मार्च 09

रोम की संत फ्रांसिस्का (धर्मसंघिनी) – ऐच्छिक स्मृति

फ्रांसिस्का रोम में एक धनी कुलीन परिवार में पैदा हुई। जब वे सिर्फ तेरह साल की थी, उनकी शादी उसी तरह के एक धनी परिवार के एक व्यक्ति से हुई थी। फ्रांसिस्का ने अपने पति, अपने बच्चों और अपने घर की सेवा करने में ईश्वर की इच्छा पूरी करने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने एक धर्मबहन के जीवन पर आधारित उच्च स्तर की पवित्रता को जीने का प्रयास किया। वे छोटी उम्र से ही धार्मिक जीवन में प्रवेश करना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता ने उनकी एक साथी रईस से शादी कराने के अपने वादे को तोड़ने से इनकार कर दिया। फ़्रांसिस्का अपने विवाहित जीवन की स्थिति और धार्मिक जीवन की स्थिति के बीच एक आंतरिक संघर्ष से जूझ रही थी जिसे उन्होंने मूल रूप से महसूस किया था। यह एक अच्छे और बुरे के बीच कोई विकल्प नहीं था। यह एक पवित्र महिला की आत्मा में एक स्वाभाविक तनाव था, जिसने अपने सामने दो रास्ते खुले देखे, जो दोनों ही ईश्वर की ओर ले जाते थे। उनके पति की मृत्यु के बाद फ्रांसिस्का ने एक धर्मबहन के समान जीवन जीया, यद्यपि वे कॉन्वेंट के बाहर थीं। तब तक उनके बच्चे भी बडे हो गये थे।

फ्रांसिस्का चालीस साल तक एक आदर्श पत्नी और मां थीं। फ्रांसिस्का का पति उनसे प्यार करता था और उनका सम्मान करता था, उनके नौकर उनकी प्रशंसा करते थे, और उनके बच्चे उन्हें बहुत चाहते थे। अपने घरेलू कर्तव्यों को इतनी ईमानदारी से निभाने के अलावा, फ्रांसिस्का ने उपवास भी किया तथा प्रार्थना की। उनकी आध्यात्मिकता जीवंत तथा रहस्यमय थी। गरीबों तथा बेसहारे लोगों के प्रति उनकी उदारता किसी समाज-सेवी संस्था को कुछ दान देने तक सीमित नहीं थी। वे स्वयं बेघर, भूखे और भिखारियों से व्यक्तिगत संपर्क बनाती थीं। संत फ्रांसिस्का ने हमेशा उदारता से दूसरों की मदद की जब कि स्वयं प्रायश्चित्त, उपवास तथा प्रार्थना का जीवन बिताती थीं। इस प्रकार की भक्ति तथा सेवा-भाव से प्रेरित होकर उन्होंने समान विचारधारा वाली महिलाओं के एक समूह की स्थापना की। उनकी जीवन शैली प्रार्थना तथा सेवा की थी। बाद में कलीसिया ने उन्हें संत फ्रांसिस्का के धर्मसमाज के नाम से स्वीकृति दी।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!