मरियम थ्रेसिया मनकिडियान का जन्म 1876 में केरल, भारत में हुआ था और इनका नाम अविला की संत तेरेसा के नाम पर रखा गया था। बचपन में ही थ्रेसिया की माँ का उनके जीवन में सबसे बड़ा प्रभाव था। वह अपनी पुत्री को बाइबिल की कहानियाँ और संतों की जीवनियाँ पढ़ कर सुनाती तथा प्रार्थना करना सिखाती थी। जब थ्रेसिया 10 साल की थी, तब उन्होंने कौमार्य का एक निजी व्रत किया और अपने जीवन को ख्रीस्त को समर्पित करने का फैसला किया। साथ ही, उन्होंने बीमार और गरीबों, कोढ़ीयों की उपचर्या और अनाथ बच्चों की देखभाल की।
थ्रेसिया के पास उपचार और भविष्यवाणी के उपहार सहित कई रहस्यमय अनुभव थे। उन्होंने गुप्त रूप से अपने शरीर पर अंकित दैवी घाव को सहन किया और अपनी ‘‘आत्मा की अंधेरी रात‘‘ से गुजरी। सबसे पहले, वह फ्रांसिस्कन पुअर क्लेयर्स में शामिल हो गईं, फिर ओल्लुर के डिस्काल्स्ड कार्मेलाइट्स में। अंत में उन्होंने फैसला किया कि उन्हें वास्तव में एक ऐसा जीवन जीने की जरूरत है जो संसार से दूर हो और ईश्वर के साथ एकांत मिलन में हो।
1913 में उन्होंने दो सहेलियों के साथ अपना पहला छोटा समुदाय की स्थापना की। यह पवित्र परिवार की मण्डली का केंद्रक बनना था। उन 12 वर्षों के दौरान मदर मरियम मण्डली के प्रमुख थे एंव प्रथम विश्व युद्ध के प्रकोप से जुड़ी कठिनाइयों के बावजूद, मण्डली नए कॉन्वेंट, स्कूलों, बोर्डिंग स्कूलों और अनाथालयों के साथ फलती-फूलती रही। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, बीमारों, बुजुर्गों और जरूरतमंद लोगों की सहायता में बिताया।
8 जून 1926 को मदर मरियम थ्रेसिया की मृत्यु हो गई और 9 अप्रैल 2000 को संत पापा योहन पौलुस द्वितीय द्वारा उन्हें धन्य घोषित किया गया। पवित्र परिवार की मण्डली की संस्थापिका मरियम थ्रेसिया को रविवार, 13 अक्टूबर, 2019 को संत पापा फ्राँसिस द्वारा संत घोषित किया गया।