संत ब्लासियुस के बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है। माना जाता है कि वे अर्मिनिया के सेबास्तेया धर्म प्रांत के धर्माध्यक्ष थे और वे सन् 316 में लिसिनियुस राजा के राजकाल में शहीद हुये। परंपरा के अनुसार उनका जन्म एक धनी और कुलीन परिवार में हुआ था। वे एक परिश्रमी और पवित्र जीवन बिताने वाले धर्माध्यक्ष थे और अपने विश्वासियों के आध्यात्मिक तथा भौतिक उन्नति में रूचि रखते थे। जब ख्रीस्तीयों के विरूद्ध अत्याचार शुरू हुआ तब इस अत्याचार से बचने के लिये उनको ईश्वर से संदेश मिला कि उन्हें पर्वतों में जाकर रहना चाहिये। जब कुछ शिकारी शिकार के लिये उस जगह पहुँचे तो उन्होंने देखा कि एक गुफा के पास कई बीमार जंगली जानवर घूम रहे थे। और ब्लासियुस निर्भयता से उनकी सेवा कर रहे थे। जब उनको यह मालूम हुआ कि वे धर्माध्यक्ष थे तो उन शिकारियों ने उनको पकड लिया और वापस ले जाना चाहा। रास्ते में एक माँ अपने बेटे को ब्लासियुस के पास लेकर आयी। उस लडके के गले में मछली का काँटा फॅसा हुआ था। ब्लासियुस के आदेश पर काँटा बाहर निकल आया। इसी कारण ब्लासियुस गले की बीमारियों के संरक्षक संत माने जाते है। कप्पोदोकिया के राज्यपाल अग्रीकोलाउस ने मूर्ति पूजा करने के लिये ब्लासियुस पर दबाव डाला। जब ब्लासियुस ने पहली बार मना किया तो उनके साथ मारपीट किया गया। अगली बार उनको एक पेड से लटका कर उनकी चमडी को लोहे की कंगी से उतारा गया। आखिरी में उनका गला काटकर मार डाला गया।