संत पिता सिक्सटस तृतीय कलीसिया के चवालीसवें संत पिता थे और सिक्सटस नाम चुनने वाले तीसरे संत पिता थे। उन्होंने सेलेस्टाइन प्रथम के बाद शासन किया और संत पिता लियो उनके बाद रोम के धर्माध्यक्ष बने। संत पिता पद पर सिक्सटस तृतीय का कार्यकाल 31 जुलाई, 432 को शुरू हुआ और 18 अगस्त, 440 को समाप्त हुआ। जन्म से सिक्सटस के रूप में पुकारे जाने वाले सिक्सटस तृतीय ने कम उम्र से ही जायस्टस नाम का भी इस्तेमाल किया था। संत सिक्सटस के इतिहास और युवावस्था के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिली है। उनका जन्म 390 में रोम, इटली में हुआ था और उन्होंने अपना पूरा जीवन पवित्र रोमन साम्राज्य में बिताया। संत पिता बनने से पहले सिक्सटस ने कई वर्षों तक कलीसिया के लिए धर्माध्यक्ष के रूप में काम किया। वे रोमन याजकों के एक प्रमुख सदस्य बन गए और हिप्पो के अगस्तीन के साथ एक रिश्ता विकसित किया जो बाद में एक संत बन गया।
उन्होंने एफेसुस की परिषद के परिणामों को मंजूरी दी और नेस्टोरियनवाद और पेलाजियनवाद के विधर्मियों के खिलाफ सक्रिय रूप से विरोध किया। वे वास्तुकला के अपने प्रेम के लिए मशहुर हुए और उन्होंने कई रोमन बेसिलिकाओं को बहाल किया तथा हिप्पो के संत अगस्तीन के साथ अक्सर पत्राचार किया। उन्होंने स्थानीय धर्माध्यक्षों और इलियारिया पर संत पिता की सर्वोच्चता का बचाव किया जिसे सम्राट कॉन्स्टेंटिनोपल के नियंत्रण में स्थानांतरित करना चाहता था।
हालांकि सिक्सटस तृतीय काथलिक कलीसिया में एक संत है, वे एक शहीद नहीं थे जैसे कि उनके पहले के संत पिता रहें थे। उन्होंने अपना अधिकांश कार्यकाल स्थानीय गिरजाघरों पर काम करने और रोम में इमारतों को सुधारने में बिताया। सिक्सटस तृतीय अपने शुरुआती 40 के दशक में इस पद पर आसीन हुए और जब वर्ष 440 में प्राकृतिक कारणों से 18 अगस्त को मर गए, तब वे सिर्फ 50 वर्ष के थे। संत पिता के पद पर रहते हुए उनके द्वारा लिखे गए आठ पत्रों में से कुछ अभी भी मौजूद हैं, जिनमें से कुछ उन्होंने हिप्पो के अगस्तीन को लिखे थे। कम से कम तीन ऐसे पत्र मिले हैं जिन्हें लिखने का श्रेय उन्हें दिया गया हैं जैसे ब्रह्मचर्य पर तथा झूठे शिक्षकों पर, जो बाद की तारीख में लिखे गए जाली पत्र हैं।