पौलुस मिकी का जन्म सन् 1562 में जापान के त्सुनोकुनी नामक जगह पर हुआ। उनके पिताजी मिकी हंडायु एक सेना अधिकारी थे। संत फ्रांसिस जेवियर 1559 में जापान आये और उन्होंने लोगों को ख्रीस्तीय धर्म की शिक्षा दी और कई लोगों को बपतिस्मा प्रदान किया। इसके बाद में संत फ्रांसिस दूसरे देशों में सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिये गये। परन्तु जापानी कलीसिया विश्वास में आगे बढ़ती रही। पौलुस मिकी को ईश्वर की ओर से बुलाहट का अहसास हुआ। पौलुस मिकी ने अज़ुकी और ताकतसुकी नामक जगाहों में येसु समाजी महाविद्यालयों में अध्ययन किया। सन् 1580 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने सारा जीवन सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिये कठिन परिश्रम करते हुए बिताया। सन् 1596 में सम्राट ने ख्रीस्तीयों के विरूद्ध अत्याचार शुरू किया। पौलुस मिकी भी अन्य पुरोहितों तथा विश्वासियों के साथ हिरासत में लिये गये। इन ख्रीस्तीय कैदियों को अधिकारियों ने 600 मील तक चलाकर रास्ते भर उनको अपमानित किया। पौलुस सभी साथियों को ढाढस बंधवाते रहे। नागासाकी में 5 फरवरी 1597 में पौलुस मिकी और उनके 25 साथियों को क्रूस पर चढाया गया। सन् 1862 में पौलुस मिकी और उनके साथी संत घोषित किये गये।