28 अप्रैल को, सार्वभौमिक कलीसिया 17 वीं शताब्दी के संत लुइस-मरियमडि मोनफोर्ट का पर्व मनाती है, जिनकी धन्य कुँवारी मरियम के प्रति अपनी गहन भक्ति के लिए श्रद्धा की जाती हैं।
संत लुइस-मरियम शायद सबसे प्रसिद्ध रूप से धन्य कुँवारी मरियम को समर्पण की प्रार्थना के लिए जाने जाते है, ‘‘तोतुस तुउस एगो सुम,‘‘ जिसका अर्थ है, ‘‘मैं पूर्ण रूप से आप ही का हूं।‘‘ स्वर्गीय संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने ‘‘तोतुस तुउस‘‘ वाक्यांश को अपने धर्माध्यक्षीय आदर्श-वाक्य के रूप में लिया था।
31 जनवरी, 1673 को मोत्फोर्त, ब्रिटनी में जन्मे, संत लुइस-मरियम की एक बालक के तौर पर परम प्रसाद के लिए एक गहरी भक्ति थी, और वे विशेष रूप से माला विनती के माध्यम से धन्य कुँवारी के लिए भी समर्पित थे। उन्होंने अपने दृढीकरण पर मरियम नाम रख लिया।
संत ने स्कूल में रहते हुए गरीबों के लिए प्रबल प्रेम प्रकट किया और स्कूल की छुट्टियों में गरीबों और बीमारों की सेवा करने वाले युवाओं के समाज में शामिल हो गए। जब वे 19 वर्ष के थे, तब वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के लिए 130 मील पैदल चलकर पेरिस गए, रास्ते में मिलने वाले गरीबों को अपना सब कुछ दे दिया और केवल भिक्षा पर जीने का संकल्प लिया। 27 साल की उम्र में उनके पुरोहिताभिषेक के बाद, उन्होंने अस्पताल के पुरोहित के रूप में सेवा की, और जब उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों का पुनर्गठन करने का प्रयास किया तो प्रबंधन ने इसका विरोध कर उन्हें दूर भेज दिया।
संत लुइस-मरियम ने 32 साल की उम्र में प्रवाचन करने के अपने महान उपहार की खोज की, और अपने जीवन के बाकी समय के लिए खुद को इसके लिए प्रतिबद्ध किया। उन्हें इतनी बड़ी सफलता मिली कि उनके उपदेशों को सुनने के लिए अक्सर हजारों की भीड़ उमड़ती थी जिसमें उन्होंने नियमित परम प्रसाद ग्रहण करने तथा मरियम के प्रति भक्ति को प्रोत्साहित किया।
लेकिन उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा, विशेष रूप से जैनसेनवादियों से, कलीसिया के भीतर एक विधर्मी आंदोलन जो परम पूर्वनियतिवाद में विश्वास करता था, जिसमें केवल कुछ चुने हुए ही बचाए जाते हैं, और बाकी शापित होते हैं। फ्रांस का अधिकांश भाग जैनसेनवाद से प्रभावित था, जिसमें कई धर्माध्यक्ष भी शामिल थे, जिन्होंने संत लुइस-मरियम को अपने धर्मप्रांत में प्रचार करने से प्रतिबंधित कर दिया था। उन्हें ला रोशेल में जानसेन वादियों द्वारा जहर भी दिया गया था, लेकिन वे बच गए, हालांकि बाद में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया।
विषाक्तता के प्रभावों से उबरने के दौरान, उन्होंने मरियम के प्रति धर्मपरायणता की उत्कृष्ट कृति, ‘‘धन्य कुँवारी के प्रति सच्ची भक्ति‘‘ लिखी, जिसके बारे में उन्होंने सही भविष्यवाणी की थी कि कुछ समय के लिए शैतान द्वारा इसे छिपाया जाएगा। उनकी मृत्यु के 200 साल बाद उनके मौलिक कार्य की खोज की गई थी।
मरने से एक साल पहले, संत लुइस-मरियम ने दो मंडलियों की स्थापना कीः द डॉटर्स ऑफ डिवाइन विज़डम - जो अस्पतालों में बीमारों की देखभाल करते और गरीब लड़कियों की शिक्षा का कार्य करते है, और मरियम की संगति मिशनरी समाज जो माता मरियम के प्रचार और भक्ति फैलाने के लिए समर्पित है।