इनके जीवन की शुरुआत उस समय हुई जब समाज में महिलाओं को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता था। उस समय महिलाओं के लिए केवल दो रास्ते थे: या तो शादी करो या फिर धार्मिक जीवन अपनाओ।
लेकिन एलिजाबेथ की जीवनी थोड़ी अलग है। उस समय भी, दुनिया भर के शासकों और कलीसिया के नेताओं द्वारा एलिजाबेथ से सलाह लेने और इनकी दिव्यदृष्टि जानने के लिए इनको बुलाया जाता था।
सन 1147 में एलिजाबेथ बेनेडेक्टिन समाज में अपना ब्रत धारण किया। और फिर वह शोनाउ मठ की मठाधीश बन गई। उन्हें एक दर्शन मिला, जिसमें प्रभु येसु, माँ मरियम और एक स्वर्गदूत उनका मार्ग दर्शन कर रहे हैं। वह अपने इन दिव्य दर्शनों के कारण बहूत प्रसिध्द थीं।
इनकी मृत्यु से पहले से ही, इनको एक संत के रूप में जाना जाने लगा था। इनको औपचारिक रूप से कभी संत घोषित नहीं किया गया। सन 584 में, संत पिता ग्रेगरी तेरहवें ने, इनको रोम के शहीदों की सुची में सम्मीलित किया।
शोनाउ के संत एलिजाबेथ का कथन है, "विनम्रता को धारण करो और अपने प्रभु परमेश्वर का भय मानों।"