15 नवंबर, 1885 और 27 जनवरी, 1887 के बीच युगांडा के नामुगोंगो में अपने ख्रीस्तीय विश्वास के लिए संत चार्ल्स और कई अन्य शहीदों की मृत्यु हो गई। 1920 में संत चार्ल्स और उनके साथियों को धन्य घोषित किया गया और 1964 में संत पापा पौलुस छठे द्वारा संत घोषित किया गया।
1879 में युगांडा के राजा मुतेसा के शासन काल में, श्वेत पुरोहितो द्वारा युगांडा में काथलिक धर्म का प्रसार शुरू हुआ, जहां राजा के दरबार के कई युवा लड़के काथलिक बन गए थे।
हालांकि, मुतेसा की मृत्यु पर, उनके बेटे म्वांगा ने सिंहासन ग्रहण किया, वह एक भ्रष्ट व्यक्ति था जो छोटे लड़़को के साथ बाल यौन शोषण प्रथाओं में लगा हुआ था।
जब राजा म्वांगा ने उनसे भेंट करने आए एक एंग्लिकन बिशप की हत्या कर दी थी, तो उनके मुख्य दरबारी काथलिक लड़के, यूसुफ मुकासा ने, जो छोटे लड़कों को राजा की वासना से बचाने के लिए बहुत आगे गए, राजा के कार्यों की निंदा की। फलस्वरूप 15 नवंबर, 1885 को उनका सिर काट दिया गया।
25 वर्षीय चार्ल्स लवांगा, जो कि छोटे लड़कों की धर्मशिक्षा के लिए पूरी तरह से समर्पित थे, मुख्य दरबारी लड़का बन गया। उन्होंने ठिक वैसे ही लड़कों को राजा की वासना से रक्षा की।
यूसुफ मुकासा की शहादत की रात, यह महसूस करते हुए कि उनका अपना जीवन खतरे में है, लवांगा और कुछ अन्य लड़के बपतिस्मा लेने के लिए श्वेत पुरोहितों के पास गए। यूसुफ मुकासा की मृत्यु के बाद के सप्ताह में और 100 दीक्षार्थियों को बपतिस्मा दिया गया।
कुछ महीनों पश्चात् राजा म्वांगा को ज्ञात हुआ कि उन लड़कों में से एक धर्मशिक्षा सीख रहा था। उन्होने क्रोध में सभी लड़को में से ईसाइयों को अलग करने का आदेश दिया। कुल मिलाकर 15 ईसाई, 13 से 24 वर्ष की आयु वाले, आगे बढ़े। राजा ने उनसे पूछा कि क्या वे अपना विश्वास बनाए रखने को तैयार हैं। उन्होंने एक स्वर में उत्तर दिया, “मृत्यु तक!” इस पर उन्हें एक साथ बांधकर दो दिन की पैदल यात्रा पर नमुगोंगो ले जाये गए जहाँ उन्हें काठ पर जलाया जाना था।
3 जून, 1886 को, स्वर्गारोहण के पर्व पर, चार्ल्स लवांगा को दूसरों से अलग कर दिया गया और खंभे पर जला दिया गया। जल्लादों ने धीरे-धीरे उसके पैर जलाए जब तक कि केवल राख ही रह गया। अभी भी जीवित होने पर उन्होंने उससे वादा किया कि यदि वह अपना विश्वास त्याग देता है तो वे उसे जाने देंगे। उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया, ‘‘तुम मुझे जला रहे हो, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे तुम मेरे शरीर पर पानी डाल रहे हो।‘‘ फिर उसने चुपचाप प्रार्थना करना जारी रखा और वे उसे आग लगाते रहे। आग की लपटें उसके दिल तक पहुँचने से पहले, उसने ऊपर देखा और ऊँची आवाज में कहा, “कटौंडा! - मेरे ईश्वर!,‘‘ और अपने प्राण त्याग दिये।
उसके सभी साथी उसी दिन प्रार्थना करते और भजन गाते हुए एक साथ जलाए गए जब तक कि वे मर नहीं गए। उस दिन कुल 24 शहीद हुए थे। मवांगा के शासनकाल के दौरान उत्पीड़न फैल गया, जिसमें 100 ईसाई, काथलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों को यातना दी गई और मार डाला गया। संत चार्ल्स लवांगा अफ्रीकी काथलिक यूथ एक्शन के संरक्षक संत हैं।