संत पौलुस ओनेसिमुस का उल्लेख फिलेमोन के पत्र में करते हैं। ओनेसिमुस कोलोसे, फ्रिगिया में फिलेमोन का दास था। एक दिन ओनेसिमुस फिलेमोन को छोड़ कर भाग गया था। संत पौलुस जब रोमी जेल में थे, उनकी मुलाकात उनेसिमुस से हुयी। पौलुस ने उस को बपतिस्मा दिया और उसे अपना पुत्र मानने लगे। पौलुस ने उनेसिमुस को एक पत्र के साथ फिलेमोन के पास वापस भेज दिया। उस पत्र में संत पौलुस ने फिलेमोन से कहा, "ओनेसिमुस शायद इसलिए कुछ समय तक आप से ले लिया गया था कि वह आप को सदा के लिए प्राप्त हो, अब दास के रूप में नहीं, बल्कि दास से कहीं, बढ़ कर-अतिप्रिय भाई के रूप में। यह मुझे अत्यन्त प्रिय है और आप को कहीं अधिक -मनुष्य के नाते भी और प्रभु के शिष्य के नाते भी। इसलिए यदि आप मुझे धर्म-भाई समझते हैं, तो इसे उसी तरह अपनायें, जिस तरह मुझे। यदि आप को इस से कोई हानि हुई है या इस पर आपका कुछ कर्ज़ है, तो मेरे खर्चें में लिखें।" (फिलेमोन 15-18)
फिलेमोन ने उनेसिमुस को क्षमा कर दिया और वह संत पौलुस की ईमानदारी से सेवा करने के लिए लौट आया। हम जानते हैं कि संत पौलुस ने उसे, कलोसियों को अपने पत्र के वाहक, तुखिकस के साथ भेजा था। (देखिए कलोसियों 4:7-9)
बाद में, जैसा कि संत जेरोम और अन्य पिता गवाही देते हैं, वह सुसमाचार के एक उत्साही प्रचारक बन गए और संत तीमुथियुस के बाद एफेसुस के बिशप बने।
रोम में 18 दिनों तक एक राज्यपाल के द्वारा उन्हें क्रूरता से प्रताड़ित किया गया, जो ब्रह्मचर्य के गुण पर उनके उपदेश से क्रुद्ध हो गए थे। मौत के घाट उतारने से पहले ओनेसिमुस की टांगों और जाँघों को तोड़ दिया गया था। उनकी शहादत वर्ष 90 में डोमीशियन के समय में हुई थी।