जनवरी 28

सन्त थोमस अक्वीनस

पंडितों का यह मानना है कि थॉमस का जन्म सन 1226 में इटली के रोकासेका के एक महल में हुआ था। उनके जन्मतिथी की कोई निश्चितत जानकारी उपलब्ध नहीं है। थॉमस के पिता का नाम लॉन्डल्फ (Landulph) था। उनका कई राजपरिवारों से संबन्ध था तथा उनकी पत्नी का नाम थियडोरा था। थॉमस उनके माता-पिता का छटवाँ बेटा था। उनके बचपन में एक दिन उनके साथ सोनेवाली उनकी बहन तथा उसकी परिचारिका बादल के गर्जन और बिजली के गिरने के कारण मारे गये। इस घटना का उनके ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा तथा जब कभी भी बादल गर्जरता था तब थॉमस भयभीत हो उठता तथा गिरजाघर में शरण लेता था। उनकी मृत्यु के बाद लोग उन्हें बादल के गर्जन तथा बिजली से संरक्षण प्रदान करने वाले संत मानने लगे। जब थॉमस नौ साल के थे तब उनको मोंतेकसीनो के बेनेदिक्तिीनी पाठशाला भेजा गया। वहाँ पर थॉमस ने अपार बुद्वि तथा गहरी आध्यात्मिकता का परिचय दिया। उन्होंने मोंतेकसीनो के पाठशाला में पाँच साल तक अध्ययन किया। चैदहवाँ साल की उम्र में थॉमस ने नेपल्स के विश्वविदयालय में स्नातक की तैयारी में सात साल की पढाई शुरू की। नेपल्स के डोमिनिकन धर्मसमुदाय के अध्यक्ष के सामने थॉमस ने उनके धर्मसमाज में शामिल होने की अपनी इच्छा प्रकट की। परिवार वालों के विरोध के कारण उन्हें तीन सालों तक इंतजार करना पडा। तत्पश्चात उन्होंने पीटर मार्टिन नामक शिक्षक से तर्क शास्त्र, वाग्मिकता, तथा व्याकरण का अध्ययन किया। उस समय उन्होंने लातिनी साहित्य तथा अरस्तु की तर्कविद्या का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने चार साल तक गणित, संगीत, रेखागणित तथा खगोलशास्त्र में प्रवीणता हासिल की। इसके अतिरिक्त उन्होंने आयलैण्ड के पीटर नामक विदवान के मार्गदर्शन में भौतिकशास्त्र की पढाई की। अब तक थॉमस डोमनिकी धर्मसमाज की ओर आकर्षित हो चुका था तथा बौद्धिक प्रशिक्षण में उसकी अधिक रूचि थी। डोमिनिकी धर्मसमाज के साथ उनका आदान-प्रदान होता था तथा उनके साथ प्रार्थना में भी वे शामिल होते थे।

सन 1244 में जब थॉमस 19 वर्ष के थे तो वे डोमिनिकी धर्मसमाज में शामिल हुए। जब इस धर्मविधि की खबर घर पहुँची तो उनके परिवार वालों को बुरा लगा। वे उनके धर्मसंघी बनने के निर्णय से सहमत नहीं थे। जब उन्होंने धर्मसमाजों में से डोमिनिकी धर्मसमाज, जो एक भिक्षुक धर्मसमाज है को चुना तो उन्हें और भी अधिक बुरा लगने लगा। थॉमस एक कुलीन परिवार का सदस्य थे। उनके परिवार वालों को लगा कि अगर थॉमस कोई धार्मिक जीवन बिताना चाहते थे तो उसे मठाध्यक्ष जैसा कोई अधिकारी बनना चाहिये था। थॉमस पर घर वापस आने के लिये दबाव डाला गया। धर्मसंघियों ने थॉमस को पेरिस भेजा। थॉमस की माँ ने उनके भाईयों को जो तस्कनी की सेना के सदस्य थे, खबर दी, तो वे थॉमस को जबरदस्ती उठाकर घर ले आये। उन्होंने संत जोवान्नी महल में थॉमस को कैद किया। उनकी बहनों को उन से बात करके उनका मत बदलवाने की जिम्मेदारी दी गयी। वे थॉमस के प्रभाव में आकर जल्द ही उनकी पसंद की किताबें धर्मसमाज के सदस्यों से उपलब्ध कराने लगे।

कैद में रहकर ही उन्होंने अरस्तु के तत्वमीमांसा “Metaphysics” तथा पीटर लोम्बार्दो की पुस्तक ’’वाक्य’’ “Sentences’’ का अध्ययन किया। उन्होंने बाइबिल के कई लम्बे-लम्बे पदों को कण्ठस्थ कर डाला। उनके भाइयों ने उन्हें प्रलोभन में डालने हेतु एक चरित्रहीन महिला को उनके कमरे में भेज दिया। लेकिन थॉमस ने एक जलती हुयी लकडी को हाथ में लेकर उसे भगा दिया। फिर थॉमस ने घुटने टेककर ईश्वर से प्रार्थना की कि उन्हें आजीवन ब्रह्मचर्य का वरदान प्राप्त हो। उनकी जीवनी लिखने वाले कुछ लेखकों का यह मानना है उसी क्षण दो स्वर्गदूत दिखाई दिये जिन्होंने उनकी कमर को एक रस्सी से मजबूती से कस दिया। इस बात को उन्होंने अपने मरणशय्या पर ही अपने मित्र ब्रदर रेजिनाल्ड को बतायी तथा यह भी बताया कि इस घटना के बाद उन्हें अपने जीवन में कभी भी शारीरिक प्रलोभनों का सामना नहीं करना पडा। कुछ डोमिनिकी धर्मसंघियों ने वेष बदलकर थॉमस की बहनों की सहायता से उन्हें छुड़ाकर नेपल्स ले गये। अगले साल ही उन्होंने व्रत ग्रहण कर लिया। उनके परिवार के सदस्यों ने थॉमस को मोन्तेकसीनो के मठाध्यक्ष के पद पर नियुक्त करने की अनुमति प्राप्त की। इस पद तथा अन्य पदों को भी थॉमस ने ठुकरा दिया।

थॉमस एक अच्छे शिक्षक, प्रभावशाली वक्ता तथा आध्यात्मिक गुरू बन गये। धार्मिक तथा राजनैतिक नेताओं ने उनको सम्मान दिया। 31 साल आयु में उनको डॉक्टर की उपाधि मिली। वे एक अच्छे लेखक और उपदेशक बने। उन्होंने कई किताबें लिखी। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ’’सुम्मा थियोलोजिका’’ अधूरी ही रह गयी। लियोन्स के द्वितीय महासभा में भाग लेने हेतु यात्रा करते समय फोस्सा नुओवा के एक मठ में 7 मार्च, सन् 1274 में उनका निधन हुआ। तब वे 48 साल के थे। संत पापा योहन बाइसवें ने सन् 1323 में उनको संत घोषित किया। उनके पार्थिक शरीर को डोमिनिकी धर्मसंघियों ने तुलूसे स्थानान्तरित किया और संत सर्निन के गिरजाघर में दफनाया।

स्ंत पापा पियूस पाँचवें ने संत थॉमस को कलीसियाई विदवान की उपाधि से सम्मानित किया। संत पिता लियो तेहरवें ने 1880 में उन्हें काथलिक विश्वविदयालयों तथा शिक्षण सस्ंथानों को संरक्षण संत घोषित किया।


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