फ्लोरियन का जन्म ऑस्ट्रिया में चौथी शताब्दी में लगभग 250 ईस्वी में सेटियम में हुआ था। 4 मई को रोमन शहीदनामा में स्मरण किए जाने वाले संत फ्लोरियन, रोमन सेना के एक अधिकारी थे। वह एक युवा के रूप में रोमन सेना में शामिल हो गए, और कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के द्वारा वह श्रेणी में आगे बढ़ते गए। समस्याओं को हल करने और लोगों के साथ काम करने की उनकी क्षमताओं के कारण सम्राट डायोक्लेटियन और उनके सहायक मैक्सिमियन ने फ्लोरियन को पसंद किया। डायोक्लेटियन के दिनों में इस संत को ‘‘विश्वास के लिए मृत्यु‘‘ का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने खीस्तीय-विरोधी समय में अपने खीस्तीय धर्म को कबूल किया था।
सम्राट ने क्षेत्र के सभी खीस्तीयों को मारने के लिए फ्लोरियन द्वारा नियंत्रित क्षेत्र में एक्विलियुस नामक एक सहायक को भेजा, और यह भी पता लगाने के लिए कि फ्लोरियन आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहा था। जब वह अंत में फ्लोरियन से मिला ... उन्होंने उनसे पूछा कि उन्होंने खीस्तीयों को सताने से इनकार क्यों किया, जिस पर फ्लोरियन ने उत्तर दिया, ‘‘सम्राट से कहो कि मैं एक खीस्तीय हूँ और खीस्तीयों के समान भाग्य भुगतने को तैयार हुँ।‘‘ एक्विलियुस ने तब उन्हें एक पदोन्नति और वृद्धि प्रदान करने की पेशकश की, बशर्ते वह अपना मन बदलने को तैयार हो जाए। फ्लोरियन ने मना कर दिया। एक्विलियुस क्रोधित हो गया और उनके सैनिकों ने उन्हें कोड़ों से पीटा, फिर भी फ्लोरियन दृढ़ रहे। उन्होंने एक्विलियुस से कहा कि उन्होंने सम्राट के लिए कई घाव झेले हैं - क्यों न उनके अपने विश्वास के लिए कुछ खरोंचें? उनके साहस ने एक्विलियुस को डरा दिया, जिसे डर था कि फ्लोरियन दूसरों को विद्रोह की ओर ले जाएगा। फ्लोरियन ने क्षेत्र के सभी खीस्तीयों को सताने के अपने आदेश का पालन नहीं किया। इस पर उन्हें आग के द्वारा मौत की सजा सुनाई गई। अंतिम संस्कार की चिता पर खड़े होकर, फ्लोरियन ने रोमन सैनिकों को आग जलाने के लिए चुनौती देते हुए कहा, ‘‘यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं आग की लपटों पर चलकर स्वर्ग पर चढ़ जाऊंगा।‘‘ उनकी बातों से आशंकित होकर फ्लोरियन को जलाने की बजाय उनके निडर इकबालिया बयान प्रस्तुत करने के उपरांत उन्हें कोड़े मारे गए और पीटा गया। एक्विलियुस कोई शंका नहीं रखना चाहते थे अतः उन्होंने फ्लोरियन के गले में एक विशाल पत्थर बांधकर उन्हें एन्स नदी में फेंक कर डूबाने का फैसला किया। उन्हें दो बार कोड़े मारे गए, आधे-अधूरे जिंदा रहने तक पीटा गया, आग लगा दी गई, और अंत में उनके गले में एक पत्थर के साथ एन्स नदी में फेंक दिया गया। उनके शरीर को बाद में एक धर्मपरायण महिला ने बरामद किया, और उन्हें सम्मानपूर्वक दफनाया गया।
लगभग 600 साल बाद, 900-955 के बीच, फ्लोरियन के मकबरे के पास एक मठ बनाया गया था, और बाद में संत फ्लोरियन का गांव इसके चारों ओर विकसित हुआ। जब उनका शरीर बरामद किया गया तो उसे लिंज के पास संत फ्लोरियन के ऑगस्टिनियन मठ में प्रतिश्ठत किया गया। संत फ्लोरियन को पोलैंड के साथ-साथ लिंज, अपर ऑस्ट्रिया और आम तौर पर ज्यादातर देशों में अग्नि सेवा के संरक्षक संत के रूप में माना जाता है। उपचार के कई चमत्कारों को उनकी हिमायत के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है और उन्हें आग, और बाढ़ और डूबने से खतरे में एक शक्तिशाली रक्षक के रूप में आमंत्रित किया जाता है। उनकी पर्व का दिन 4 मई है।