संत ऐमिली दी वियालर, कुमारी और ‘द्विव्य दर्शन’ की संत योसेफ धर्मबहनों की संस्थापक श्री. बैरन जेम्स ऑगस्टीन डी वियालर और उनकी पत्नी एंटोनेट की सबसे बड़ी संतान और इकलौती बेटी थी। उनके पिता फ्रांस के राजा लुइस 18वें और चार्ल्स 10वें के औपचारिक चिकित्सक थे। वे सन 1797 में लैंगेडोक के गैलैक में जन्मी थी। पंद्रह साल की उम्र में उनकी माँ की मृत्यु के बाद उन्हें पेरिस में स्कूल से निकाल दिया गया था ताकि वह अपने विधुर पिता का साथ दे सकें जो अब गैलैक में रहते थे। लेकिन दुर्भाग्य से, ऐमिली के एक उपयुक्त विवाह पर विचार करने से इनकार करने के कारण उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए।
पंद्रह वर्षों के लिए, ऐमिली गैलैक शहर की अच्छी दूत बन गयी थी, जिन्होंने माता-पिता द्वारा उपेक्षित बच्चों की देखभाल और आम तौर पर गरीबों की मदद के लिए खुद को समर्पित किया था। सन 1832 में, उनके नाना की मृत्यु हो गई, जिन्होनें उनके लिए अपनी संपत्ति का एक हिस्सा छोड़ दिया जो कि काफी दौलत थी। उन्होंने गैलैक में एक बड़ा घर खरीदा और तीन साथियों के साथ उसे अपने अधिकार में कर लिया। अन्य उनके साथ शामिल हो गए और तीन महीने बाद, वहाँ के महाधर्माध्यक्ष ने अपने एक पुरोहित को उनकी बारह अभ्यर्थीयों को धार्मिक वस्त्र प्रदान करने के लिए अधिकृत किया।
उन्होंने स्वयं को ‘द्विव्य दर्शन’ की संत योसेफ धर्मबहनों की मंडली कहा। उनके प्रेरितिक कार्यो में जरूरतमंदों की देखभाल करना, खासकर बीमारों की देखभाल करना और बच्चों को शिक्षित करना शामिल था। सन 1935 में, उन्होंने सत्रह अन्य बहनों के साथ अपना व्रत लिया, और संघ के शासन के लिए औपचारिक स्वीकृति प्राप्त की।
संस्थापक ऐमिली ने, बाईस वर्षों के दौरान, अपनी मण्डली को एक से कुछ चालीस घरों में बढ़ते देखा, जिनमें से कई को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से स्थापित किया था। संत ऐमिली डी वियालर की शारीरिक ऊर्जा और उपलब्धियां इस मायने में अधिक उल्लेखनीय हैं कि वे अपनी युवावस्था से ही हर्निया से परेशान थीं, जो परोपकार के कामों को करते समय उन्होनें प्राप्त की थी। सन 1950 से यह और भी अधिक गंभीर हो गया, और इसने उनके अंत को तेज कर दिया, जो 24 अगस्त, सन 1953 को आया। उनकी बेटियों के लिए उनके अंतिम आदेश ‘‘एक दूसरे से प्रेम करो‘‘ था। सन 1951 में उन्हें संत घोषित किया गया तथा उनका पर्व 17 जून को मनाया जाता है।