ओसवाल्ड के माता-पिता उनके जन्म से पहले डेनमार्क से इंग्लैंड आ गए थे। उनके चाचा संत ओडो द गुड फ्लेरी का ओडो के महाधर्माध्यक्ष थे। उन्होंने ओसवाल्ड को शिक्षा प्रदान की थी। सन 959 में वे इंग्लैंड वापस आये। उनको 962 में इंग्लैंड के वॉर्चेस्टर के धर्माध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने इंग्लैंड में मठवासी और कलीसिया संबंधी अनुशासन को पुनर्जीवित करने के लिए सेंट डंस्टन और सेंट एथेलवॉल्ड के साथ काम किया। उन्होंने रैमसे और विनचेस्टर में मठों की स्थापना की। 972 में उन्होंने यॉर्क के महाधर्माध्यक्ष का पद ग्रहण किया। उन्होंने कई धार्मिक ग्रंथ लिखे, और अपने पुरोहितों के धार्मिक प्रशिक्षण को बहत्तर बनाने के लिए काम किया। वे रोज गरीब लोगों के पैर धोते थे।
संत ओसवाल्ड अपने अधिकांश सार्वजनिक जीवन काल में संत डंस्टन और संत एथेलवॉल्ड के साथ जुड़े थे और जब 992 में उनकी मृत्यु हुई तो लोकप्रिय सम्मान उनके नाम से जुड़ गया। वे तब से उन तीन संतों में से एक के रूप में आदरणीय हैं, जिन्होंने अंग्रेजी मठवाद को पुनर्जीवित किया।