पेरपेतुआ और फेलिसितास अफ्रिका में सम्राट सेवेरस के शासन काल में ख्रीस्तीय विश्वासियों के उत्पीड़न के दौरान शहीद हुयीं थीं।
सन 203 में, विविया पेरपेतुआ, एक अच्छी तरह से शिक्षित तथा कुलीन स्त्री, ने अपनी माँ के मार्ग का अनुसरण कर ख्रीस्तीय धर्म को अपनाया हालाँकि वह जानती थी कि इसका मतलब सम्राट सेवेरस द्वारा आदेशित उत्पीड़न के दौरान उनकी मृत्यु हो सकती है। उसके जीवित भाई (एक और भाई की मृत्यु हो गई थी जब वह सात वर्ष का था) ने भी उसी मार्ग पर चल कर कैथोलिक ख्रीस्तीय धर्म में बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए आवश्यक शिक्षा तथा प्रशिक्षण पाने का निर्णय लिया। उनके पिता ने उनके निर्णय को बदलने के लिए उन पर दबाव डाला। उस समय वे 22 साल की थी, उनका एक बच्चा भी थ तथा प्राप्त जानकारी के अनुसार वे विधवा थी। फिर भी राजा पेरपेतुआ को मना नहीं पाये।
पेरपेतुआ का उत्तर सरल और स्पष्ट था। एक पानी के जग की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने अपने पिता से पूछा, "देखो वह घड़ा वहाँ पड़ा है? क्या आप उसे इसके अलावा किसी अन्य नाम से बुला सकते हैं?" उनके पिता ने उत्तर दिया, "बिल्कुल नहीं।" तब पेरपेतुआ ने कहा, "मैं अपने आप को किसी अन्य नाम से नहीं बुला सकती। मैं हूँ - एक ईसाई।"
इस जवाब ने उनके पिता को परेशान कर दिया। पेरपेतुआ को चार अन्य नये विश्वासियों के साथ गिरफ्तार किया गया था, जिसमें फेलिसितास और रेवोकैटस, और सैटर्निनस और सेकुंडुलस शामिल थे। विश्वास में उनके प्रशिक्षक, सतुरस ने अनकी सजा साझा करने का विकल्प चुना और उन्हें भी कैद किया गया। जेल जाने से पहले पेरपेतुआ ने बपतिस्मा ग्रहण किया। पेरपेतुआ को अपने नह्ने बेच्चे से दूर रहना पडा। उस समय फेलिसितास आठ महीने की गर्भवति थी। कई लोगों ने उनको ख्रीस्तीय़ विश्वास को छोड़ने का सलाह दिया और उस के लिए उन पर दबाव भी डाला। परन्तु वे मानने को तैयार नहीं थे। इस पर पेरपेतुआ को दूसरों के साथ अखाड़े में जंगली जानवरों के सामने फेंकने की सजा दी गई थी। पुरुषों पर भालू, तेंदुआ और जंगली सूअर ने हमला किया था। एक पागल बछिया का सामना करने के लिए महिलाओं को निर्वस्त्र किया गया। उन महान विश्वासियों ने एक दूसरे को हिम्मत बंधाया, दूसरों को भी ख्रीस्तीय धर्म को अपनाने के लिए निमंत्रण दिया और प्रभु येसु के नाम पर खुशी से शहादत का स्वीकार किया।