30 मई फ्रांस की संरक्षिका आर्क की संत जोआन का पर्व है। जोआन का जन्म 15वीं शताब्दी की शुरुआत में फ्रांस के शैम्पेन में एक किसान परिवार में हुआ था।
छोटी उम्र से ही उन्होंने संत माइकल, संत कथरीना और संत मार्गरेट की आवाजें सुनीं जो उनसे बातें करते थें। फिर, 1428 में, जब वह 13 वर्ष की थी, उन्हें एक दर्शन मिला जिसमें उन्हें कहा गया कि वह फ्रांस के राजा के पास जाए और इंग्लैंड और बरगंडी की आक्रमणकारी सेनाओं से अपने राज्य को फिर से जीतने में उनकी मदद करे।
उन्होंने विरोध पर काबू पाया तथा दरबारीयों और कलीसिया के सदस्यों को आश्वस्त किया जिसके फलस्वरूप उन्हें एक छोटी सेना दी गई। उन्होंने एक ध्वज तले जिस पर ‘‘येसु‘‘ और ‘‘मरियम‘‘ नाम के साथ-साथ पवित्र आत्मा का प्रतीक भी था युद्ध में आक्रमण किया।
अपने नेतृत्व और ईश्वर में विश्वास के कारण, वह 1429 में ऑरलियन्स की घेराबंदी करने में सक्षम हुई। जोआन और उनकी सेना ने कई युद्ध जीते। उनके प्रयासों के कारण, राजा रिम्स में प्रवेश करने में सक्षम हुए। उनके पक्ष में जोआन के रहते उन्हें ताज पहनाया गया था।
आखिरकार, 1430 के मई में बरगंडी की सेनाओं द्वारा जोआन को पकड़ लिया गया। जब उनके अपने राजा और सेना ने उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं किया, तो उन्हें अंग्रेजों को बेच दिया गया। उन्हें कुछ समय के लिए कैद किया गया और फिर उनपर मुकदमा चलाया गया। ब्यूवैस के धर्माध्यक्ष पेत्रुस कॉचॉन ने उनके मुकदमे की अध्यक्षता की। उन्हें आशा थी कि जोआन के साथ कठोर व्यवहार करने में, अंग्रेज उन्हें महाधर्माध्यक्ष बनने में मदद करेंगे।
विधर्म, जादू टोना और व्यभिचार के आरोप में जोआन को मौत की सजा सुनाई गई। 30 मई, 1431 को, उन्हें फ्रांस के रूएन में जला कर मार डाला गया था। वह 19 साल की थी।
उनकी मृत्यु के तीस साल बाद, उनके मामले की फिर से सनुवाई की गई और उन्हें बरी कर दिया गया। 1920 में, उन्हें संत पिता बेनेडिक्ट पन्द्रहवें द्वारा संत घोषित किया गया। वह फ्रांस, बंदी, सैनिकों और धर्मपरायणता के लिए उपहास किए जाने वालों की संरक्षिका है।