से उन्होंने प्रार्थना और बलिदान के द्वारा प्रभु की अपनी मृत्यु का स्मरण किया होगा।