जून 22

संत थॉमस मोर

22 जून को, काथलिक कलीसिया संत थॉमस मोर, वकील, लेखक और राजनेता के जीवन और शहादत का सम्मान करती है, जिन्होंने कलीसिया को अंग्रेजी राजशाही के अधीन करने की राजा हेनरी 8वें की योजना का विरोध करते हुए अपना जीवन बलिदान किया।

थॉमस मोर का जन्म सन 1478 में वकील और न्यायाधीश योहन मोर और उनकी पत्नी एग्नेस के बेटे के रूप में हुआ। उन्होंने छह साल की उम्र से शास्त्रीय शिक्षा प्राप्त की, और 13 साल की उम्र में महाधर्माध्याक्ष योहन मॉर्टन के संरक्षक बन गए, जिन्होंने प्रमुख शासनाधिकारी के रूप में एक महत्वपूर्ण नागरिक भूमिका भी निभाई। हालाँकि थॉमस कभी भी याजक वर्ग में शामिल नहीं हुए, लेकिन अंततः वे स्वयं प्रमुख शासनाधिकारी का पद ग्रहण करने वाले थे। थॉमस ने ऑक्सफोर्ड में एक उत्तम तरीके से कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की, एक ‘‘पुनर्जागरण व्यक्ति‘‘ बन गए, जो कई प्राचीन और आधुनिक भाषाओं को जानते थे और गणित, संगीत और साहित्य में अच्छी तरह से वाकिफ थे।

लेकिन उनके पिता ने निर्धारित किया कि थॉमस को एक वकील बनना चाहिए, इसलिए उन्होंने अपने बेटे को उस पेशे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दो साल बाद ऑक्सफोर्ड से वापस निकाल लाए। अपने कानूनी और राजनीतिक अभिविन्यास के बावजूद, पवित्रता में बढ़ने के साधन के रूप में थॉमस ने अपने पूरे जीवन में कई तपस्या और आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन किया - जैसे कि उपवास, शारीरिक वैराग्य और प्रार्थना का एक नियमित नियम, आदि।

सन 1504 में, हालांकि, मोर संसद के लिए चुने गए तो उन्होंने अपनी मठवासी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ दिया, लेकिन अपना अनुशासित आध्यात्मिक जीवन नहीं, और एसेक्स के जेन कोल्ट से शादी कर ली। राजा हेनरी 8वें ने उन्हें अपने आंतरिक घेरे में समायोजित किया, अंततः लॉर्ड चांसलर के रूप में उन्होंने अंग्रेजी अदालत प्रणाली की देखरेख की। मार्टिन लूथर के खिलाफ काथलिक सिद्धांत का बचाव करते हुए हेनरी के नाम से प्रकाशित एक पुस्तक भी लिखी।

सन 1532 तक, संत पिता की अवहेलना करने और कलीसिया को नियंत्रित करने के राजा के प्रयासों को समर्थन करने से इनकार करते हुए मोर ने लॉर्ड चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया। वे शादी के सवाल पर संत पिता के अधिकार की राजा द्वारा अवज्ञा को स्वीकार नहीं कर सके। मोर को उनकी पत्नी और बच्चों से जुदा कर दिया गया, और लंदन की मिनार में कैद किया गया। अंत में उन्हें राजा के ‘‘सर्वोच्चता के अधिनियम‘‘ का विरोध करने के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और औपचारिक रूप से उन पर मुकदमा चलाया गया था। उन्हें मौत की सजा सुनाई गई तो उन्होंने आखिरकार चुप्पी और इनकार के माध्यम से पहले जो विरोध किया था, उसका खुले तौर पर विरोध किया।

6 जुलाई, 1535 को, मोर का सर कलम कर मार डाला गया और उनका सिर लंदन ब्रिज पर प्रदर्शित किया गया। लेकिन बाद में अनकी बेटी मार्गरेट के पास लौटा दिया गया, जिसने इसे अपने पिता के पवित्र अवशेष के रूप में संरक्षित किया। संत थॉमस मोर को सन 1886 में संत पिता लियो 13वें द्वारा धन्य घोषित किया गया और सन 1935 में संत पिता पीयुस 11वें द्वारा संत घोषित किया गया।


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