16 जून को काथलिक कलीसिया संत योहन फ्रांसिस रेजिस की स्मृति का जश्न मनाती है, जो 17 वीं शताब्दी के फ्रांसीसी येसुसमाजी पुरोहित थे और जो अपने उत्साही मिशनरी प्रयासों और गरीबों एवं उपेक्षित लोगों की देखभाल के लिए जाने जाते हैं।
सन 1597 में जन्मे, योहन फ्रांसिस रेजिस एक धनी व्यापारी के पुत्र थे और उनकी माता एक अमीर घराने से थी। अपने बाल्यावस्था में वे संवेदनशील, धर्मपरायण और अपने माता-पिता और शिक्षकों को खुश करने के लिए उत्सुक थे। येसुसमाजी द्वारा शिक्षित, दिसंबर 1616, 14 साल की उम्र में ही उन्होंने येसुसमाज में प्रवेश किया। जैसे-जैसे उन्होंने शिक्षण और व्यापक अध्ययन के पारंपरिक येसुसमाजी पथ का अनुसरण किया, योहन एक कुशल धर्मप्रचारक के रूप में भी जाने जाने लगे। वे पुरोहित बनने में आतुर और उत्सुक थे, और पुरोहिताभिषेक के उपरांत उन्होंने सन 1631 में अपना पहला मिस्सा अर्पण किया। योहन ने उस वर्ष का अधिकांश समय टूलूज शहर में प्लेग के प्रकोप के पीड़ितों की देखभाल करने में बिताया।
सन 1632 में, योहन को फ्रांसीसी प्रोटेस्टेंटों के लिए एक मिशनरी के रूप में नियुक्त किया गया और साथ ही साथ देश के विश्वास में ठण्डें पडे़ काथलिको के लिए भी और अन्य जिन्हें सुसमाचार प्रचार की आवश्यकता थी। उनका शेष जीवन उल्लेखनीय सफलता के साथ इस मिशन के लिए समर्पित रहा।
योहन का मिशनरी कार्य एक बड़ी भौगोलिक दूरी और समाज के व्यापक वर्ग दोनों में फैला हुआ था। फ्रांस के 50 से अधिक जिलों में, उन्होंने बच्चों, गरीबों, कैदियों और समाज द्वारा भुला दिए गए या उपेक्षित अन्य लोगों को सुसमाचार का प्रचार किया। उनके सबसे प्रसिद्ध कामों में महिलाओं को वेश्यावृत्ति से बचने में मदद करना शामिल था।
योहन की प्रेरिताई ने अनेक लोगों को विश्वास में लौट आने में मदद की। वे दृढ़ प्रार्थना और गंभीर तपस्या में निरंतर बने रहे। उनके मिशनरी कार्य में कठिन सर्दियों की यात्राएँ शामिल थीं, और उन्हें धन्य घोषित किए जाते समय के एक गवाह ने योहन की पूरे दिन बाहर प्रचार करने एंव फिर रात भर मेलमिलाप संस्कार सुनने की आदत की गवाही दी।
सन 1640 के दिसंबर के अंत में 43 साल की उम्र में संत योहन फ्रांसिस रेजिस की मृत्यु हो गई। हालांकि फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद, उन्होंने एक पल्ली मिशन में विश्वास को मजबुत करने और पाप स्वीकार संस्कार सुनने पर जोर दिया। एक व्यक्ति जो मेलमिलाप संस्कार के लिए आया था उसने उन्हें पाप स्वीकार पीठिका में बेहोश पाया, हालांकि वे मरने से पहले अंतिम संस्कार प्राप्त करने के लिए काफी देर तक जीवित रहें। येसुसमाजी मिशनरियों के लिए विश्वास की घोषणा करने वाले और एक आदर्श के रूप में सम्मानित, संत योहन फ्रांसिस रेजिस को सन 1716 में धन्य घोषित किया गया और सन 1737 में संत।